क्रोध का यह रूप बहुत अच्छा है, तभी तो श्रीकृष्ण ने इसे अपनाया

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भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत युद्ध के दौरान एक बार क्रोधावेश में भीष्म पितामह पर प्रहार हेतु रथ का पहिया उठा लिया। हालांकि युद्ध से पहले उन्होंने हथियार न उठाने की बात कही थी। ऐसा कर उन्होंने संदेश दिया कि अवसर आवश्यकता के अनुरूप मनुष्य को अपने निर्णय-प्रण-प्रतिज्ञा-निश्चय में फेर-बदल कर लेना चाहिए। उन्होंने ऐसा क्रोध में किया था और एक संदेश इस प्रकरण का यह भी है कि हर बार क्रोध बुरा नहीं होता। ऐसे अन्य प्रकरण भी मिलते हैं। भगवान शिव ने क्रोध में तीसरा नेत्र खोला और कामदेव भस्म हो गए। ऐसे ही भगवान श्रीराम ने एक बार समुद्र को सबक सिखाने के लिए धनुष पर वाण चढ़ा लिया था। इन पौराणिक कथाओं से ज्ञात होता है कि भगवान ने भी कई अवसरों पर क्रोध किया है। लेकिन उन्होंने अन्याय से लड़ने के लिए क्रोध का सही समय पर सही तरीके से उपयोग किया।

स्पष्ट है कि क्रोध कई बार अच्छी भूमिका में भी होता है। वह हमें शुभ की और बढ़ने को प्रोत्साहित करता है। अन्याय के प्रति गुस्सा हमें न्याय के लिए लड़ने को प्रेरित करता है। अन्याय के प्रति गुस्सा हमें न्याय के लिए लड़ने को प्रेरित करता है। क्रोध असल में एक गलत समझा गया इमोशन है। वजह यह भी है कि ज्यादातर हम इस भाव का विवेकपूर्ण इस्तेमाल नहीं करते। अरस्तू ने उचित ही लिखा है। गुस्सा करना एक सहज प्रतिक्रिया है, लेकिन सही व्यक्ति पर, सही मकसद से गुस्सा करना बहुत कठिन है। यही भावनात्मक परिपक्कता का करिश्मा है। थोड़े उकसावे पर तेज गुस्सा या घर का गुस्सा दफ्तर में और दफ्तर का गुस्सा घर में निकालने वाले दोनों जगह तनाव पैदा कर देते हैं और अपना नुकसान कर बैठते हैं। लेकिन गुस्सा करना हमारा स्वाभाव है और यह हमारे लिए सही और गलत दोनों हो सकता है।

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