फिल्म-अभिनेता से नेता बने कमल हासन ने बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया है। उन्होंने कह दिया कि नाथूराम गोड़से भारत का पहला आतंकवादी था, जिसने महात्मा गांधी की हत्या की थी। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कह दिया कि वह ‘हिंदू’ था। याने वह पहला ‘हिंदू आतंकवादी’ था। उनके कहे का ऐसा अर्थ इसलिए लगाया जा रहा है कि यह भाषण उन्होंने तमिलनाडु की एक मुस्लिमबहुल बस्ती में दिया था।
कुछ अखबारों ने आतंकवादी की जगह उग्रवादी (एक्सट्रीमिस्ट) शब्द का प्रयोग किया है। इसमें शक नहीं कि गोड़से उग्रवादी था। जिसके विचार और कर्म अतिवादी हों, मर्यादाविहीन हों, हिंसक हों, उसे उग्रवादी ही कहा जाएगा लेकिन किसी हत्यारे को आप आतंकवादी कैसे कह सकते हैं? आतंकवादी का पहला और सबसे बड़ा लक्ष्य होता है, अपने हिंसक कर्म से लोगों में डर पैदा कर देना या आतंक फैला देना।
गांधीजी की हत्या से कौनसा आतंक फैला? कौन लोग डर गए? वह शुद्ध हत्या थी। उसे अब आतंक बताना और मुसलमानों की बस्ती में जाकर यह कहने का अर्थ क्या है? इसका एक ही अर्थ है कि इस्लामी आतंक की टक्कर में हिंदू आतंक को खड़ा करना और मुसलमानों का मुंडन करके उनके वोट कबाड़ना। गोडसे हिंदू आतंकी तो शायद तब कहाता जब वह किसी जिन्ना या लियाकत अली खान पर गोली चलाता। उसने तो गांधी पर गोली चलाई।
एक कट्टर हिंदू को मारनेवाला हिंदू आतंकी कैसे हो सकता है? कमल हासन से यह भूल हुई तो वे क्षमा के योग्य हैं, क्योंकि वे अभिनेता हैं या नेता हैं। कोई इतिहासकार या बुद्धिजीवी नहीं है। कमल हासन को शायद पता नहीं है कि जो काम गांधी के साथ गोडसे ने किया, वही काम महर्षि दयानंद सरस्वती के साथ 1883 में उनके रसोइए जगन्नाथ ने किया था। वैसे कमल हासन भाजपा के प्रिय पात्र रहे हैं।
अटलजी ने प्रधानमंत्री के तौर पर जब पहला प्रवासी सम्मेलन दिल्ली में किया था तो उसके एक सत्र का अध्यक्ष मैं था, सुषमा स्वराज मुख्य अतिथि थीं और कमल हासन उसके अतिथि थे। उस समय हासन की राष्ट्रवादिता देखने लायक थी लेकिन अब हासन वोटों के खातिर सांप्रदायिक दंगल में कूद पड़े हैं। उनके भाषण का तमिलनाडू के कांग्रेसी नेता समर्थन कर रहे हैं और भाजपाई विरोध !
भाजपा नेताओं ने चुनाव आयोग से मांग की है कि कमल हासन पर पांच दिन तक प्रतिबंध लगा दिया जाए ताकि वे चुनाव-प्रचार न कर सकें। अन्नाद्रमुक के एक नेता ने उनकी जबान काट डालने की इच्छा व्यक्त की है। अब कितने नेताओं की जुबान आप काटेंगें ? सभी बेलगाम हो रहे हैं।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं