चित्रकूट में संघ चिंतन और योगी

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उत्तर प्रदेश के चुनाव कैसे जीते जाएं इस पर गहन चिंतन के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सभी अधिकारियों और प्रचारकों का एक सम्मेलन चित्रकूट में हुआ हैं। ऐसे शिविर में हुई कोई भी वार्ता या लिए गए निर्णय इतने गोपनीय रखे जाते हैं कि वे कभी बाहर नहीं आते। मीडिया में जो खबरें छपती हैं वो केवल अनुमान पर आधारित होती हैं, क्योंकि संघ के प्रचारक कभी असली बात बाहर किसी से साझा नहीं करते। इसलिए अटकलें लगाने के बजाए हम अपनी सामान्य बुद्धि से ही इस महत्वपूर्ण शिविर के उद्देश्य, वार्ता के विषय और रणनीति पर अपने विचार बना सकते है।

जहां तक उत्तर प्रदेश के आगामी विधान सभा के चुनाव की बात है तो जिस तरह की अफ़रा-तफ़री संघ और भाजपा में मची है उससे स्पष्ट है कि योगी सरकार की फिर से जीत को लेकर गहरी आशंका व्यक्त की जा रही है, जो निर्मूल नहीं है। संघ और भाजपा के गोपनीय सर्वेक्षणों में योगी सरकार की लोकप्रियता वैसी नहीं सामने आई जैसी सैंकड़ों करोड़ के विज्ञापन दिखा कर छवि बनाने की कोशिश की गई है। ये ठीक वैसा ही है, जैसा 2004 के लोकसभा चुनाव में वाजपेयी जी के चुनाव प्रचार को तत्कालीन भाजपा नेता प्रमोद महाजन ने ‘इंडिया शाइनिंग’ का नारा देकर खूब ढिंढोरा पीटा था। विपक्ष तब भी बिखरा हुआ था। वाजपेयी जी की लोकप्रियता के सामने सोनिया गांधी को बहुत हल्के में लिया जा रहा था। सुषमा स्वराज और प्रमोद महाजन ने तो उन्हें विदेशी बता कर काफ़ी पीछे धकेलने का प्रयास किया। पर परिणाम भाजपा और संघ की आशा के प्रतिकूल आए। ऐसा ही दिल्ली, पंजाब और पश्चिम बंगाल आदि राज्यों के विधान सभा चुनावों में भी हुआ। जहां संघ और भाजपा ने हर हथकंडे अपनाए, हज़ारों करोड़ रुपया खर्च किया, पर मतदाताओं ने उसे नकार दिया।

अगर योगी जी के शासन की बात करें तो याद करना होगा कि मुख्य मंत्री बनते ही उन्होंने सबसे पहले कदम क्या उठाए, रोमियो स्क्वॉड, क़त्लखाने और मांस की दुकानों पर छापे, लव जिहाद का नारा और दंगों में मुसलमानों को आरोपित करके उन पर पुलिस का सख़्त डंडा या उनकी सम्पत्ति कुर्क़ करना जैसे कुछ चर्चित कदम उठा कर योगी जी ने उत्तर प्रदेश के कट्टर हिंदुओं का दिल जीत लिया। दशकों बाद उन्हें लगा कि कोई ऐसा मुख्य मंत्री आया है जो हिंदुत्व के मुद्दे को पूरे दम-ख़म से लागू करेगा। पर यह मोह जल्दी ही भंग हो गया। योगी की इस कार्यशैली के प्रशंसक अब पहले की तुलना में काफ़ी कम हो गए हैं।

इसका मुख्य कारण है कि योगी राज में बेरोज़गारी चरम सीमा पर पहुँच गई है। महंगाई सारे देश में ही आसमान छू रही है तो उत्तर प्रदेश भी उससे अछूता नहीं है। इसके साथ ही नोटबंदी और जीएसटी के कारण तमाम उद्योग धंधे और व्यवसाय ठप्प हो गए हैं, जिसके कारण उत्तर प्रदेश की बहुसंख्यक जनता आर्थिक रूप से बदहाल हुई है। रही-सही मार कोविड काल में, विशेषकर दूसरे दौर में, स्वास्थ्य सेवाओं की विफलता ने पूरी कर डाली। कोई घर ऐसा न होगा जिसका परिचित या रिश्तेदार इस अव्यवस्था के कारण मौत की भेंट न चढ़ा हो।

बड़ी तादाद में लाशों को गंगा में बहाया जाना या दफ़नाया जाना एक ऐसा हृदयविदारक अनुभव था जो, हिंदू शासन काल में हिंदुओं की आत्मा तक में सिहरन पैदा कर गया। क्योंकि 1000 साल के मुसलमानों के शासन काल में एक बार भी ऐसा नहीं हुआ जब आर्थिक तंगी या लकड़ी की अनुपलब्धता के कारण हिंदुओं को अपने प्रियजनों के शवों को दफ़नाना पड़ा हो। इस भयानक त्रासदी से हिंदू मन पर जो चोट लगी है उसे भूलने में सदियाँ बीत जाएँगीं।

योगी सरकार के कुछ अधिकारी उन्हें गुमराह कर हज़ारों करोड़ रुपया हिंदुत्व के नाम पर नाटक-नौटंकियों पर खर्च करवाते रहे। जिससे योगी सरकार को क्षणिक वाह-वाही तो मिल गई, लेकिन इसका आम मतदाता को कोई भी लाभ नहीं मिला। बहुत बड़ी रक़म इन नाच-गानों और आडम्बर में बर्बाद हो गई। प्रयागराज के अर्ध-कुम्भ को पूर्ण-कुम्भ बता कर हज़ारों करोड़ रुपया बर्बाद करना या वृंदावन की ‘कुम्भ पूर्व वैष्णव बैठक’ को भी कोविड काल में पूर्ण-कुम्भ की तरह महिमा मंडित करना शेख़चिल्ली वाले काम थे। मथुरा ज़िले में तो कोरोना की दूसरी लहर वृंदावन के इसी अनियंत्रित आयोजन के बाद ही बुरी तरह आई। जिसके कारण हर गाँव ने मौत का मंजर देखा। कोविड काल में संघ की कोई भूमिका नज़र नहीं आई। न तो दवा और इंजेक्शनों की काला बाज़ारी रोकने में, न अस्पतालों में बेड के लिए बदहवास दौड़ते परिवारों की मदद करने में और न ही गरीब परिवारों को दाह संस्कार के लिए लकड़ी उपलब्ध कराने के लिए।

मथुरा, अयोध्या और काशी के विकास के नाम पर दिल खोल कर धन लुटाया गया। पर दृष्टि, अनुभव, ज्ञान व धर्म के प्रति संवेदनशीलता के अभाव में हवाई विशेषज्ञों की सलाह पर ये धन भ्रष्टाचार और बर्बादी का कारण बना। जिसका कोई प्रशंसनीय बदलाव इन धर्म नगरियों में नहीं दिखाई पड़ रहा है। आधुनिकरण के नाम पर प्राचीन धरोहरों को जिस बेदर्दी से नष्ट किया गया उससे काशीवासियों और दुनिया भर में काशी की अनूठी गलियों के प्रशंसकों को ऐसा हृदयघात लगा है क्योंकि वे इसे रोकने के लिए कुछ भी नहीं कर पाए। सदियों की सांस्कृतिक विरासत को बुलडोजरों ने निर्ममता से धूलधूसरित कर दिया।

योगी सरकार ने गौ सेवा और गौ रक्षा के अभियान को भी खुले हाथ से सैंकड़ों करोड़ रुपया दिया। जो एक सराहनीय कदम था। पर दुर्भाग्य से यहाँ भी संघ और भाजपा के बड़े लोगों ने मिलकर गौशालाओं पर क़ब्ज़े करने का और गौ सेवा के धन को उर्र-फुर्र करने का ऐसा निंदनीय कृत्य किया है जिससे गौ माता उन्हें कभी क्षमा नहीं करेंगी । इस आरोप को सिद्ध करने के लिए तमाम प्रमाण भी उपलब्ध हैं।

इन सब कमियों को समय-समय पर जब भी पत्रकारों या जागरूक नागरिकों ने उजागर किया या प्रश्न पूछे तो उन पर दर्जनों एफ़आईआर दर्ज करवा कर लोकतंत्र का गला घोंटने का जैसा निंदनीय कार्य हुआ वैसा उत्तर प्रदेश की जनता ने पहले कभी नहीं देखा था। इसलिए केवल यह मान कर कि विपक्ष बिखरा है, वैतरणी पार नहीं होगी। क्या विकल्प बनेगा या नहीं बनेगा ये तो समय बताएगा। पर आश्चर्य की बात यह है कि जिस घबराहट में संघ आज सक्रिय हुआ है अगर समय रहते उसने चारों तरफ़ से उठ रही आवाज़ों को सुना होता तो स्थिति इतनी न बिगड़ती। पर ये भी हिंदुओं का दुर्भाग्य है कि जब-जब संघ वालों को सत्ता मिलती है, उनका अहंकार आसमान को छूने लगता है। देश और धर्म की सेवा के नाम फिर जो नौटंकी चलती है उसका पटाक्षेप प्रभु करते हैं और हर मतदाता उसमें अपनी भूमिका निभाता है।

विनीत नारायण
(लेखक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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