आडवाणी के बाद जोशी

1
353

भाजपा ने लालकृष्ण आडवाणी के बाद अब मुरली मनोहर जोशी का भी टिकट काट दिया है। यह बात जोशी ने मतदाताओं के नाम खुला खत जारी कर सार्वजनिक की है। हांलांकि यह लगभग तय माना जा रहा था कि 75 पार नामों की लिस्ट में देर-सबेर जोशी भी शामिल किये जायेंगे। इस तरह आडवाणी के बाद डॉ. जोशी की संसदयी सियासत पर भी पूर्ण विराम लग गया है। वैसे इस बात को अन्यथा लिए जाने की जरूरत नहीं है क्योंकि एक समय के बाद सबकी भूमिका बदलती है पहले जैसी नहीं रह जाती। यही यथार्थ है जीवन का। भला राजनीति इससे अछूती कैस रह सकती है। बहरहाल, आडवानी के बाद जोशी की सक्रिय सियासत से विदाई के बाद मंदिर आंदोलन की तिकड़ी अब इतिहास हो गयी है। अब मोदी-शाह की जोड़ी का दौर है और पार्टी की राजनीति वही होगी जो यह जोड़ी चाहेगी। इस यथार्थ को स्वीकारे जाने की जरूरत है। दरअसल जब भाजपा की कार्यसमिति में बहुत पहले यह तय हो गया था कि पार्टी में सक्रिय सियासत नेताओं को तो पहले से ही समझ लेना चाहिए था कि उन्हें नई नीति के हिसाब से टिकट नहीं मिलने वाला है।

लिहाजा सक्रिय सियासत से संन्यास की घोषणा सुख से कर देनी चाहिए थी। हालांकि कलराज मिश्र जैसे नेताओं ने खुद ही चुनाव ना लड़ने का इजहार करके अपनी स्थिति बचाए रखी। अब ऐसे में जोशी की तरफ से मतदाताओं को खुला पत्र के जरिए अपनी उम्मीदवारी ना होने की जानकारी देने का तरीका कहीं न कहीं पार्टी के फैसले के प्रति असंतोष और असहमति को प्रदर्शित करता है। उम्र का सवाल तो अपनी जगह है। यदि मौजूदा उपादेयता की बात करें तो कानपुर में सांसदी जीतने का बाद उन्होंने क्षेत्र की सुध ही नहीं ली। उनकी ऐसी बेरुखी से क्षेत्र में लोगों के भीरत काफी आक्रोश भी रहा। यहां तक कि लोगों के बीच यह चर्चा भी रही कि ऐसे नामचीन को अपना प्रतिनिधि चुनने का क्या मतलब जो क्षेत्र के लोगों के लिए समय ही ना निकाल सेक। यह सच है कि 2014 में मोदी लहर का जोशी को भी अगल से फायदा मिला लेकिन बाद कि दिनों में उनकी उदासीनता से यह तय माजा जा रहा था कि 2019 में उन्हें दोबारा मौका दिया गया तो पार्टी की हार निश्चित है।

तो जाहिर है कि पार्टी के पास इस तरह का फीडबैक भी रहा होगा। बाकी तो उम्र का सवाल है ही। इसलीए कहा जाता है कि एक समय के बाद ड्राइविंग सीट का मोह छोड़ देना चाहिए पर शायद वर्षों से सत्ता की सियासत का ही ऐसा प्रभाव है कि तन भले ठहर जाये लेकिन मन नहीं मानता। वयोवृद्ध नेता आडवाणी और जोशी के बारे में यह ग्रंथि साफ-साफ महसूस की जा सकती है। हालांकि उभा भारती ने भी कहा कि टिकट ना मिलने बाद की स्थिति पर आडवाणी को अपनी बात रखनी चाहिए। पर अभी तक इस मसले पर खोमोशी है। गांधीनगर से अमित शाह के लिए उनकी तरफ से अशीर्वाद की भी बात सामने नहीं आयी है। हालांकि गांधीनगर का चुनाव अमित शाह ही लड़ाते रहे हैं। उनका गृह क्षेत्र भी है फिर भी आडवाणी की खोमोशी टूटने का पार्टीजनों को इंतजार है। जहां तक जोशी का मामला है तो उन्होंने खत के जरिये मतदाताओं से संपर्क साध अपने बारे में ताजा स्थिति की जानकारी दी है।

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here