खुदाई में अपन की पीएचडी है भाय !

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खुदाई हमारी संस्कार में रची बसी है। हमारे पुरखों की यह विरासत रही है। खुदाई की वजह से हमने ऐतिहासिक सभ्यताएं हासिल की हैं, जिनका महत्व हमारी इतिहास की मोटी-मोटी किताबों में दर्ज है। खुदाई से निकली ऐसी सभ्यताओं पर हमें गर्व हैं। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के साथ मेसोपोटामियां जैसी संस्कृति खुदाई से निकली सभ्यतांएं हैं। जिस मुल्क में अपन रहते हैं वहां खुदाई हर नागरिक का जन्मसिद्ध अधिकार है। खुदाई यहां की एक कला और संस्कृति है। खुदाई निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। पुल, रेल, सड़कें, बांध, अवास, अंडरब्रिज, कालोनियां, सीवर यह सब खुदाई से निकली बुलंदियां हैं। अब आप सोचिए! खुदाई बंद हो जाए तो विकास का पहिया जाम हो जाएगा। सभ्यताएं विलुप्त हो जाएंगी। टेंशन बढ़ाने वाले डिटेंशन कहां से आएंगे। खुदाई हमारी सोच यानी न्यू इंडिया की ड्रीम प्रोजेट है। आपको मालूम है खुदाई से ही गड़े मुर्दे उखाडऩे का मुहावरा निकला है। खुदाई और खोज एक दूसरे से जुड़े हैं। खुदाई हमारे बापदादाओं का जन्मसिद्ध अधिकार है। तालाब, कुंए, टीले, राजमहल और ऐसिहासिक इमारतें खुदाई का परिणाम हैं। अपन के मुलुक में खुदाई अधिक गतिमान है। पक्ष हो या विपक्ष सब एक दूसरे की खुदाई में जुटे हैं।

सच पूछा जाए तो सत्ता और सिंहासन का खेल इसी खुदाई से निकला है। इसी लिए सत्ता और विपक्ष एक दूसरे के लिए गड़े मुर्दे खोद निकालते हैं। एक दूसरे के लिए कब्र भी तैयार करते रहते हैं। यह सब बगैर खुदाई के संभव नहीं है। पुरातात्विक खुदाई की वजह से ही हमारे कई ऐतिहासिक विवादों के फैसले भी संभव हुए। देश की राजनीति में आजकल खुदाई का मौसम चल रहा है। सत्ता विपक्ष तो विपक्ष सत्ता की खुदाई कर रहा है। खुदाई की वजह से कई संवैधानिक धाराएं जड़ से खत्म हो गईं। सियासी खुदाई से ही सीएए, एनआरसी और अब एनपीआर निकला है। सत्ता की इस खुदाई नीति से विपक्ष की नींद हराम है। उधर विपक्ष खुदाई के तरीके पर ही सवाल उठा बावेला मचा रखा है। समुद्र मंथन से जिन चैदह रत्नों की प्राप्ति हुई थी उसमें एक खुदाई भी थी जिसे देवताओं और असुरों ने भूला दिया था। लेकिन आधुनिक खुदाई से यह बाहर आई है। खुदाई में देश का बच्चा-बच्चा पीएचडी है। खुदाई को राष्टीय शोधसंस्थान का दर्जा मिलना चाहिए। क्योंकि खुदाई हमारा जन्मसिद्ध अधिकार और राष्टीय दायित्व भी है। देश में जितनी अच्छीबुरी बातें बाहर आती हैं वह सब खुदाई से निकलती हैं। खुदाई में लोगों ने डिक्टेंशन हासिल किया है।

इस खुदाई की जद में संतरी से लेकर मंत्री और पीएम से लेकर सीएम तक की डिग्रियों पर भी बावेला मच चुका है। ऐसा वक्त भी आता है जब खुदाई में खुदाई फंस जाती है। सरकारें भी खुदाई से बनती और बिगड़ती हैं। नई पीढ़ी अभी तक ग्रोथ रेट, सेंसेक्स, बेगारी पत्थरबाजी, टुकड़े-टुकड़े में उलझी थी अब उसे खुदाई सिद्धांत भी समझना होगा।ऐसी खुदाई डिटेंशन करने के बजाय टेंशन बढ़ा रही हैं। भला को सोशलमीडिया का जो आग में घी का काम करती है। बादशाह बोले टेंशन बढ़ाने वाला कोई डिटेंशन नहीं है। सब झूठ बोल रहे हैं। फिर या था आ गले लगने वाले वजीर ने बादशाह की पूरी बाजी पलट दिया। अपनी चहकती चिडिय़ा की वाल पर टेंशन वाले डिटेंशन का पूरा इतिहास भूगोल ही चस्पा कर दिया। इस खेल में बादशाह की जमात वाले सिरों के बाल उड़ गए। सिर खुजलाने के लिए कंघी की खोज होने लगी। खुदाई से अब झूठ जिन्न निकला है। झूठ का जिन्न किसका है कोई जिम्मेदारी नहीं ले रहा है। सत्ता और विपक्ष की खुदाई से निकला झूठ ऐतिहासिक है या पुरातात्विक यह जांच का विषय है। लेकिन भईया कुछ भी हो! हम खुदाई को प्रणाम करते हैं और चाहते है। कि यह खुदाई खुदती रहे। यह मत भूलिए खुदाई हमारी सभ्यता से जुड़ी है। बोलिए आर्यावर्ते भारतमघ्ये खुदाईखंडे की जय।

प्रभुनाथ शुक्ल
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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