अलग स्वास्थ्य -तंत्र ही बनेगा जीत का मंत्र

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करोना वायरस ने पूरी दुनिया में दहशत पैदा कर दी है। वायरस के प्रसार को रोकने के लिए कई देशों ने कड़े निर्णय लिए हैं। भारत सरकार ने भी कई महत्वपूर्ण और साहसिक कदम उठाए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दूसरे देशों द्वारा कोरोना संक्रमण को रोकने के प्रयासों और विशेषज्ञों द्वारा बताए गए उपायों को ध्यान में रखते हुए पूरे देश में 21 दिन का लॉकडाउन घोषित किया। महामारी विज्ञान और स्वास्थ्य नीति विशेषज्ञों के अनुसार भारत जैसे देश की सामाजिक और भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन सबसे उचित और निर्णायक उपाय है। 21 दिन के लॉकडाउन से कुल केस 60 से 70 प्रतिशत कम होंगे। इटली, इंग्लैंड और अमेरिका ने पूर्ण लॉकडाउन के बारे में फैसले लेने में बहुत लंबा समय लिया और अब वे इसका परिणाम भुगत रहे हैं। निश्चित रूप से लॉकडाउन कोरोना नियंत्रण में काफी कारगर साबित होगा, लेकिन इसके अलावा भी सरकार को महामारी से निपटने के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है। अभी कई और ठोस कदम उठाने होंगे क्योंकि महामारी-विज्ञान के मॉडलों के अनुसार अप्रैल अंत या मई की शुरुआत से भारत में कोरोना के मामलों में तेजी से वृद्धि हो सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी कहा है कि कोरोना से लडऩे के लिए लॉकडाउन के साथ-साथ सामुदायिक स्वास्थ्य प्रयासों को भी आगे बढ़ाना जरूरी है। भारत की टेस्टिंग दर अभी भी विश्व में तकरीबन सबसे नीचे है।

सरकार को अधिक से अधिक टेस्टिंग करनी चाहिए ताकि हम समय पर पॉजिटिव मरीजों का पता लगा सकें। उन्हें आम जन से दूर करके ही हम संक्रमण को फैलने से रोक सकते है। केंद्र और राज्य सरकारों को कोरोना को नियंत्रित करने के लिए समन्वय बढ़ाते हुए 5-6 महीनों के लिए योजना बनानी चाहिए। इंग्लैंड की तरह सरकार को कोरोना के मरीजों के इलाज के लिए बड़े शहरों में स्थित एम्स, मेडिकल कॉलेज अस्पतालों, क्षेत्रीय अस्पतालों और अन्य बड़े संस्थानों को पूरी तरह से कोविड स्वास्थ्य संस्थानों में बदल देना चाहिए, क्योंकि अन्य मरीजों और कोरोना मरीजों का साथ में इलाज करने से सामान्य मरीजों में संक्रमण का खतरा बढ़ता है। इन संस्थानों में इंटेंसिव केयर यूनिट के लिए आवश्यक समस्त सुविधाएं होनी चाहिए, जैसे वेंटिलेटर चलाने के लिए पाइप्ड ऑक्सीजन, सशन और कॉम्प्रेस्ड हवा की आपूर्ति, संक्रमण नियंत्रण साधन और संसाधनों को सक्रिय रखने के लिए जरूरी बाकी सभी उपकरण। इसके अलावा सुविधायुक्त बड़े जिला अस्पतालों को भी कोविड स्वास्थ्य केंद्रों में बदला जा सकता है। सरकार को निजी क्षेत्र के अस्पतालों को भी साथ में जोडऩे की जरूरत है। साथ ही आइसोलेशन के लिए पर्याप्त इंतजाम करने चाहिए। निजी क्षेत्र के होटल और सामाजिक-धार्मिक संस्थानों द्वारा संचालित धर्मशालाओं का इसके लिए उपयोग किया जा सकता है। काफी बड़े अस्पतालों में निजी सुरक्षा उपकरणों- मास्क, गाउन और दस्तानों की कमी पाई गई है।

इटली और अन्य देशों में स्वास्थ्यकर्मी इन चीजों की कमी के कारण ही संक्रमित हुए। इनकी उपलब्धता सुनिश्चित नहीं करने से स्वास्थ्यकर्मियों की कमी हो सकती है, जिससे संक्रमित मरीजों की संख्या और समस्या दोनों बढ़ जाएगी। सरकार को निजी कंपनियों को आर्थिक सहायता देकर निजी सुरक्षा उपकरणों का उत्पादन तेज करने की जरूरत है। स्वास्थ्य कर्मचारियों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। किसी भी महामारी को रोकने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका स्वास्थ्यकर्मियों की होती है लेकिन दुर्भाग्यवश हमारे देश में स्वास्थ्यकर्मियों की भारी कमी है, विशेष रूप से डॉक्टर्स और नर्सों की। इटली को इसी कारण चीन, यूबा और अन्य देशों से स्वास्थ्य दल बुलाने पड़े। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को राष्ट्रीय स्तर पर दो टीमें बननी चाहिए, जिसमें सरकारी और निजी क्षेत्र के विशेषज्ञ शामिल हो सकते हैं। एक मेडिकल टीम, जिसमें संक्रामक रोग विशेषज्ञ, श्वसन रोग विशेषज्ञ और जनरल फिजिशियन हों। दूसरी टीम आईसीयू टीम हो, जिसमें एनेस्थेसियोलॉजिस्ट और गहन चिकित्सक हों। इस आईसीयू टीम की प्राथमिकता सरकारी और निजी अस्पतालों में बुनियादी ढांचे, एनेस्थिसियोलॉजिस्ट, इंटेंसिविस्ट, पल्मोनोलॉजिस्ट, आईसीयू प्रशिक्षित नर्स और जूनियर डॉटरों के साथ आईसीयू देखभाल के लिए मानवीय संसाधनों की उपलब्धता का जायजा लेना हो। सरकार के फैसले इन दोनों टीमों की सलाह पर आधारित होने चाहिए। भारत में अभी आईसीयू बेड और वेंटिलेटरसुसज्जित बिस्तरों की संख्या पर्याप्त है।

वर्तमान में 30-50 हजार वेंटिलेटर और 70 हजार से 1 लाख आईसीयू बेड होने का अनुमान है। सरकार को इसे तुरंत विस्तारित करने की जरूरत है। ट्रेकोस्टॉमी और लो-कॉस्ट वेंटिलेटर का उपयोग एक विकल्प हो सकता है। एम्स और आईआईटी के वैज्ञानिकों द्वारा सस्ते और गुणवत्ता युक्त वेंटिलेटर के प्रोटोटाइप बनाए गए है। सरकार को इनके उत्पादन को शीघ्रता से बढ़ाना चाहिए। ऑक्सीजन और गैर-आक्रामक सकारात्मक दबाव वेंटिलेशन (जैसे सीपीएपी) की आवश्यकता है। यह क्षमता टियर-1 मेट्रो अस्पतालों के बाहर अपर्याप्त है। पश्चिमी यूरोप, में काफी रोगियों की मृत्यु ऑक्सीजन की आपूर्ति अपर्याप्त होने के कारण हुई। अतिरिक्त कार्डियक मॉनिटर, वेंटिलेटर और सिरिंज पंप स्थानीय स्तर पर बनें या आयात किए जाएं। सरकार इनकी थोक खरीद करे। कोरोना मरीज बढऩे की स्थिति में स्टॉक जल्द ही समाप्त हो जाएगा। वेंटिलेटर कोरोनोवायरस से होने वाली मौतों को रोकने के लिए सबसे जरूरी चीज है। कोरोना के इलाज के लिए अभी कोई मेडिसिन उपलब्ध नहीं है, लेकिन कोरोना संक्रमित मरीजों के लक्षणों को कम करने और उन्हें ठीक करने के लिए पैरासिटामॉल, हाइड्रॉसीलोरोक्वीन, एंटीबायोटिक, एंटीवायरल और अन्य मेडिसिन की जरूरत पड़ती है। सरकार को इनका उत्पादन बढ़ाकर या आयात करके इनकी उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए।

डॉ. महावीर गोलेच्छा
(लेखक इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पलिक हेल्थ, गांधीनगर में एसोसिएट प्रफेसर हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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