इस बार खास है अयोध्या की दिवाली

0
341

इस बार अयोध्या की दिवाली खास है। वैसे तो यूपी में योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद से दीपोत्सव ने एक अलग सा रंग ले लिया था पर इस बार पहले से भी ज्यादा भव्यता और जनसहभागिता के साथ मनाने की तैयारी चल रही है। शासन प्रशासन की अपनी तैयारी है तो संघ के अनुषांगिक संगठन विश्व हिन्दू परिषद की अपनी सक्रियता है। विवादित परिसरके बहार अधिग्रहीत भूमि पर विहिप का ठीक दिवाली के दिन दीपोत्सव कार्यक्रम है। साधु -संतों की आँखों में एक बहुप्रतीक्षित चमक है। अयोध्या के लोग इस बात से उत्साहित है कि राम नगरी को संवारने की दिशा में कुछ काम तो होता दिख रहा है… सियासत ही सही। पर अयोध्या को लेकर अपनी उम्मीदों की सांन चढ़ाने वाले थोड़ा चिंतित है। परिदृश्य यह है कि इस बार अयोध्या की दिवाली खास है। वैसे तो यूपी में योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद से दीपोत्सव ने एक अलग- सा रंग ले लिया था पर इस बार पहले से भी ज्यादा भव्यता और जनसहभागिता के साथ इसे मनाने की तैयारी चल रही है। परिदृश्य यह है कि अयोध्या पर फैसले से पहले सियासी पार्टियां और सम्बंधित पक्षकार एक बार फिर अपनी पोजीशन को लेकर सतर्क हो गए हैं। यह तो किसी को नहीं मालूम कि फै सले का रुख क्या होगा लेकिन अबतक कोर्ट में चली बहस से अपने मन मुताबिक संकेत तलाशने में जुट गए हैं।

इससे एक बार फिर पहले जैसी सियासी सरगर्मी पैदा होने के पूरे आसार हैं हालांकि प्रशासनिक इंतजामात का सवाल है तो यूपी सरकार ने फैसले के परिप्रेक्ष्य में सुरक्षा के कई कदम उठाये हैं ताकि किसी प्रकार की बदमजगी पैदा न हो। यह ठीक है कि अयोध्या विवाद की जड़ शताब्दियों पुरानी है ,कई बार इस मसले पर पहले भी खून-खराबे हुए हैं और आजादी के बाद तो खासतौर पर 1990 से जो सियासत सामने आई उससे देश में एक वैमनस्य की मानसिकता पैदा हुई। यह मुद्दा पूरी तरह से पावरसेन्ट्रिक हो गया। नतीजतन 1992में मस्जिद के विध्वंस के बाद सारे सियासी समीकरण भी बदल गए। मंदिर- मस्जिद सबके हितों का साधन बन गया। अब जब ऐसे सोने के अंडे देने वाले विवाद का पटाक्षेप होने को है तब सियासी पार्टियां और रेलीजियस व सामाजिक संगठन अपनी प्रासंगिकता को जताने के लिए हरचंद कोशिश कर रहे हैं। बीते एक महीने से यह कवायद साफ नजर आती है। पिछले दिनों गोरखपुर में एक कथा कार्यक्रम में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने क हा बहुत जल्दअयोध्या पर अच्छी खबर मिलेगी। उसपर एसपी के प्रमुख अखिलेश यादव ने पूछ लिया उन्हें कै से पता सुप्रीम कोर्ट से क्या फैसला आने वाला है। हालांकि बीएसपी प्रमुख ने सिर्फ यही कहा जो भी फैसला आये उसे सबको मानना चाहिए।

इस मुद्दे पर सीधे तो नहीं लेकिन संकेतों में सभी पार्टियां सियासत से बाज नहीं आ रहीं। सबको अपने वोट बैंक की चिंता है। हालांकि अयोध्या विवाद पर फैसले को लेकर सर्वाधिक आत्मविश्वास बीजेपी और उसी धारा के संगठनों में दिखाई देता है। वजह वे ही जानें लेकिन साइकोलॉजिकल वार में उनकी बढ़त साफ दिखती है। शायद यही वजह है कि असुद्दीन ओवैसी हों या मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड से जुड़े नेता सभी अपनी पोजिशनिंग में लग गए हैं। बीते शनिवार को लखनऊ के नदवा कालेज में मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के मेम्बरों की बैठक थी जिसमे यों तो कई मसलों पर चर्चा थी लेकिन खास तवज्जो अयोध्या पर संभावित फैसले को लेकर था। बोर्ड के लोगों ने उम्मीद जताई है कि फैसला उनके पक्ष में आएगा। उस बैठक में कामन सिविल कोड और तीन तलाक पर भी चर्चा हुई। इन दोनों मामलों में बोर्ड की राय पुरानी थी कि तीन तलाक पर कानून बनाकर मोदी सरकार ने शरीयत में दखलअंदाजी की है इसी नजरिये को आगे रखकर कामन सिविल कोड की मुखालफत बोर्ड कर रहा है। उसका तर्क है की सेकुलर देश में अल्पसंख्यक तबके को अपनी धार्मिक और सामाजिक पहचान बनाये रखने की संविधान में व्यवस्था है ताकि बहुरंगी अकीदे को संरक्षित एवं संवर्धित किये जाने में कोई मुश्किल न आये।

यह बात और कि रहन सहन से जुड़े तरीके वक्त के साथ बदलते रहे हैं और मुस्लिम तबके में भी सुधारवादी कदमों को उठाये जाने की जरूरत महसूस की जाती रही है। पिछले कुछ बरसो से इस मुहीम ने जोर पक ड़ा और महिला विरोधी नियमों के खिलाफ बात कोर्ट तक पहुंची। अब उसी भावना के तहत देश के कानून में भी तब्दीली की शुरुआत हुई है। इसी तबके की प्रगतिशील महिलाओं की मानें तो देर से सही शुरुआत तो हुई है यही क्या कम है। हालांकि देश के दूसरे समाजों में बहुत पहले से पर्सनल कानून के नाम पर महत्वपूर्ण सुधार हुए और अब भी वक्त के हिसाब से बदलाव की तैयारी है। जीवन से जुडी रिवायतें समय के साथ बदलती रही है। जहां ऐसा नहीं होता वहां विकृतियां पैदा होने लगती हैं। बहरहाल यह अच्छी बात है कि बदलाव की चाहत भीतर से जगी है और उसे मौजूदा सरकार का भी साथ मिल रहा है। अरब देश बदलाव की दिशा में है। पर अपने यहां अभी अप्रासंगिक हो चुकी चीजों को संजोये रखने की मानसिकता से बाहर नहीं निकल पाए हैं। सामाजिक बदलावों के दौर के बीच आस्थाओं को भी सियासी रंग देने की चौतरफा कोशिश जिस तरीके से हो रही है वो हैरान और परेशान दोनों करती है। अयोध्या पर आखिरी जोर- आजमाइश गौरतलब है। इससे यह भी साफ हो जाता है कि चंद लोगों की फिक्र का मिजाज क्या है। लोगों की सियासत अपनी जगह लेकिन तसल्ली इस वजह से है कि फैसले का कोई भी रुख हो आम तौर पर हमारे यहां सबके बीच एक स्वीकृति है जो कुछ वक्त के लिए झिंझोर तो सकती है लेकिन उग्रता की तरफ नहीं ले जा सकती। 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अयोध्या विवाद पर जब फैसला दिया था तब लोगों ने समझदारी दिखाई थी,इस बार भी वैसी ही समझ सामने आएगी। यही तो सामासिक संस्कृति की ताकत होती है जहाँ तफ रके भले हों लेकिन फसाद की गुंजाइश कम होती है।

प्रमोद कुमार सिंह
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here