कुछ सवालों का चौतरफा जाल

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उत्तर प्रदेश में 2267 करोड़ रुपये के भविष्य निधि घोटाले से हड़कंप मचा हुआ है। इस घोटाले के आरोप समाजवादी पार्टी के नेता योगी सरकार पर लगा रहे हैं तो योगी सरकार इस घोटाले के लिए अखिलेश सरकार को जिम्मेदार ठहरा रही है। इन आरोप-प्रत्यारोपों के बीच अगर सपा प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की बात पर विश्वास किया जाए तो 19 मार्च 2017 को शपथ ग्रहण करने के मात्र पांचवें दिन 24 मार्च 2017 को योगी सरकार ने इतना बड़ा घोटाला कर डाला। 24 मार्च भी सही तारीख नहीं है। असल में डील तो 22 मार्च 2017 की बैठक में ही फाइनल हो गई थी, लेकिन बाद में बैठक की तारीख ओवर राइटिंग करके 24 मार्च 2017 कर दी गई थी, जिसका खुलासा हो चुका है। अगर इतना बड़ा घोटाला योगी सरकार ने तीसरे ही दिन कर डाला तो यह आश्चर्यजनक ही नहीं अप्रत्याशित भी है। कोई सरकार अपने गठन के चंद घंटों के भीतर इतनी बड़ी डील कैसे फाइनल कर सकती है? सपा-बसपा या फिर कांग्रेस-भाजपा घोटाले को खूब हवा दे रहे हैं।

लेकिन किसी को इस बात की चिंता नहीं है कि उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन के करीब 45 हजार कर्मचारियों की भविष्य निधि के हजारों करोड़ रुपये अनियमित तरीके से निजी संस्था डीएचएफएल में निवेश किए जाने से कर्मचारियों को कितना नुकसान उठाना पड़ेगा। डीएचएफएल न केवल घाटे में चल रही है, बल्कि बंदी की कगार पर है। पूरे प्रकरण में योगी सरकार अपने आप को पाक ?साफ बता रही है। उसकी बातों पर विश्वास भी किया जा सकता है, लेकिन सवाल यही है कि अगर अखिलेश राज में इतना बड़ा घोटाला हुआ था तो अभी तक योगी सरकार को इसका पता कैसे नहीं चल पाया? यहां यह भी याद रखना चाहिए कि जब कोई नई सरकार आती है तो वह पूर्ववर्ती सरकार के चुनाव आचार संहिता लागू होने से कुछ दिनों पूर्व लिए गए फैसलों की गहन समीक्षा करती है। ऐसा योगी सरकार में भी हुआ था, सवाल यही है कि जब इस तरह की समीक्षा की गई थी, तो यह घोटाला उजागर क्यों नहीं हुआ।

खैर, बात अखिलेश यादव के दामन पर दाग लगने की वजहों की हो तो यूपी पुलिस ने जबसे पूर्व मुख्यमंत्री और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के करीबी उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (यूपीपीसीएल) के पूर्व एमडी एपी मिश्रा सहित दो अन्य लोगों को गिरफ्तार किया है तबसे पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर उंगलियां उठ रही हैं। इसी क्रम में सचिव ऊर्जा और उप्र पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड की प्रबंध निदेशक अपर्णा यू को उनके पद से हटा दिया गया है। आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) पूरे मामले की जांच कर रही है। ईओडब्ल्यू के अफसरों के सामने भले ही पूर्व एमडी एपी मिश्र खुद को लगातार निर्दोष बताते रहें लेकिन पड़ताल में जुटी टीम ने जब एक -एक कर कई सवाल किये तो उनसे जवाब देते नहीं बना। गिरफ्तार दोनों आरोपियों से जो तथ्य सामने आये थे उनके बारे में पूछने पर पूर्व एमडी चुप्पी ही साधे रहे। ईओडब्ल्यू ने पूछताछ के दौरान कई तथ्य पहले से जुटा रखे थे। पूर्व एमडी से अफसरों ने पूछा कि 15 मार्च 2017 को डीएचएफ एल ने अपना कोटेशन दिया था। फिर 16 मार्च को दो और कंपनियों से भी कोटेशन लिया गया।

ईओडब्ल्यू के अधिकारियों का दावा है कि छानबीन में तथ्य हाथ लगे हैं कि फिर अचानक ही 16 मार्च की शाम तक डीएचएफ एल में पीएफ का रुपया जमा करने के लिए सहमति दे दी गई थी। प्रदेश में भाजपा की नई सरकार 19 मार्च 2017 को बनी थी। 17 मार्च को ही डीएचएफ एल के खाते में 18 करोड़ रुपये आरटीजीएस (जमा) भी करा दिए गए। आखिर इतनी जल्दी क्यों दिखाई गई? इस पर एपी मिश्र संतोषजनक जवाब नहीं दे सके। ईओडब्ल्यू अधिकारियों ने यह भी पूछा कि जब आपने 16 मार्च 2017 को इस्तीफा दे दिया था और उसकी प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी। फिर भी 22 मार्च की बोर्ड की मीटिंग में आप शामिल हुए। यहीं नहीं 23 मार्च को इस्तीफा स्वीकार हो गया। इसके बाद मीटिंग की तारीख में हेरफेर कर दस्तोवजों में 24 मार्च दिखाया, फिर उसे काट कर 22 मार्च किया गया। ईओडब्ल्यू की पड़ताल में यह भी सामने आया है कि जिस समय पीएफ घोटाले की रकम डीएचएफ एल में जमा की जा रही थी, उस समय विभाग के दो अधिकारियों ने ऐसा करने से मना भी किया था। पर, तब पूर्व एमडी ने जवाब दिया था कि ऐसा ही ऊपर से करने का आदेश है। इस बीच ईओडब्ल्यू के अफसरों ने बताया कि 22 मार्च 2017 को पांच सदस्यों वाले बोर्ड की मीटिंग बुलाई गई थी।

अजय कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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