चीन का झूठ सिर्फ एक और दुनिया तबाह !

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कैसे कोई देश और उसका राष्ट्रपति, चांसलर, प्रधानमंत्री मानवता पर यमराज बन प्रलय ढाता है, इसके प्रमाण में विश्व युद्ध हैं, कई नरसंहार हैं तो ताजा कोरोना प्रलय भी है। एक वायरस दुनिया को तबाह कर दे रहा है तो वजह चीन का एक झूठ है। चीन ने यदि झूठ नहीं बोला होता तो वायरस को तुरंत खत्म किया जा सकता था, दबाया जा सकता था। चीन
ने झूठ बोला, शी जिनफिंग सरकार ने दुनिया से वायरस छुपाया। तभी वैज्ञानिक कह रहे हैं कि चीन यदि तीन सप्ताह पहले दुनिया को आगाह कर देता और फिर हुबेई-वुहान में मरने वालों की संख्या, महामारी की भयावहता डम्लुएचओ, वैश्विक वैज्ञानिकों के साथ पारदर्शिता से शेयर करता, मरने वालों के सच्चे आंकड़े बताता तो वायरस को लेकर यूरोप, अमेरिका, दुनिया बहुत पहले सतर्क हो चुकी होती। उतने लोग मौत की कगार पर नहीं पहुंचते जितने महीनों में पहुंचे हैं या पहुंचेंगे। चीन पहले दिन से लेकर अभी तक झूठ बोल रहा है। न्यूयार्क पोस्ट, ब्लूमबर्ग, फॉरेन अफेयर्स जैसे वैश्विक मीडिया की ताजा रपटों में चीन का झूठ दहलाने वाला है। चीन अभी भी वायरस प्रभावित मरीजों की संख्या को लेकर झूठा रवैया अपनाए हुए हैं। अमेरिका की खुफिया एजेंसियों ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को दो टूक अंदाज में रिपोर्ट दी है कि चीन जानबूझकर कोरोन मरीजों और उससे मरने वालों की संख्या छुपा रहा है।

अमेरिकी राष्ट्रपति की कोरोना रिस्पांस टीम के डा. बिरस ने इसी सप्ताह ब्रीफिंग में मीडिया को बताया कि यदि चीन के दिए शुरुआती डाटा को देखेंगे तो लगेगा मानो वायरस पुराने सार्स जैसा है न कि वैश्विक महामारी। इसी के चलते यूरोप, अमेरिका में प्रारंभिक भ्रम था। लेकिन जब इटली और स्पेन से सच्चे डाटा आने लगे तो चिकित्सा की वैश्विक जमात ने जाना कि यह भयावह वैश्विक महामारी है। मतलब यदि चीन ने मध्य फरवरी में भी वुहान की सत्यता वैश्विक मीडिया से प्रकट होने दी होती तो पूरी दुनिया बहुत जल्दी, संजीदगी से वायरस से लडऩे में अपने आपको झोंक देती। लेकिन चीन ने दस तरह के झूठ और प्रोपेगेंडा में दुनिया को गुमराह किया। चीन ने मरीजों की संख्या, मृतकों का आंकड़ा जानबूझकर कम दिखलाया। अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट, रेडियो फ्री एशिया विश्लेषण आदि ने इसके प्रमाण बताए हैं। चीन ने वुहान में मरने वालों की संख्या 2,535 बतलाई जबकि प्रमाण इसके 20 गुना अधिक होने के हैं। रेडियो फ्री एशिया विश्लेषण अनुसार वुहान में एक सप्ताह से ज्यादा समय वहां के सात शवगृहों से पांच सौ अस्थिकलश परिवारों को प्रतिदिन सुपुर्द करने की रिपोर्ट है। एक रिपोर्ट दो दिन में पांच हजार अस्थिकलश भेजने के शिपमेंट की है।

तथ्य है कि चीन ने डम्लुएचओ या यूएस सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल आदि किसी संस्था, किसी विदेशी एसपर्ट को वुहान में प्रारंभिक दिनों में ग्राउंड रियलिटी जा कर देखने की अनुमति नहीं दी। प्रारंभ में यह झूठ बनने दिया कि वायरस एक व्यति से दूसरे को संक्रमित होने वाला नहीं है। तथ्य यह भी है कि चीन ने कोरोना वायरस पैदा होने के महीने से लेकर वायरस घातक होने की एक चीनी डॉक्टर की चेतावनी को बाकायदा दबाया। वायरस जगजाहिर हुआ तो उससे अपनी लड़ाई को पहले दुनिया की नजरों से छुपाया और फिर राष्ट्रपति शी जिनफिंग ने वुहान का दौरा कर, फटाफट वायरस पर काबू पाने का शेख चिल्लीपना दिखा कर दुनिया को गुमराह किया कि यह सार्स जैसा हल्का वायरस है, जिसे उसके देश ने चुस्ती, ताकत और तानाशाही से दबा डाला। राष्ट्रपति शी जिनफिंग ने दुनिया को हकीकत, वायरस की गंभीरता बतलाते हुए दुनिया को चेताने वाला एक बयान नहीं दिया लेकिन अपनी पीठ जरूर अपने मीडिया से थपथपवाते हुए दुनिया को गुमराह किया कि वायरस से निपटना मुश्किल नहीं है। तभी कई मायनों में चीन और उसके राष्ट्रपति शी जिनफिंग आज पूरी मानवता को खतरे में डालने वाले अक्षम्य वॉर क्रिमिनल हैं। चीन को अपने झूठ, अपने पाप की वैश्विक माफी मांगनी चाहिए।

मगर जैसे तानाशाह देश और उसका तानाशाह करता है वैसे ही राष्ट्रपति शी और उनकी प्रोपेगेंडा मशीनरी दुनिया में उलटे प्रचार कर रही है कि वायरस को हराना कोई चीन से सीखे। चीन दुनिया के 20 – 25 देशों में हवाई जहाजों से दस्ताने, मास्क, मेडिकल सामान आदि भेज जतला रहा है कि जान लो दुनिया के लोगों कि उसकी मदद से ही कोरोना से लड़ा जा सकता है। वह है दुनिया का रोल मॉडल!पर अपना मानना है कि चीन 21वीं सदी के मानव मनोविज्ञान में नंबर एक कलंकित देश हो गया है। कोरोना वायरस से चीन और चीन के लोगों के प्रति शेष दुनिया के मनोविज्ञान में एक ऐसा भाव पैदा हुआ है, जिससे उसका अछूत होना, उस पर शक होना 21वीं सदी में हकीकत होगी। चीन न केवल दुनिया का नंबर एक झूठा देश प्रमाणित है, बल्कि उसकी नीयत, उसके खानपान, उसके जीवन जीने के तरीकों और आर्थिक व्यवहार पर अब शेष विश्व खुर्दबीन से नजर गढ़ाए रहेगा।सवाल है राष्ट्रपति शी जिनफिंग, उनकी कम्युनिस्ट पार्टी और चीन का सत्ताधारी समूह या अपने झूठ पर पश्चाताप कर रहा होगा? क्या चीन सुधर सकता है, पारदर्शी-सत्यवादी बन सकता है? हर कौम, हर राष्ट्र-राज्य अपने संस्कारों, अपने डीएनए में जकड़ा होता है। यह बात कोरोना वायरस के मौजूदा संकट में तमाम सभ्यतागत देशों के व्यवहार से भी प्रकट हो रही है।

पूरी दुनिया चीनी वायरस के हमले की मारी है लेकिन यूरोप के देश अलग मिजाज में लड़ते दिख रहे हैं तो अमेरिका अलग तरह से और भारत अलग तरह से तो रूस, ईरान अपने मिजाज अनुसार कोरोना से लड़ते हुए दिख रहे हैं। इस्लामी देश, अफ्रीकी देश, आसियान देश में प्रवृत्तियां अलग दिख रही हैं। हो सकता है मैं गलत होऊं, मगर अपना मानना है कि कोरोना वायरस से सर्वाधिक मौतें, उसकी सर्वाधिक कीमत उन देशों को भुगतनी पड़ेगी, जहां झूठ, तानाशाही और अहंमन्यता का राज है। इटली, स्पेन, अमेरिका और यूरोप में आज मरीजों की संख्या और मौतें ज्यादा दिख रही हैं लेकिन ये देश छह महीनों में पांच- दस लाख जानें गंवा कर अपना इलाज, अपना वैसीन बना लेंगे। अपनी स्वास्थ्य-चिकित्सा व्यवस्था को पुता, वायरस से बार-बार फ्लू की तरह लडऩे में अपने को समर्थ बना लेंगे। ये अपनी लोकतांत्रिकता, पारदर्शिता, वैज्ञानिकता में व्यवस्था को और चाकचौबंद बना लेंगे। इनमें नई लीडरशीप, नई व्यवस्थाएं, नई जीवन पद्धति का विकास होगा लेकिन पुतिन का रूस हो या शी जिनफिंग का चीन या खुमैनी का ईरान या एशिया-अफ्रीकालातीनी अमेरिका की तानाशाह व्यवस्था वाले देश तबाही और उसके सदमे में बुरी तरह जर्जर होंगे। इस तरह के देश झूठ, अहंमन्यता, मूर्खताओं की बरबादी में वायरस के रहमोकरम में मरेंगे।

इसे ताजा उदाहरण से समझें। रूस में कोरोना को लेकर सौ फीसदी लापरवाही थी। मतलब राष्ट्रपति पुतिन कहते रहे थे कि हमारे यहां कोरोना नहीं है, वह नहीं आएगा। और जब लक्षण दिखे तो पुतिन ने रूस की जनता को मैसेज दिया कि मैं हूं न! मतलब उनका नेता पुतिन कोरोना को भगा देगा। सो, शेर के अंदाज में खास डॉक्टर के साथ पुतिन अस्पताल गए। शेखचिल्ली जैसा प्रोपेगेंडा किया और खुद कोरोना से संक्रमित हो बीमार हो गए। तब पुतिन और उनकी सरकार को समझ आया कि कोरोना किसी को नहीं छोड़ता है, वह बिना बताए पहुंचता है और तब रूस ताबड़तोड लॉकडाउन में व पुतिन वारंटाइन में। ऐसे भ्रम में चीन के शी जिनफिंग भी दिसंबर में थे। तब वुहान के एक डॉक्टर ली वेनलियांग ने वहां अपने
मेडिकल ग्रुप में पोस्ट डाल वायरस की रहस्यमयी बीमारी की चर्चा की। लेकिन प्रशासन ने उस डॉक्टर पर अफवाह फैलाने का आरोप लगाया। उसे आधी रात गिरफ्तार कर मजबूर किया कि वह लिख कर दे कि उसने ‘झूठा कमेंट’ पोस्ट किया है। वह डॉक्टर सही साबित हुआ और त्रासद खबर चीन से मिली कि वह डाक्टर फरवरी में वायरस से मरा। सोचें एक डाक्टर ने सत्य बूझा, उसने चेताया लेकिन तानाशाह सरकार ने, प्रशासन ने उसे जेल में डाला, उससे माफी मंगवाई।

फिर जब जनवरी में वायरस का दैत्य चीनियों की जान लेने लगा तो शी जिनफिंग ने लॉकडाउन कर दुनिया से असली तस्वीर छुपाई और खबरों की, मौत की संख्या सेंसर की। साउथ हैंपटन विश्वविद्यालय के अध्ययन का निष्कर्ष है कि यदि चीन अपने डॉक्टर की बात सुनता या तीन सप्ताह पहले कोरोना वायरस की जानकारी दुनिया से शेयर कर लेता तो 95 प्रतिशत संक्रमण रोका जा सकता था। अमेरिका के उपराष्ट्रपति माइक पेंस ने कहा है कि यदि चीन पहले हमें सच्चाई बताता तो हम कोरोना से लडऩे में बेहतर स्थिति में होते। अब यह जाहिर है कि दिसंबर में दुनिया ने जब जाना कि चीन उसका सामना कर रहा है तो उससे पहले, संभवतया एक महीने पहले चीन में महामारी फूट चुकी थी। नेब्रास्का के एक सीनेटर का बयान है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी झूठ बोली है, अभी भी बोल रही है और वह अपने शासन को बचाने के लिए वायरस पर लगातार झूठ बोलती रहेगी।निश्चित ही ऐसा ईरान में हो रहा होगा, उत्तर कोरिया में हो रहा होगा, पुतिन के रूस में होगा। तभी कोरोना वायरस उन देशों की आबादी को ज्यादा खाएगा जो झूठ के औजारों से वायरस से लड़ रहे हैं। जो टेस्ट नहीं करवा रहे हैं और शेखचिल्ली बने हुए हैं।

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप ने भी झूठ से वायरस से लडऩा चाहा था और यदि उनका बस चलता तो न्यूर्याक में अभी भी धंधा हो रहा होता, मतलब आर्थिकी-बाजार-आवाजाही खुली हुई होती। मगर दमदार अमेरिकी लोकतंत्र ने ट्रंप के झूठ पर अंकुश लगाया और वहां के मीडिया व न्यूयार्क के गर्वनर ने अपने अधिकारों से लॉकडाउन करके देश को इमरजेंसी मोड में डाला। तभी अमेरिका में लाखों टेस्ट हो रहे हैं, रोजाना मरीजों के संक्रमित होने, मरने का पैनिक बन रहा है, मगर सत्य का पैनिक, उसके आंकड़े देश को भविष्य की बरबादी से बचा देंगे, अमेरिकायूरोप में तीसरी दुनिया के देशों की तरह लोग कीड़े-मकोड़ों की तरह नहीं मरेंगे। अमेरिका और यूरोप पांच-दस लाख मौतों के बाद भविष्य की तैयारियां लिए हुए होंगे जबकि झूठ, प्रोपेगेंडा और शेखचिल्ली व अंधविश्वासों से वायरस का मुकाबला करने वाले तीसरी दुनिया के देश न केवल असंख्य नागरिकों की जान से खेलेंगे, बल्कि अंत में हाड़-कंकाल लिए दुनिया में भीख के मोहताज बनेंगे। यह वर्ष 2020 का सारांश होना है।

हरिशंकर व्यास
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं।)

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