एक दो थप्पड़ जड़ देना

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अम्मी आज जब तुम्हारा ऑपरेशन हो रहा था ना तो आपा, खाला बार-बार मुझे फोन पर बता रही थी कि जब तुम खुद अपने बजूद को नहीं पहचान पा रही थी तब भी तुम मुरछित अवस्था में भी हमलोगों का नाम लेकर बड़बड़ा रही थी। अम्मी मैं भी आना चाहता था पर नहीं आ सका तुम से दूर रहना भी कुछ ऐसा हैं अम्मी जैसे मेरी सांसे मुझसे दूर हो…. सूरज की रोशनी भी इन नजरों को भाती नहीं है… अक्सर रात में चांद के उजाले में तेरा चेहरा नजर आता है अम्मी…. जिसमें तुम नाराज नजर आती हो….. मैं जातना हूं तुम चाहती थी कि तुम्हारे ऑपरेशन के दरमियां हम सब वहां रहें तुम्हारे पास पर मैं नहीं आया। क्यों नहीं आया इसका कोई पूख्ता जवाब नहीं है मेरे पास…शायद मैं डरता था तुम्हारें असहन दर्द, पीड़ा, तड़प से इसलिए जाने की कुब्बत नहीं जुटा पाया पर आज जब चांद में तुम्हारा चेहरा देखा तो लगा तुम्हारा दर्द, पीड़ा और तड़प सब बड़ गए है। तुम्हारी बैचेन आंखें हमें खोजते-खोजते थक सी गई है। तुम्हारा शरीर नींद के आगोश में जाना चाहता है। पर आंखों में नींद नहीं है वह लाखों चेहरों में हमें तलाश करती है…..

तुम जानती हो अम्मी तेरी वो बाते, हमारी वो छोटी-छोटी लड़ाईयां, शाम ढ़लते ही वह सुकून भरे दो पल, रात को परियों की कहानियां सब बहुत याद आ रही है। अम्मी तुम्हारी नाराजगी बेचैनी आंखों में झलक रही है…. वो तुम्हीं थी जिसने मुझे ऊंगली पकड़ कर चलना सिखाया, वो तुम्हीं थी जिसने मुझे हर मुसीबत से बचाया। पर आज जब तुम मुसीबत में थी मैं नहीं था तुम्हारे पास…. तुमने कुछ कहा भी नहीं….अम्मी तुम जानती हो… तुम्हारे आंचल में छिपकर सपने सजाना… ज़मीर को सुकून देने वाला तुम्हारी वो स्पर्श… चिलचिलाती धूप में तुम्हारे हाथों की ठंडक… तुमको छूकर आती हवा, कड़कती धूप में चैन…. बहुत कुछ याद आ रहा है अम्मी। तुम तो तकलीफ में भी मुस्कराती थी और हर गम को खुशी से सह जाती थी…..कभी मैंने तुम्हारें आंखों में आंसू की एक बुंद तक नहीं देखी है अम्मी…. पर उस रात जब मैं छत पर उस चांद को देख रहा था ना… जहां तुम नजर आती हो… मुझे वहां तुम्हारे आंखों में आंसू दिखें अम्मी यह आंसू मुझे बेचैन कर रहे है…तुम रोती भी हो मैंने कभी नहीं देखा था। पर आज तुम रो रही थी….

अम्मी तुम जानती हो तुम्हारे हाथों से खाने का निवाला खाना, तेरी ममता भरी डांट के बाद ढेर सारा दुलार… रात की गहराई में तेरी ममता की रोशनी…दर्द में भी चांद की चांदनी सी तेरी मुस्कुराहट… सब आज कहीं खोया सा लग रहा है। वह बिंदी भी जो तुम माथे पर चांद नूमा सजाए रखती थी वह मुझे कहीं दिखाई नहीं दे रही है। वहां तुम्हारे चेहरे पर सिसकने का दर्द दिखाई दे रहा था अम्मी…. जब मैं न जुबां था ना तब भी तुम मेरी हर खामोशी को पहचान लेती थी पर मैं तुम्हारे इस चुभन को नहीं पहचान पाया। तुम जानती हो आज वह चांद मुझे कोस रहा था अम्मी वह मुझे हिकारत भरी नजरों से देख रहा था… वह मुझे बार-बार याद दिला रहा था कि जब मैं बीमार होता तो तुम रात-रात भर अपने आंचल में छुपाए रखती थी… पर आज जब तुमको हमारी जरूरत थी तो हम वहां नहीं थे…वह चांद आज मुझे बहुत कुछ कहना चाह रहा था पर शायद तुमने उसे बोलने से रोक दिया….वह चाहते हुए भी नहीं बोला बस मुझसे नजरे फेर ली… तुमने आज चांद को क्यों नहीं बोलने दिया उसे बोलने देती अम्मी….

पर तुमने बोलने नहीं दिया शायद… ख़ुदा ने ये सिफ़त दुनिया की हर औरत को बख्शी है, कि वो पागल भी हो जाए तो बेटे याद रहते हैं। जानती हो अम्मी आज मैं तुम्हें एक बात बताऊं… मैं जब भी घर से आता हूं तुम हिदायत देती हो न… नहाकर पूजा कर लेना फिर कुछ और काम करना। शुरू में तो बुरा लगता था लेकिन अब आदत हो गई है। हालांकि अब भी मैं मन्दिर वंदिर नहीं जाता हूं। तुमको पता है जब मैं छुट्टी पर घर आता हूं तो मैं नहा कर पूजा-वूजा नहीं करता… लगता है कि तुम्हारे घर पे रहते हुए पूजा करने की क्या जरूरत तुम तो हो ही ना। इस बार जब घर आऊंगा तो एक दो थप्पड़ जड़ देना आज तक तुमने सही से पीटाई भी तो नहीं की। अगर तुम्हारे मार से मुझे रोना आ जाए तो चुप मत कराना। बस थोड़ी देर चैन से रो लेने देना। बहुत साल के आंसू हैं बहुत देर तक निकलें शायद।

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