कश्मीर पर पाक की बेचैनी

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जबसे जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 मोदी सरकार ने हटाया है, तबसे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमारान खान आए दिन कुछ ना कुछ बयान देकर मुद्दे का अन्तर्राष्ट्रीकरण करने की नाकाम कोशिश करते रहते हैं। इसी कड़ी में उनका ताजा बयान है। कहते हैं कि भारत से पारंपरिक जंग जीत पाना नामुमकिन है। पर इसी के साथ परमाणु युद्ध की संभावनाओं की तरफ इशारा करते हुए चाहते हैं कि दुनिया कश्मीर पर भारत से दरियाफ्त करें। इसीलिए उनकी तरफ से दोनों मुल्कों की ओर से भारी जान-माल के नुकसान की पाक पीएम आशंका भी जताते हैं। पर वक्त बीतने के साथ ही उनकी हताशा बढ़ती जा रही है। वजह भी है, पिछले 70 वर्षों से अपने नागरिकों को जम्मू-कश्मीर के नाम पर सपने दिखाते रहे हैं-चाहे वो पाकिस्तान की सियासी जमात हो या फिर मिलिट्री-आईएसआई इस्टैबलिशमेंट।

अब तक ना जानेइसी नाम पर लोगों ने सियासत चमकाई और अरबों-खरबों रुपये भी बनाए। इसीलिए जम्मू-कश्मीर की वैधानिक स्थिति बदल जाने से पाकिस्तानी निजाम हैरान परेशान है। पिछली दिनों पाक पीएम ने पीओके में रैली की थी और कश्मीर के सवाल पर किसी भी हद तक जाने की लम्बी-लम्बी डींगे हांकी थी पर हकीकत का उन्हें खूब पता है। भारत की अन्तर्राष्ट्रीय धमक से दुनिया वाकिफ है। यहां तक कि मुस्लिम देश भी इस मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ नहीं खड़े हैं। दुनिया के भीतर राजनीतिक संबंधों के मानक बदले हैं। साथ ही जिस तरह भारत ने सभी देशों से अच्छे ताल्लुकात कायम करने की दिशा में अपनी एक अलग जगह बनाई है उसी का नतीजा है कि चाहें रूस हो या अमेरिका अथवा खाड़ी के देश-सभी जगह उसके पक्ष पर गौर किया जाता है। इसके अलावा भी भारत की पड़ोसियों से भी रिश्तों को लेकर एक संतुलित समझ है। खराब रिश्तों के बावजूद भारत की तरफ से कोई भडक़ाऊ कार्रवाई नहीं होती।

चीन जैसे विस्तारवादी स्वभाव वाले देश से भी भारत का रिश्ता कितना समझदारी भरा है, इसे डोक लाम विवाद से लेकर अरूणाचल में पिछले दिनों हुए अप्रिय घटनाओं के समाधान की कोशिश के रूप में देखा जा सकता है। इसीलिए पाकिस्तान का विक्टिम कार्ड भी रंग नहीं ला पा रहा और इसी से इमरान खान की बेचैनी वक्त के साथ बढ़ती जा रही है। जहां तक सीधी जंग की बात है तो पाकिस्तान को पिछली सारी जंग में हार की नसीब हुई है। इसलिए कुबूलनामा भले नया हो लेकिन हकीक त बरसों पुरानी है। इसी के साथ उन्होंने परमाणु युद्ध की धमकी को आवाज देने के बहाने सिर्फ अपने लोगों को सफाई दी है, साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय जगत का बयान खींचने की कोशिश की है। दिलचस्प यह है कि पाकिस्तान को पता है, उसकी कोशिश सिर्फ मन बहलाने के लिए है।

जम्मू-कश्मीर अब मसला रहा नहीं। वैधानिक स्थिति में बदलाव के साथ ही शिमला एग्रीमेंट से लेकर लाहौर व आगरा एकार्ड तक सब इतिहास का हिस्सा बन गए हैं। इसलिए 23 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र संघ के महाधिवेशन में पाक पीएम की तरफ से कश्मीर मसले को आने का कोई मतलब नहीं रह जाता। फिर भी यह उनकी सियासी मजबूरी है जिसे वही जानें। शायद यही वजह होगी तब तक के लिए उन्होंने एलओसी की तरफ कुछ करने के कार्यक्रम को टाल दिया है। वैसे उनके लिए यह समझने वाली बात है कि दुनिया के कद्दावर मुस्लिम देश भी यही सलाह दे रहे हैं कि मोदी से इमरान खान नरम लहजे में बात किया करें, क्योंकि उनका कठोर लहजा भी बातचीत में अवरोध हो सकता है।

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