जब शर्मिदशी का एहसास हुआ!

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छोटे लड़के का कहना था कि उसे इतनी जल्दी बॉल लाकर ठीक निशाने पर दे मारने की क्या जरूरत थी? अन्य बच्चे उसके गुस्से का मजा ले रहे थे पर वह काफी गंभीर था कि बड़े लड़के ने बात क्यों नहीं मानी? और यह कि उसकी आदत ही है बात काटने की। इसी बहस में छोटे बच्चे ने एक वाक्य यह भी कहा कि नौकर की तरह रहना चाहिए।

करीब छह साल का वह गोरा-चिट्टा प्यारा सा लड़का आगबबूला हो रहा था। नौ-दस साल के एक अन्य लडक़े पर उसका गुस्सा फटा पड़ रहा था, ‘मैंने तुमसे बोला था ना, तुमने मेरी बात क्यों नहीं मानी?’असल में चार-पांच बच्चे पिट्टो खेल रहे थे, जिसमें ये दोनों अलग-अलग टीमों में थे। बड़े वाले लडक़े ने पॉइंट बनाने का मौका दिए बगैर छोटे को बॉल मार दी। छोटे लडक़े का कहना था कि उसे इतनी जल्दी बॉल लाकर ठीक निशाने पर दे मारने की क्या जरूरत थी? अन्य बच्चे उसके गुस्से का मजा ले रहे थे पर वह काफी गंभीर था कि बड़े लडक़े ने बात क्यों नहीं मानी? और यह कि उसकी आदत ही है बात काटने की। इसी बहस में छोटे बच्चे ने एक वाक्य यह भी क ह कि ‘नौकर है तो नौकर की तरह रहना चाहिए ना।’हां, वह बड़ा लडक़ा उस छोटे बच्चे के घर पर नौकर था और यही वजह थी उस छोटे बच्चे के रोब-दाब की।

इस बहुत पुरानी घटना की धुंधली-सी तस्वीर ही बची है मन में, पर यह अब भी ध्यान में है कि छोटे बच्चे के मुंह से निकले आखिरी वाक्य ने बड़े लडक़े के चेहरे पर असहजता और बेबसी का एक मिला-जुला भाव ला दिया था कुछ पलों के लिए। वह तो खेल-खेल में भूल ही गया था कि नौकर है। विपक्षी टीम को मात देने की सहज इच्छा के तहत उसने पूरी तत्परता से बॉल पकड़कर मार दी। वह खुश था इस पर, उसकी टीम के बाकी लोग भी खुश थे, मगर इसका क्या किया जाए कि दूसरी टीम का वह टिंगू-सा मेंबर उसका मालिक निकला। अभी जब किसी वजह से यह घटना याद आती है, मैं इस बात पर राहत महसूस करता हूं कि कम से कम अब तो हमारे आसपास की दुनिया में ऐसा नहीं रह गया है।

लेकिन उस दिन जब यह घटना याद आई, मैं एनसीआर की एक पॉश मानी जाने वाली सोसाइटी में गया था, एक दोस्त से मिलने। हम लिफ्ट की ओर बढ़ रहे थे कि देखा 50-55 साल की एक महिला सोसाइटी के गार्ड पर बुरी तरह बरस रही थीं, ‘तुम लोगों को रखा क्यों गया है यहां? ये लोग कैसे घुसे जा रहे थे इस लिफ्ट में? इन्हें मालूम नहीं कि यह रेजिडेंट्स और गेस्ट्स की लिफ्ट है? कामवालियों के लिए नहीं। गार्ड सफाई- सी दे रहा था, ‘वह लिफ्ट खराब है मैम, कम्प्लेन हो गई है।’ लेकिन महिला पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, ‘आइ डोंट के यर, लिफ्ट खराब है’। तभी मेरी आंखें उस कामवाली महिला के साथ खड़े पांच साल के मासूम की सहमी आंखों से मिल गईं और अचानक अहसास हुआ, शर्मिंदगी किसे कहते हैं।

प्रणव प्रियदर्शी
(लेखक पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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