चन्द्रयान का विक्रम और खटका

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पिछले कुछ अरसे से मैं टोका-टोकी, नजर-दोष आदि बातों में विश्वास करने लगा हूं। जैसे कि मेरा मानना है कि अगर मैं कुछ अच्छी बात सोचू तो वह उतनाt चरितार्थ नहीं होती है जितनी की बुरी बात। जैसे कि अगर कार में सवारी करते समय मेरे मन में यह विचार आ जाए कि यह तो काफी लंबे समय से पंचर नहीं हुई तो पक्का है कि कुछ दूर चलने के बाद ही वह पंचर हो जाएगी।

मेरा मानना है कि अगर आप किसी काम पर घर से निकल रहे हो तो न तो आपको टोका जाना चाहिए और न ही घर से निकलने के बाद आपको दोबारा वापस आना चाहिए। जब कोई बच्चा शरारतें करता था तो बुजुर्ग अक्सर यह पूछते थे कि छठी पर इसे घुट्टी किसने पिलाई थी। माना जाता है कि जो व्यक्ति बच्चे के पैदा होने के बाद छठी पर घुट्टी पिलाता है उस बच्चे में उसके गुण अवगुण आ जाते हैं।

आज भी नए बन रहे घर के बाहर नजरबट्टू लटकाए जाते हैं। बच्चो को काला धागा पहनाया जाता है। बुजुर्ग महिला सबके सामने उन्हें दूध पिलाने से मना करती है। हम लोग रावण, विभीषण, कैकेयी, द्रौपदी सरीखे नामो को नहीं रखते हैं। नवीनतम उदाहरण सामने आया है। आमतौर पर जब हम लोग कोई नया काम कर रहे होते हैं तो बुजुर्ग सलाह देते हैं कि जब तक वह पूरा न हो जाए उस पर ज्यादा चर्चा नहीं करनी चाहिए और न ही ज्यादा लोगों को उसके बारे में बताना चाहिए।

जब हमारा चंद्रयान जा रहा था और उसे लेकर आम आदमी से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक बौराए हुए थे तो मैँ चुपचाप उसको नजरअंदाज कर रहा था। मैंने उसके चांद पर उतरने तक की तस्वीरे देखने की कोशिश नहीं की। इसकी वजह मुझे खतरा था कि कहीं हमारा यह अतिउत्साह उसे असफल न बना दे। और वही हुआ भी।

इसकी वजह यह थी कि च्रद्रयान को लैंडर का नाम प्रसिद्ध वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के नाम पर विक्रम रखा गया था जोकि भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक माने जाते हैं। वे बहुत महान वैज्ञानिक थे उन्होंने परमाणु कार्यक्रम को भी आगे बढ़ने में काफी सहयोग दिया। वे इस क्षेत्र में जितने सफल थे, वैसे अपने निजी पारिवारिक जीवन में उसकी दशांस सफलता भी नहीं हासिल कर पाए।

विक्रम अंबालाल साराभाई तो मानो मुंह में सोने की चम्मच लेकर पैदा हुए थे। वे भाजपा नेता अमित शाह की तरह गुजराती व जैन थे। उनके पिता अंबालाल साराभाई अपने समय में देश के आठवे सबसे बड़े उद्योगपति थे। उनकी कपड़ा मिले थी। रसायन का धंधा था। उनके परिवार ने कपड़ा उद्योग के क्षेत्र में अनुसंधान पर काम किया तो देश में हैंडलूम से चलने वाली उनकी मिल पहली थी। वे पढ़ाई के लिए विदेश गए और फिर द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने पर भारत आ गए और अंततः बेंगलुरू स्थित इंडियन साइंस अकादमी में जाने-माने नोबल पुरुस्कार विजेता सीवी रमन के तहत काम करने लगे।

उन्होंने जानी-मानी शास्त्रीय नृत्य की नर्तकी मृणालिनी साराभाई से शादी की जोकि एक जज की बेटी थी व केरल के कोल्लम इलाके में रहने वाली थी। वे दक्षिण भारतीय थी। वे कुच्चीपुड़ी, मोहिनी, अट्टम सरीखे नृत्यो की काफी पारंगत थी। उनकी मां अम्मू की बड़ी बहन का नाम लक्ष्मी सहगल था जोकि सुभाष चंद्र बोस की इंडियन नेशनल आर्मी (आजाद हिंद फौज) की महिला विंग की प्रमुख थी। मृणालिनी साराभाई ने अपनी पढ़ाई शांति निकेतन से शुरू की और नृत्य सीखने के लिए स्विट्जर लैड तक गई।

उनके दो बच्चे हैं। जानी-मानी नर्तकी मल्लिका व सामाजिक कार्यकर्ता बेटा कार्तिकेय। उन्होंने इसरो की स्थापना के साथ ही विज्ञान के क्षेत्र में बहुत काम किया मगर अपने प्रेम प्रसंग के कारण उनकी पत्नी से ठन गई थी पारिवारिक सुख नहीं मिला। अपनी पत्नी की सहेली डा. कमला चौधरी से उनकी दोस्ती हो गई जोकि दिल्ली क्लाथ मिल्स डीसीएम के दिल्ली दफ्तर में काम करती थी। कमला चौधरी के पिता का स्वर्गवास हो गया था वे सुंदर व युवा थी। उन्हें अपने साथ रखने के लिए विक्रम साराभाई ने अहमदाबाद के अंदर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट की स्थापना की जोकि इससे पहले कलकत्ता में ही था।

इसके लिए उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल से अपने संबंधों का भी लाभ उठाया। यह सब उन्हें अपने पास रखने के लिए किया गया था। उन्होंने उन्हें आईआईएम के निदेशक बनाया। हालांकि डा. कमला चौधरी के भतीजे सुधीर ने अपनी हाल की पुस्तक में खुलासा किया है कि उन दोनों के 20 साल तक संबंध रहे। कमला चौधरी नाम की निदेशक थी पर सारा संस्थान विक्रम ही चलाते थे। वहां आईआईएम बनाना वैसा ही था जैसे शहंशाह द्वारा मुमताज के लिए ताजमहल बनवाना। उनका पारिवारिक जीवन खराब हो गया। इसलिए जब प्रेम के प्रतीक चांद पर भेजे जाने वाले लैंडर का नाम विक्रम रखा गया तो मैं तभी से उसकी सफलता पर शक कर रहा था।

विवेक सक्सेना
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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