कांग्रेस में मंदिर पर भी मतभेद उभरेंगे

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अपन ने 370 पर कांग्रेस में मतभेदों को उभरते देखा है। डा. कर्ण सिंह, ज्योतिरादित्य, भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, जनार्दन द्विवेदी ने 370 हटाए जाने का खुल कर समर्थन किया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पता नहीं इसे समझा या नहीं , लेकिन यह गुलामनबी आज़ाद और अहमद पटेल के खिलाफ आक्रोश था , जिन के प्रभाव में कांग्रेस सिर्फ मुसलमानों की पार्टी बनती जा रही थी।

कांग्रेस का हिन्दू लम्बे समय से घुटन महसूस कर रहा है , उसे सेक्यूलरिज्म की बनावटी दलीलें अब समझ नहीं आ रही क्योंकि आम हिन्दू उन से सवाल पूछने लगे हैं। कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर अभी भी अपनी स्थिति साफ़ नहीं की है , उस के मुस्लिम नेता अभी भी 370 हटाए जाने का विरोध करने वाली वामपंथी जमातों के साथ खड़े हैं, जो मानवाधिकारों के नाम पर कश्मीरी मुसलमानों को उकसा रहे हैं और पाकिस्तान को मसाला दे रहे हैं। राहुल गांधी भी उन्हीं के प्रभाव में बयानबाजी करते रहते हैं , इसलिए कांग्रेस के हिन्दू नेता 370 हटाने के तरीके पर सवाल खड़ा कर के खुद को भाजपा से अलग दिखाने की कोशिश करते हैं। इस जमात में अब शशि थरूर भी शामिल हो गए हैं , जो हिंदुत्व पर किताबें लिख कर खुद को हिन्दू साबित करने की कोशिशों में जुटे हुए हैं।

एक इंटरव्यू में शशि थरूर ने कहा कि 370 हमेशा के लिए नहीं थी , यह राज्यसभा में कांग्रेस के नेता गुलामनबी आज़ाद की ओर से लिए गए आधिकारिक स्टेंड के विपरीत है। गुलामनबी आज़ाद का कहना था कि कांग्रेस के रहते 370 नहीं हट सकती। गुलामनबी का स्टेंड ही सोनिया गांधी और राहुल गांधी का स्टेंड था, क्योंकि सोनिया गांधी ने खुद भुवनेश्वर कालिता को 370 हटाए जाने के खिलाफ व्हिप जारी करने के लिए कहा था। लोकसभा में जब अधीररंजन चौधरी बार बार कह रहे थे कि कश्मीर पाकिस्तान के साथ विवादास्पद है, इसलिए भारत सरकार उसे नहीं हटा सकती तो सोनिया और राहुल चुप बैठे थे।

कांग्रेस के भीतर 370 पर गहरे मतभेदों के बीच शशि थरूर ने एक कदम आगे बढ़ते हुए श्रीराम जन्मभूमि पर कांग्रेस के स्टेंड पर पुनर्विचार के रास्ते खोले हैं ,क्योंकि आने वाले समय में कांग्रेस को इस मुद्दे पर भी स्टेंड लेना पड़ेगा। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि अगर इस तरह के सबूत हैं कि पहले उस जगह पर मंदिर था तो करोड़ों हिन्दुओं की भावनाओं के अनुरूप वहां श्रीराम जन्मभूमि मंदिर बनना चाहिए था , लेकिन एहतियात के तौर पर साथ ही जोड़ते हैं कि बेहतर होता कि दूसरे धर्म की इबादतगाह को तोड़े बिना मंदिर बनता। यह एहतियात उसी तरह का है जैसे 370 हटाए जाने का समर्थन करने वाले कांग्रेसी यह भी जोड़ते हैं कि हटाने का तरीका ठीक नहीं है।

थरूर ने कामन सिविल कोड पर भी यह कहते हुए सहमति प्रकट की है कि सभी वर्गों को समझाने की कोशिश होनी चाहिए कि यह दश के फायदे में है। थरूर कांग्रेस के पुराने वैचारिक नेता नहीं हैं , अगर वह संयुक्त राष्ट्र के महासचिव का चुनाव न हारते तो शायद भारत लौट कर राजनीति में भी नहीं आते। लगातार दो बार हिन्दू बहुल तिरुअनंतपुरम सीट से चुनाव जीतने वाले थरूर कांग्रेस में खाली पड़े हिन्दू नेता का स्थान भरने की कोशिश कर रहे हैं , हालांकि हिंदुत्व पर ही उन के कई बयान विवादास्पद हो जाते हैं।

इस के बावजूद उन का यह कथन कि अगर यह स्थापित हो जाता है कि मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाई गई थी तो वहां हिन्दुओं की भावनाओं के अनुरूप मंदिर बनना चाहिए , काबिल-ए-गौर है ,क्योंकि खुदाई में यह साबित हो चुका है कि ढाँचे के नीचे मंदिर था , खुदाई के सबूत सुप्रीमकोर्ट में रखे भी जा चुके हैं। यहाँ तक कि मुसलमानों का एक तबका भी अब यह मानने लगा है कि बाबर और मीर बाकी जैसे मुस्लिम हमलावरों ने मंदिरों को तोड़ कर मस्जिदें बनवाई , जिस की इस्लाम इजाजत नहीं देता। पिछले दिनों बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के एक पदाधिकारी ने एक स्टिंग आपरेशन में यह बात कबूल की है कि बाबरी ढांचा मंदिर तोड़ कर बनाया गया था।

अजय सेतिया
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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