एक कविता

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भाग जा इस दुनिया से कोरोना। तेरा सितम बहुत हुआ।। बहुत अनर्थ हो गया, लाखों लोग मर गए, हे निर्दयी कोरोना, हजारों बच्चे भी मर गए। ना देखा जाता अब दुख इनका, मजदूर बेघर हो गए, कोरोना तूने सितम किया, गरीब भूखे मर गए।। भाग जा इस दुनिया से कोरोना। तेरा सितम बहुत हुआ।। माना तेरी मजबूरी है, संतुलन बहुत जरूरी है, प्रकृति का हम लोगों ने, खूब जमकर हनन किया है। तू आता भैस बदल के है, तूझे कौन समझ सका है, महामारी को अब ये तेरी, उसका कहर मानते है।। भाग जा इस दुनिया से कोरोना। तेरा सितम बहुत हुआ।। बहुत हुआ अब न कर बेरहमी, बच्चे अशिक्षित हो गए, लोगों की लाशों से अब, शमशान भी भर गए। या बिगाड़ा मासूमों ने, जो तूने उनको मार दिया, क्यों गरीबों पे तूने ऐसा भयानक सितम किया।। भाग जा इस दुनिया से कोरोना। तेरा सितम बहुत हुआ।। संजय से न देखा जाता, तेरा तांडव बहुत हुआ, भगवान पुकारे जाने वालों पे भी तेरा सितम बहुत हुआ। मेरी विनती मान ले तूअपने घर लौट जा, हम लोगों को इस हाल में, अब तू ऐसे ही छोड़ जा।। भाग जा इस दुनिया से कोरोना। तेरा सितम बहुत हुआ।।

-संजय कुमार (एमए-एमएड)
(पृथ्वी सिंह सुभारती जूनियर हाई स्कूल डुंगरावली, मेरठ)

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