चुनावी बांड : सुप्रीम कोर्ट की ये नरमी क्यों?

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सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार और भाजपा को अब एक और झटका दे दिया है। उसने कहा है कि सभी राजनीतिक दल 15 मई तक मिलने वाले सभी चुनावी बांडों का ब्यौरा चुनाव आयोग को 30 मई तक सौंप दें। ब्यौरा सौंपने का अर्थ यह हुआ कि किस पार्टी को किसने कितना चंदा दिया, यह चुनाव आयोग को बता दिया जाए। दूसरे शब्दों में चुनावी बांडों के जरिए मोदी सरकार ने काले धन को सफेद करने की जो कमाल की तरकीब निकाली थी, उसे अदालत ने पंचर कर दिया है।

बांडों का सबसे तगड़ा प्रावधान यह था कि इन बांडों को बैंको से खरीद कर पार्टियों को देने वालों का न तो नाम किसी को पता चलेगा और न ही राशि ! 20-20 हजार के कितने ही बांड खरीद कर आप किसी ही पार्टी के खाते में जमा कर दीजिए। आपसे कोई यह नहीं पूछेगा कि यह पैसा आप कहां से लाए? यह काला है या सफेद? यह देशी हैं या विदेशी ? यह कौनसी दलाली का पैसा है ? बोफोर्स का है, अगस्ता वेस्टलैंड का है या रफाल का है?

2017 में लगाई गई इस तिकड़म का फायदा भाजपा और कांग्रेस ने पिछले दिनों हुए राज्यों के चुनाव में जमकर उठाया लेकिन कांग्रेस बहुत पिछड़ गई। एक सूचना के मुताबिक लगभग 220 करोड़ रु. के बांड खरीदे गए, जिनमें से 215 करोड़ पर भाजपा ने हाथ साफ किया और कांग्रेस के पल्ले सिर्फ 5 करोड़ रु. के बांड पड़े। कांग्रेस ने फिर भी इन बांडों का विरोध नहीं किया। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के अलावा सभी पार्टियां इस गाय को दुहने में लगी हुई हैं।

माकपा और एक अन्य संस्था ने याचिका लगाकर भ्रष्टाचार के इस नए पैंतरे का विरोध किया है। ये बांड जब जारी हुए, तब ही मैंने इनका विरोध किया था। मुझे अफसोस है कि सर्वोच्च न्यायालय ने इसके फैसले में इतनी देर क्यों लगाई ? इस मामले में दो-टूक सख्ती क्यों नहीं बरती ? अभी तक खरीदे गए बांडों की कलई आज ही क्यों नहीं खुलवाई गई ? यह ठीक है कि नाम उजागर होने के डर से अब इन बांडों को कौन खरीदेगा ? मैंने 4 जुलाई 2017 को ही लिखा था कि ‘चुनावी बांड जारी करना भ्रष्टाचार की जड़ों को सींचना होगा।’ यही बात मुख्य चुनाव आयुक्त ने उन्हीं दिनों कुछ नरम शब्दों में कही थी लेकिन यह सभी पार्टियों की मजबूरी है।

वे क्या करें? दुनिया का सबसे खर्चीला चुनाव भारत में होता है। यह चुनाव ही सारे भ्रष्टाचार की गंगोत्री है। इस गंगोत्री में डुबकी लगाए बिना भारत में कोई नेता कैसे बन सकता है ? चुनावों का खर्च कम से कम हो, चुनाव-पद्धति को बदला जाए और भारत की राजनीति को भ्रष्टाचार-मुक्त कैसे किया जाए, इस बारे में मेरे दिमाग में कई सुझाव हैं लेकिन उसकी चर्चा कभी बाद में करेंगे।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके जिनी विचार हैं

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