देश की सबसे बड़ी अदालत ने सोशल मीजिया प्लेटफार्म के बढ़ते दुरुपयोग पर गहरी चिंता जताई है। अदालत ने केन्द्र सरकार से इस पर नकेल लगाए जाने की जरूरत बताते हुए यह भी पूछा है कि इस मामले में कितना वक्त लगेगा। दरअसल सोशल मीडिया के जरिये जिस तरह किसी का भी चरित्र हनन करने की घटनाएं बढ़ रही हैं वो किसी के लिए भी गहरी चिंता की बात है। आयेदिन थानों से लेकर छोटी-बड़ी अदालतों तक वीडियो वायरल किए जाने के मामले आते रहते हैं। अपने निहित स्वार्थ के लिए किसी के भी चरित्र का हनन करना एक फैशन सा बनता जा रहा है। उम्मीद थी कि यह मीडिया लोगों की धारणाओं और समस्याओं को सबके सामने लाने वाला माध्यम बनेगा। उम्मीद थी कि सेकेंडों में इसके जरिये बहुसांस्कृतिक समाजों के बीच संवाद का संस्कार गढ़ा जा सकेगा।
उम्मीद थी यह मध्यम लोगों के बीच ज्ञान के आदान-प्रदान के लिए इस्तेमाल होगा। पर अफसोस इसका इस्तेमाल ब्लैक मेलिंग और सम्प्रदायों के बीच नफरत फैलाने के लिए हो रहा है। यह किसी के लिए भी चिंता का विषय होना चाहिए। एक न्यायमूर्ति की टिप्पणी इस बाबत काफी गंभीर है कि इसके जरिये कोई चाहे तो एके -47 की डील भी कर सकता है। अब तो यह इसलिए और भी बड़ी समस्या बनता जा रहा है कि इसके जरिये फेक न्यूज का बड़ा कारोबार बेरोक – टोक जारी है। जरूरत है इस पर वैधानिक नियमन की कोई व्यवस्था बने, ताकि अराजक होती जा रही स्थितियों पर रोक लगाई जा सके । कोर्ट की चिंता पर सरकार को समय रहते ध्यान देना चाहिए। कहां तक परंपरागत डिजिटल माध्यमों अर्थात समाचार चैनलों पर वायरल खबरों का सच दिखाकर वास्तविकता से लोगों को परिचित कराने का प्रयास किया जाता रहेगा।
झूठी खबरों का प्रवाह और विस्तार इतना व्यापक है कि जब तक लोगों को सचेत करने की कोशिश होती है, तब तक काफी नुकसान हो चुका होता है। इस भयावहता से हालांकि सरकार समेत जो भी पीडि़त होते हैं, सबको इसके प्रभाव की गहराई और व्यापकता का पता है। ठीक है। कुछ लोग ऐसे हैं जो अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर कुछ ताकतों को सोशल मीडिया के बेजा इस्तेमाल की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। इन दिनों जम्मू कश्मीर में हालात बिगाडऩे वाली ताकतों पर रोक लगाने के इरादे से ही कम्यूनिकेशन की सुविधाओं में कुछ वक्त के लिए कटौती की गयी है, जिस पर कुछ ताकतें विरोध में उतरते हुए संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकार का हवाला देकर अपने उत्पीडऩ का रोना रो रही हैं।
हालांकि इस पर बड़ी अदालत से ऐसे लोगों को राहत नहीं मिली है, फिर भी किसी ना किसी रूप में कोशिशें जारी हैं। सबको पता है कि इस संचार तकनीक का सर्वाधिक इस्तेमाल आतंकी संगठन कर रहे हैं। यह वैश्विक समस्या बनी हुई है। अपने यहां भी यह गंभीरतम स्थिति में है, इसकी लंबे समय तक अनदेखी नहीं की जा सकती। इसलिए कोर्ट की चिंता पर के न्द्र सरकार को गौर करते हुए कोई बीच का रास्ता निकालना चाहिए जिससे लोगों की अभिव्यक्ति की आजादी पर आंच ना आए लेकिन देश और समाज पर भी कोई आंच ना आए। उम्मीद है, सरकार इस पर गंभीरता से चिचार क रेगी।