घोषणा-पत्र अधूरा है लेकिन…

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कांग्रेस पार्टी का चुनावी घोषणा-पत्र यदि पढ़ें तो ऐसा लगता है कि यदि उसकी सरकार बन गई तो भारत के ‘अच्छे-दिन’ शुरु हो जाएंगे लेकिन डर यही है कि जैसे ‘अच्छे दिन’ वर्तमान सरकार लाई है, क्या वैसे ही अच्छे दिन कांग्रेस लाएगी? चुनाव के दौरान बड़े-बड़े सब्जबाग दिखाना हर पार्टी और हर नेता की मजबूरी होती है। जाहिर है कि जब भाजपा का घोषणा पत्र आएगा तो वह कांग्रेस से भी ज्यादा सपने दिखाएगा।

यहीं जनता को तय करना है कि वह किस पर विश्वास करे और किस पर नहीं? कांग्रेस ने हर गरीब के लिए 72000 रु. साल की न्यूनतम मदद की घोषणा पहले ही कर दी थी। इसी तरह वह शिक्षा और स्वास्थ्य पर भी दुगुना खर्च करना चाहती है लेकिन उसने यह नहीं बताया कि इन दोनों मामलों में वह क्या-क्या बुनियादी सुधार करेगी?

अंग्रेज के जमाने से चली आ रही मंहगी चिकित्सा-पद्धति और गुलाम मनोवृत्ति वाली शिक्षा-पद्धति को बदलने का कोई भरोसा उस प्रस्ताव में नहीं है। किसान-बजट अलग से होगा, यह अच्छी बात है लेकिन किसानों को चूसनियां पकड़ाने से भारतीय खेती का उद्धार कैसे होगा? मनरेगा में 100 के बजाय 150 दिन का रोजगार देने और उसकी राशि बढ़ाने की बात भी उत्तम है लेकिन उसमें अब तक हुए भ्रष्टाचार के निवारण के उपाय किए बिना वह सफल कैसे होगी?

सीमांत-क्षेत्रों में लागू ‘अफसा’ काननू और देशद्रोह के मूर्खतापूर्ण अंग्रेजी कानूनों को हटाने की बात भी ठीक है लेकिन देश की न्याय-व्यवस्था में बुनियादी सुधार की दृष्टि का अभाव है। औरतों को संसद और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत प्रतिनिधित्व देने का वायदा अच्छा है लेकिन पहले उन्हें पार्टी पदों में उतनी जगह देने की बात क्यों नहीं है? चुनावी बांड खत्म करने की बात जायज है लेकिन कांग्रेस समेत सभी पार्टियां चुनावों में अरबों-खरबों खर्च करती हैं और भ्रष्टाचार की गंगोत्री बन जाती हैं, उसकी शुद्धि का भी कोई उपाय या कोई चिंता कांग्रेस की नहीं दिखाई पड़ती।

सरकारी संस्थाओं, रिजर्व बैंक, नीति आयोग, सीबीआई, निगरानी आयोग आदि की स्वायत्ता लौटाने की बात करने वाली कांग्रेस ने क्या इनका दुरुपयोग कम किया है? लेकिन उन्हें सुधारने की बात का स्वागत है। यदि भाजपा इन्हीं सब मुद्दों पर बेहतर और ठोस घोषणा-पत्र प्रसारित कर देगी तो कम से कम यह तो होगा कि जो भी गठबंधन सत्तारुढ़ होगा, उसके लिए मजबूरी होगी कि उनमें से कुछ वायदों को वह लागू करे। क्या मालूम भारतीय जनता का मन इन घोषणा-पत्रों से इतना मजबूत बन जाए कि इन्हें लागू करवाने के लिए वह डॉ. लोहिया के इस कथन पर अमल कर दे कि ‘जिंदा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करती।’

डॉ. वैदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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