क्या बदला पूरा हो गया?

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भारत के मौजूदा और पूर्व दोनों गृह मंत्री अब जंगल राज का, जेल का, झूठी जांच एजेंसियों, अदालती दुरूपयोग का अनुभव लिए हुए हैं। सचमुच भारत राष्ट्र-राज्य कैसा कानून का बीहड़ है, इसका अनुभव यदि किसी से जानना हो तो अमित शाह और चिदंबरम से जानना चाहिए! इन दोनों को भारत की असलियत, पुलिस-जांच एजेंसियों-अदालत और संविधान-कानून-व्यवस्था के उपयोग-दुरूपयोग का पोर-पोर बारीकी से मालूम है। तभी विचार बनता है कि क्या अमित शाह को नफरत नहीं होती होगी देश की ऐसी हकीकत पर? मोदी-शाह क्या सोचते नहीं होंगे कि उनके साथ जो गुजरी, या जो वे विरोधी के साथ कर रहे हैं तो सवा सौ करोड़ लोगों पर पुलिस का दारोगा याकि व्यवस्था के लाठीवान कैसे अपनी मनमानी थोपते होंगे?

अमित शाह ने सोहराबुद्दीन का अपहरण, उसकी हत्या कराई या नहीं, यह ईश्वर जाने और पी चिदंबरम ने 9.96 लाख रुपए की रिश्वत खाई या नहीं, यह भी ईश्वर जाने मगर भारत के हम लोग के और दुनिया के आगे इनका यह रिकार्ड स्थायी बना है कि दोनों ‘अपहरण’, ‘फिरौती’, ‘हत्या’, ‘भ्रष्टाचार’ के ‘किंगपिन’ व ‘की कॉन्सपीरेटर’ होने के आरोपी रहे। अमित शाह 95 दिन जेल रहे, दो साल तड़ीपार रहे और पी चिदंबदम ने 106 दिन जेल में गुजारे है। दोनों का राजनीतिक करियर, वीकिपीडिया प्रोफाइल आने वाली पीढ़ियों के आगे तथ्य लिए हुए होगा कि भारत के बीहड़ के ये भले गृह मंत्री रहे हों लेकिन सीबीआई, ईडी नाम की एजेंसियों ने, अदालत ने उन पर अपने-अपने वक्त में कैसे चार्ज लगाए और कैसी कार्रवाई की! वह कार्रवाई तब हुई या तब खत्म हुई जब इनकी सत्ता आई या भारत के बीहड़ के ये सत्तावान बने!

ऐसा है तो मोदी-शाह-चिदंबरम सहित भारत के तमाम श्रेष्ठिजन, एलिट को क्या सोचना नहीं चाहिए कि यह कैसा मुल्क जो इस तरह की बातें, इस तरह की हकीकत लिए हुए है? ऐसी व्यवस्था व ऐसा अपना लोकतंत्र है? और क्या इसे बदलने का संकल्प नहीं होना चाहिए?

कितना शर्मनाक है भारत के मौजूदा और पूर्व गृह मंत्री का अनुभव, इतिहास और इनके राज का अनुभव! पी चिदंबरम ने वहीं किया जो अभी अमित शाह कर रहे हैं। अमित शाह वहीं कर रहे हैं, जो चिदंबरम ने किया था। भारत में राजा, प्रधानमंत्री बदले, विचारधारा, संविधान बदले, चेहरे-वक्त बदले लेकिन भूगोल-परिवेश क्योंकि बीहड़ का है तो सब कुछ जस का तस स्थायी रहना है। मतलब चंबल के बीहड़ में डाकू मानसिंह ही सर्वेसर्वा याकि जिसकी सबसे बड़ी गैंग, उसी का राज, उसी के सब दास!

याद करें पी चिदंबरम के दिसंबर 2008 से जुलाई 2012 के बतौर गृह मंत्री राज को। उसी राज में अमित शाह पर हत्या, फिरौती, अपहरण जैसे आरोप लगे और अमित शाह 25 जुलाई 2010 को गिरफ्तार हुए। इससे पहले सीबीआई द्वारा जांच कराने का अदालत से फैसला कराया गया। अमित शाह ने जमानत की दरखास्त दी तो उसका सीबीआई ने विरोध किया। तब तत्कालीन सरकार, सीबीआई का बचाव करते हुए कांग्रेस के धुरधंर वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था– क्या आप लोग सोचते हैं कि सीबीआई मूर्ख लोगों की जमात है, जो झूठे आरोप लगा कर अपना करियर बरबाद करेंगे, बिना आधार के (non-existing allegations) ऐसे आरोप लगाएंगे, जो आखिर में सुप्रीम कोर्ट में भी जांचे जाने हैं… चार्जशीट कोई एक रात में नहीं बनती। चार्जशीट सबूतों का संग्रहण होता है!

लेकिन अंत में ये चार्जेज मोदी-शाह की सत्ता के आने के साथ खत्म हुए। अमित शाह बाइज्जत बरी। मगर चार्जेज के हवाले अमित शाह कोई 95 दिन हिरासत-जेल में तो रहे! ध्यान रहे फिर शु्क्रवार 29 अक्टूबर 2010को हाई कोर्ट में जमानत हुई तो अगले दिन छुट्टी के बावजूद सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस आफताब आलम के घर याचिका दायर कर सीबीआई ने आदेश लिया कि अमित शाह गुजरात से बाहर तड़ी पार रहेंगे। तब भी अदालत में टिप्पणी होती थी कि अमित शाह जघन्य अपराधों के ‘किंगपिन’। वैसे ही जैसे हाई कोर्ट ने चिदंबरम की जमानत याचिका खारिज करते हुए उन्हे हाल में ‘किंगपिन’ बताया!

वह वक्त चिदंबरम का था, कांग्रेस सरकार का था, मनमोहन सिंह-गांधी परिवार की सत्ता का था तो भारत राष्ट्र-राज्य की बीहड़ व्यवस्था पूरी तरह इनकी डुगडुगी लिए हुए था। तब मीडिया ट्रायल मोदी-शाह का था। मीडिया, अदालतें, जांच एजेंसियां मतलब सब मोदी-शाह-भाजपा-आरएसएस को अलग-अलग एंगल से हत्यारा, आंतकी, गुंडा, मवाली-भ्रष्ट करार देने की होड़ में थे।

आज वक्त मोदी-शाह-भाजपा, संघ का है तो डराने, मारने, प्रताड़ित करने वाली पुरानी गैंग से भला बदला क्यों नहीं लिया जाएगा! चंबल में डाकू मानसिंह आउट, नए सरदार मलखान सिंह इन तो नए सरदार की तूती क्यों नहीं बजेगी?

इसलिए दो गृह मंत्री, वर्तमान और पूर्व गृह मंत्री के वक्त का अनुभव, व्यवहार अपने आप में भारत की सच्चाई का आईना है। पर हां, यह उम्मीद नहीं रखें कि इससे भारत के हम लोग, भारत के राजनीतिक दल, भारत के नेता कुछ समझेंगे या समझदार होंगे। भाजपा-संघ, नरेंद्र मोदी-अमित शाह वहीं गलती कर रहे हैं, उसी सोच-बुनावट में हैं, जैसे एक वक्त कांग्रेस-गांधी परिवार, मनमोहन सिंह-पी चिदंबरम-अहमद पटेल थे। मोदी-शाह भी मान रहे हैं कि उनका राज स्थायी है। उनके या संघ-भाजपा विरोधी कभी सत्ता में नहीं आएंगे। वे जो कर रहे हैं उसे पाप, अपराध करार देना असंभव है! अमित शाह मान रहे हैं कि बतौर गृह मंत्री वे सबको सभ्य बना दे रहे हैं। सब साफ-स्वच्छ कर दे रहे हैं। भारत के लोग, भारत का समाज, भारत की व्यवस्था मर्यादाओं में बंध रही है और उसी में आने वाला वक्त याद रखेगा।

नहीं, कतई नहीं। सब उलटा है। जिस अंदाज में संविधान, कानून-नियम, संस्थाओं, अदालत का अधोपतन, दुरूपयोग है उसमें भविष्य के खतरे भयावह हैं। चंबल के अफगानिस्तानी बीहड़ में परिवर्तित होने का खतरा है। बदले का लिंच मनोविज्ञान पनप रहा है।

सोचें, चिदंबरम के बहाने सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्टों याकि भारत राष्ट्र-राज्य की न्यायिक व्यवस्था, वकील जमात में कानून की अवधारणा में क्या सोचा-समझा गया होगा? चिदंबरम खुद नामी वकील रहे हैं, कपिल सिब्बल हों या अभिषेक मनु सिंघवी याकि तमाम धुरंधर वकीलों, न्यायविदों में कैसी लाचारी, कैसे भाव बने होंगे? ऐसा अमित शाह के जेल में होने के वक्त भी भाजपा के वकीलों-समर्थकों में बना था। भारत के बीहड़ में क्या पुलिस, जांच एजेंसियां हैं और क्या अदालत है, इसे ले कर अमित शाह-चिदबंरम याकि भारत के पूर्व-मौजूदा गृह मंत्रियों के अनुभव में लोगों की क्या सोच बनी है, बनेगी, यह अपने आप में भारत की आस्था का यक्ष प्रश्न है! कैसा लोकतंत्र है, क्या संविधान और उसकी कैसी व्यवस्थाएं हैं? जिसकी लाठी उसकी भैंस का सत्य क्या भारत का सत्य नहीं है?

इसलिए भारत में लाठी, भय और बदले की भूख कभी खत्म नहीं होती। नरेंद्र मोदी, अमित शाह, भाजपा-संघ को जब साठ साल का बदला लेना है तो चिदंबरम की 106 दिन की जेल से बात नहीं बनेगी! फिर अब तो बीहड़ का नैरेटिव ही दो खेमों में जब बंटा है तो लड़ाई स्थायी है। बीहड़ देशभक्त बनाम देशद्रोही, लूटेरों बनाम सेवादारों, सेकुलर बनाम हिंदुवादियों के असंख्य छोरों में परिवर्तित है। सो अभी तो झांकी है आगे के वक्त की।

हरिशंकर व्यास
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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