हम तो आपके भीरत बैठे बुराइयों के दानव की बात कर रहे हैं, जो दिखता नहीं है। कभी-कभी उसे आप समझ नहीं पाते हैं कि ये अवगुण है या फिर गुण। जब आप इसके बारे में थोड़ा बहुत समझते हैं तो उसे छिपाने का प्रयास करते हैं और खुद से भी झूठ बोलना शुरू करते हैं, जो एक और बुराई उन्हीं बुराईयों के साथ समाहित हो जाती है। जीवन दर्शन समान है।जीवन कोरे कागज के समान है जिसमें जैसा रंग भरोगे वैसा ही दिखेगा। जीवन के कोरे कागज में बुराई भरोगे तो वही भरेगा। अगर गुण व संस्कार भरोगे तो वही दिखेगा। अगर हम जीवन का मन से विश्लेषण करते हैं तो जीवन में घटी अच्छी- बुरी घटनाओं के साथ-साथ आपके अंदर की अच्छाई व कमियों के दर्शन प्राप्त हो जाएंगे। अच्छे इंसान बनने के लिये अच्छी प्रवृत्तियों को अपने जीवन मे लाना होगा। वही कभी- कभी चंद स्वार्थ व लाभ के लिए आसुरी प्रवृत्तियों को अपना लेता हैं और खुशहाल जीवन की राह से भटक जाता है। इसी प्रकार प्रवृत्तियों से बचने के लिए हमारी भारतीय संस्कृति में ढेर सारी बातें क ही गई हैं।
पुराण, भागवत गीता, रामायण व महाभारत जैसे ग्रंथों की रचनाएं हैं जिनमें मानव को जीवन जीने की विधाओं को समाहित किया गया है कि जीवन का सार यही है। इन सभी अध्ययन के बावजूद मनुष्य भटक जाता है और आसुरी आदतों के वश में आ जाता है। रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि ग्रंथ की रचना से पहले लूटपाट करते थे। एक ऋषि की बातों ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि उनका ऐसा ह्रदय परिवर्तन हुआ कि प्रभु में विलीन हो रामायण जैसा महाग्रंथ लिख डाला। वही महान विद्वान होते हुए भी लंकापति रावण असुर ही जीवन पर्यन्त बना रहा। और उसकी बुराइयों का अंत करने स्वयं श्रीराम जी पृथ्वी लोक पर आना पड़ा और अंत करने लंका जाना पड़ा। भारतीय संस्कृति की परंपरा जीवन्त रखते हुए हर वर्ष विजयदशमी (दशहरा) के अवसर पर अच्छाई को बुराई का अंत करना पड़ता है। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। मनुष्य के अंदर ही बुराइयों व कमजोरियों का वास होता है जो उसका सबसे बड़ा शत्रु होता है। हमें अच्छा बनने के लिए इन्हें पराजित करने की आवश्यकता है।
क्रोध, ईर्ष्या अहंकार, हिंसा, लोभ जैसे भीरत बसे दानवों का अतं करके एक गुणवान व्यक्तित्व का विकास कर सकते हैं। आपके अंदर बसे मायामोह-रागद्वेष से ही आसुरी प्रवृतियां पनपती हैं। इनके समूल नाश से ही हम दुर्गुणों से दूर हो पाएंगे और गुणवान व्यक्तित्व का निखार होगा। अब बात करते हैं देश की जहां रावण रूपी बुराइयां दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं। जो भारतीय संस्कृति व सामाजिक ढांचे को क्षति पहुंचाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। जिसमें सबसे बड़ा राक्षस भ्रष्टाचार है जो कि दिन प्रतिदिन शक्ति शाली बनता जा रहा है। तमाम तरीके जुटाने के बावजूद भी भ्रष्टाचार थमने का नाम नहीं ले रहा है। अगर आंकड़ों की माने तो बीते वर्ष में भारत ही नहीं पूरे विश्व में भ्रष्टाचार रूपी दानवऔर ताकतवर हुआ है। विश्व के 180 देशों में भ्रष्टाचार के रूप में भारत का 78 वां स्थान है। जबकि चीन का 87 वां स्थान है। इन सभी से भारत के सीमावर्ती देश भूटान में भ्रष्टाचार का आकार इनकी तुलना में बहुत छोटा है। इसका पूरे विश्व में 25वां स्थान है। भ्रष्टाचार के कारक में प्रमुख है मनुष्य का माया मोह जिसके चलते लोग जल्द से जल्द अमीर बनना चाहते हैं।
इसलिए इन्हें शॉर्टकट तरीके से कमाने का जरिया भी ढूंढना पड़ता है। जो भ्रष्टाचार के रास्ते से होकर गुजरता है। दूसरा महत्वपूर्ण कारण समाज में लालच का बढऩा भी एक कारक है। भारत जैसे देश में तीन बड़ी श्रेणियां भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रही हैं, जिसमें नौक रशाह, नेता व उद्योगपति शामिल हैं। इन्हीं के गठजोड़ ने देश में भ्रष्टाचार को इतना बड़ा दानव बनाने में अहम भूमिका अदा की है जितने अभी बड़े भ्रष्टाचार के मामले देश में सामने आए हैं, उनमें राजनीतिक व उद्योगपति ही पकड़े गए हैं। आज स्थिति यह है कि इन्हीं गठजोड़ों को अपना आदर्श मानते हुए निचले स्तर के कर्मचारी व अधिकारी भी भ्रष्ट सिस्टम में जुड़ चुके हैं। आज स्थिति यह है कि पूरे सिस्टम में भ्रष्टाचार उसी तरह घूम रहा है, जैसे मनुष्य के शरीर में रक्त बहता है और सीना ठोक कर भ्रष्टाचार रूपी दानव का कहना है कि चाहे कर लो जितने जतन हम जाने वाले नहीं हैं।
त्रेता युग में श्रीराम ने नकारात्मकता का प्रतीक रावण का वध तो कर दिया था। लेकिन उसकी बुराइयों के दहन अब तक हो रहा है। दिनोंदिन रावण का पुतला बड़ा ही होता जा रहा है। इससे तो यही अर्थ निकाला जा सकता है कि हमारे समाज व देश में बुराइयां भी बढ़ती जा रही हैं। यह सत्य भी है कि आज हमारे देश में अनेकों प्रकार की चुनौतियां उत्पन्न हो गई हैं चाहे सामाजिक रूप में हो या मानवीय रूप में हो या मानवीय रूप में हो, गरीबी, बेरोजगारी, अस्वच्छता, आत्मनिर्भरता के अवसरों में कमी, स्वास्थ्य सुलभता की कमी, भ्रष्टाचार, अशिक्षा, जातिवाद, संप्रदायवाद, नक्सलवाद एवं आतंक वाद समस्या रूपी रावण मनुष्य के साथ ही देश को सबल व समृद्धिशाली बनाने में बाधा बन रहा है। फिलहाल इस दशानन र पी समस्याओं से सरकार द्वारा लड़ाई लड़ी जा रही है।
नीरज सिंह
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)