संगठन ने पिछले जुलाई में इसके खिलाफ आंदोलन किया था, जिसके बाद सरकार ने इसे रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म के तरह लाने का वादा किया और जीएसटी काउंसिल में इसकी घोषणा भी की, लेकिन नोटिफिकेशन से निराशा हाथ लगी। पता चला कि सिर्फ प्रोपराइटरशिप और पार्टनरशिप फर्मों पर ही सिवर्स चार्ज लागू होगा न कि प्राइवेट लिमिटेड पर, जबकि सबसे ज्यादा गार्ड्स इन्ही कंपनियों के पास हैं।
करीब 80 लाख प्राइवेट सिक्योरिटी गार्ड्स वाली इंडस्ट्री प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘चौकीदार’ अभियान से बहुत उत्साहित नहीं है, अलबत्ता वह अपनी कई मुश्किलों को लेकर खुद केन्द्र सरकार से लड़ रही है। सिक्योरिटी सर्विसेज पर 18 फीसद जीएसटी के खिलाफ आंदोलन कर रही कंपनियां अब सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगा रही हैं और जीएसटी काउंसिल के एक आधे-अधूरे फैसले को कोर्ट में चुनौती दे चुकी हैं। उनका कहना है कि सरकार अगर ईज ऑफ बिजनस और गार्ड के वेतन व वेलफेयर स्कीमों की दिशा में कुछ ठोस कदम उठाए तो लाखों सुरक्षाकर्मियों का दिल जीत सकती है।
सेंट्रल असोसिएशन ऑफ प्राइवेट सिक्योरिटी इंडस्टी (काप्सी) के चेयरमैन अंकुर विक्रम सिंह ने बताया, करीब दो दशक के संघर्ष के बाद इन लाखों लोगों को सिक्योरिटी गार्ड और इंडस्ट्री का दर्जा मिला है। उन्हें ‘चौकीदार’ का टैग देकर एक तरह से पीछे धकेला जा रहा है। हम खुद को मॉडर्न, ऑर्गनाइज्ड और प्रोफेशनल फोर्स के रूप में स्थापित होते देखना चाहते हैं। ऐसे में हम चौकीदार के टैग से आहत हैं। उन्होंने बताया कि सिक्योरिटी सर्विसेज पर 18 फीसद जीएसटी है, जिसका असर कंपनी हो नहीं गार्ड पर भी पड़ता है। संगठन ने पिछले जुलाई में इसके खिलाफ आंदोलन किया था, जिसके बाद सरकार ने इसे रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म के तहत लाने का वादा किया और जीएसटी काउंसिल में इसकी घोषणा भी की, लेकिन नोटिफेकेशन से निराशा हाथ लगी।
पता चला कि सिर्फ प्रोपराइटरशिप और पार्टनशीप फर्मों पर ही रिवर्स चार्ज लागू होगा न कि प्राइवेट लिमिटेड पर, जबकि सबसे ज्यादा गार्ड्स इन्ही कंपनियों के पास है। कुंअर विक्रम सिंह आगे करते हैं कि जब रेगुलेशंस, ईपीएफ, ईएसआई जैसे कानून सबके लिए बराबर हैं, तो जीएसटी में यह भेदभाव क्यों? हमने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी है। संगठन ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर सिक्योरिटी की एजेंसियों को लाइसेंस देने, रिन्यूअल और वेरिफिकेशन में पेश आ रही बाधाओं को दूर करने की मांग की है।।
दिल्ली की सिक्योरिटी कंपनी सेकटेक लिमिटेड के एमडी आर एन सिंह ने कहा सैलरी और दूसरी सुविधाओं के स्तर पर आजा गार्ड्स की हालत अच्छी नहीं है, जिसे हम चाहकर भी ठीक नहीं कर पा रहे। राज्यों के बीच मिनिमय वेजेज में काफी अंतर एक बड़ी समस्या है। दिल्ली में 14,000 रुपये वेतन पर काम करने वाला गार्ड गुडगांव डेप्यूट नहीं होता चाहता, क्योंकि वहां मिनिमम वेज 8000 है। ऐसे ही बिहार और उड़ीसा में वेजेज 5-6 हजार ही हैं। इनमें यूनिफॉर्मिटी लाने की जरूरत है। दूसरी तरफ इंडस्ट्री का एक बड़ा हिस्सा अब भी असंगठित है, जहां कोई भी व्यक्ति मात्र वर्दी देकर मनमानी मजदूरी पर किसी को भी गार्ड रख लेता है और उनके कई तरह के काम लेता है। इसे भी रेग्युलेट किए जाने की मांग की जा रही है।।
राजेश अलख