जब कलाम ने की थी इस्तीफे की पेशकश

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फरवरी 2005 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद के दल को भारी क्षति हुई, हालांकि विपक्षी गठबंधन एनडीए भी बहुमत से दूर ही रहा। 243 के सदन में आरजेडी को 75 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा, जबकि नीतीश कुमार की अगुआई में एनडीए को 92 सीटें मिली थीं। राम विलास पासवान की पार्टी एलजेपी 29 सीट प्राप्त कर मजबूत स्थिति में थी। पासवान की पार्टी यूपीए में रहने के बाद भी लालू प्रसाद के विरुद्ध चुनाव मैदान में थी और किसी भी कीमत पर लालू प्रसाद के दल को समर्थन नहीं देंगे, इसी घोषणा के साथ चुनाव मैदान में उतरी थी। रेल मंत्रालय को लेकर दोनों नेताओं के बीच तलवारें खिंच चुकी थीं। दोनों नेता एक दूसरे के लिए गला काट प्रतियोगी बन चुके थे। बिहार के राज्यपाल बूटा सिंह ने 6 मार्च को राष्ट्रपति शासन की घोषणा कर सदन को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया। 19 मार्च 2005 को लोकसभा और बाद में 21 मार्च को राज्यसभा ने भी इस पर अपनी मोहर लगा दी। 2005 के अक्टूबर चुनाव में नीतीश कुमार के चेहरे पर जब चुनाव हुआ तो जेडी(यू) की 88 और बीजेपी की 55 सीटें मिलाकर 145 हो गईं। लेकिन इससे पहले कुछ निर्दलीय और एलजेपी विधायकों की बेचैनी बढ़ गई और 15 अप्रैल के आसपास 10 एलजेपी विधायकों ने कुछ निर्दलीयों के साथ मिलकर नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार बनाने की प्रक्रिया तेज़ कर दी। आरजेडी के दबाव में राज्यपाल ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर विधानसभा भंग करने की संस्तुति कर दी।

राज्यपाल के संबोधन में दलबदल को प्रोत्साहन देकर विधायकों को लुभावने प्रलोभन देने का भी आरोप था। यद्यपि नीतीश कुमार ऐसे सभी प्रयासों से अपने को दूर कर चुके थे। उन्होंने जार्ज फर्नांडिस के आवास पर जेडी(यू) नेताओं की आवश्यक बैठक में इस प्रस्ताव को नकार दिया था कि कुछ विधायक पैसे की मांग कर रहे हैं। नीतीश कुमार ने स्पष्ट कर दिया कि वैसी परिस्थितियों में वे मुख्यमंत्री के दावेदार नहीं होंगे। इस बीच 22 अप्रैल को कैबिनेट ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। राष्ट्रपति की दुविधा उस समय राष्ट्रपति अब्दुल कलाम थे, जो किसी राजनैतिक दल या विचार से नहीं बंधे थे। कलाम विदेश यात्रा पर रवाना हो चुके थे। पहला पड़ाव रूस की राजधानी मास्को में था। मास्को समय के मुताबिक रात के 10 बजे थे, जो इन मुल्कों में विश्राम करने का वक्त होता है। कलाम के प्रेस सूचना अधिकारी एसएम खान ने भी अपने संस्मरण में इसका उल्लेख किया है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी राष्ट्रपति से स्वीकृति देने के लिए निवेदन किया था। कलाम दुविधा और अनिर्णय की स्थिति में थे। उनके सामने उस समय सीमित विकल्प थे- एक, अपनी मंजूरी दे दें, दिल्ली लौटने तक इसे स्थगित रखा जाए, जिसमें एक सप्ताह से अधिक का समय हो सकता था और तीन, प्रस्ताव बगैर मंजूरी लौटा दिया जाए ताकि मंशा स्पष्ट हो जाए। अगर मंत्रिपरिषद चाहे तो दोबारा अपनी संस्तुति भेजे। कलाम विवाद को अधिक तूल नहीं देना चाहते थे। हालांकि पूरे घटनाक्रम से वह बहुत व्यथित थे।

वे चाहते थे कि नीतीश कुमार को एक अवसर देकर विधानसभा में विश्वास मत प्राप्त करने को कहा जाए। अंततः उन्होंने हस्ताक्षर कर अपनी संस्तुति प्रदान कर दी। कलाम की दुविधा का एहसास प्रधानमंत्री कर चुके थे और पुनः फोन पर विस्तार से उन्होंने अपना पक्ष रखने का प्रयास भी किया। इस बीच कलाम के विश्वास को और बल मिला जब उनके स्वदेश आगमन के बाद एलके आडवाणी के नेतृत्व में 150 से अधिक विधायकों ने राष्ट्रपति भवन में मार्च कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। चेन्नै से प्रकाशित ‘दि हिंदू’ के संपादक एन. राम समेत कई प्रख्यात विद्वान भी अपनी नाराजगी से राष्ट्रपति को अवगत करा चुके थे। इस बीच राष्ट्रपति शासन की घोषणा को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। 7 अक्टूबर को मुख्य न्यायाधीश वाली बेंच ने विधानसभा भंग करने के फैसले को असंवैधानिक बताकर एक नए संकट को जन्म दे दिया। फैसले में इसका भी उल्लेख किया गया कि एलजेपी के 10 विधायकों के समर्थन के बाद 24 मई को सरकार बनाने का दावा मजबूत बनता, इसी को रोकने के लिए 21 मई को विधानसभा भंग करने का फैसला किया गया। पूरे घटनाक्रम पर कलाम पैनी नजर रखते हुए जानकारी हासिल कर रहे थे और सुप्रीम कोर्ट में सरकार के पक्ष को भी वे कमजोर मान रहे थे।

अपने इस निष्कर्ष की जानकारी उन्होंने प्रधानमंत्री के साथ भी साझा की। कुछ कानून और संविधान के विशेषज्ञों ने कलाम की भी आलोचना प्रारंभ कर दी। जब मनमोहन मिले राष्ट्रपति भवन ने रहस्यमय चुप्पी साधी हुई थी और कलाम शांत एवं गंभीर मुद्रा में दिख रहे थे। एक दिन सुबह नाश्ते पर उनके ओएसडी के साथ एसएम खान भी मौजूद थे, जब कलाम ने स्वीकार किया कि उन्हें अधिसूचना पर हस्ताक्षर नहीं करने चाहिए थे। उन्होंने अपने अपने भाई को सूचित कर दिया है कि रामेश्वरम स्थित आवास में एक कमरा उनके लिए भी सुरक्षित रखें। सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद बूटा सिंह को त्यागपत्र देना पड़ा। मनमोहन सिंह किसी सरकारी कार्य से राष्ट्रपति से मिलने गए तो कलाम ने अपने त्यागपत्र की इच्छा उनके सामने भी जाहिर कर दी। सिंह स्तब्ध थे और उन्होंने कहा कि ऐसी परिस्थिति में उनकी सरकार का भी तख्ता पलट हो सकता है। कलाम ने इस्तीफा न देने का अनुरोध स्वीकार किया, लेकिन अपनी डायरी में लिख दिया कि मैं पूरी रात सो नहीं पाया, मेरी भावनाओं से बड़ा मेरा देश के प्रति कर्तव्य है। लिहाजा मैं कोई संकट पैदा नहीं करूंगा।

केसी त्यागी
(लेखक जद यू नेता हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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