कश्मीर : भारत-पाक अपना ढोंग तत्काल खत्म करें

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कश्मीर में 10 हजार नए पुलिसवालों की तैनाती से हड़कंप मचा हुआ है। कश्मीरी नेता और अलगाववादी लोग भी यह मान रहे हैं कि यह तैनाती इसलिए की जा रही है कि सरकार धारा 370 और 35 ए को खत्म करने वाली है। उन कश्मीरी नेताओं का कहना है कि यदि ऐसा हुआ तो कश्मीर में उथल-पुथल मच जाएगी। जो नेता कश्मीर को भारत का अटूट अंग मानते हैं, वे भी अलगाववादी बन सकते हैं।

सरकार का कहना है कि उसने अमरनाथ-यात्रियों की सुरक्षा का विशेष इंतजाम किया है। उसे डर है कि कहीं दूसरा पुलवामा-कांड न हो जाए। करगिल-युद्ध की 20 वीं वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कड़े संदेश ने भी कश्मीर में लहर-सी उठा दी है। मुझसे कई भारतीय और पाकिस्तानी टीवी चैनलों ने पूछा है कि इस मामले में आपकी राय क्या है ? मेरी राय तो साफ है। कश्मीर में 50 हजार जवान पहले से हैं अगर 50 हजार और भी भेज दिए जाएं तो आम कश्मीरी को डरने की जरुरत क्या है? कोई भी जवान ज्यादती करेगा तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।

हां, डर उन्हें होना चाहिए, जो हिंसा करते हैं, आतंक फैलाते हैं। ये आतंकवादी किसे मारते हैं ? वे ज्यादातर बेकसूर कश्मीरियों की हत्या करते हैं। उन्होंने हिंदू-कम, मुसलमान ज्यादा मारे हैं। जहां तक धारा 370 का सवाल है, सच्चे मायनों में वह कभी की खत्म हो चुकी है। उसकी लाश को सजाए रखने में क्या तुक है ? जहां तक धारा 35 ए का सवाल है, मेरा मानना है कि कश्मीर और कश्मीरियत की रक्षा करना बेहद जरुरी है।

इस धारा के उन सब प्रावधानों को बचाए रखना और कठोर बनाए रखना, भारत का कर्तव्य है, जिनके कारण कश्मीर को ‘पृथ्वी का स्वर्ग’ कहा जाता है। हमें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए कि कश्मीर की घाटी हरियाणा, पंजाब या उप्र के किसी जिले की तरह दिखने लगे। इसके अलावा कश्मीर के सवाल पर भारत और पाकिस्तान, दोनों को अपना ढोंग खत्म करना चाहिए। दोनों को एक-दूसरे के कश्मीरों पर कब्जे की बात भूल जाना चाहिए। दोनों कश्मीर, दोनों देशों के अभिन्न अंग घोषित हों। पाकिस्तान अपने कश्मीर को ‘आजाद कश्मीर’ कहना बंद करे और उसे पूरी तरह से पाकिस्तान का एक प्रांत बना ले।

भारत 370 खत्म करे और कश्मीर को अन्य प्रांतों की तरह अपना एक प्रांत बना ले। दोनों कश्मीरों की कश्मीरियत को दोनों देश हर कीमत पर बरकरार रखें। आज का कश्मीर एक खाई है। मैं चाहता हूं कि वह भारत और पाकिस्तान के बीच प्रेम का पुल बने।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं…

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