अमेरिका और ईरान के बीच बढ़ती तल्खी से तेल उत्पादन में भारी गिरावट और परिणास्वरूप कीमतों में आए भारी उछाल को लेकर दुनिया भर में पहले से ही मंदी का शिकार अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती पैदा हो गई है। ऐसा माना जा रहा है कि दोनों देशों के बीच गतिरोध नहीं टूटा तो तीसरे विश्वयुद्ध की और दुनिया ना चाहते हुए भी दिख सकती है। पिछले दिनों यमन में सऊदी अरब की सरकारी तेल कंपनी अरामको के ठिकानों पर ड्रोन हमला हुआ था। वैसे तो हमले की जिम्मदेारी हूती विद्रोहियों ने लिया था, लेकिन अमेरिका मानता है कि उस हमले के पीछे ईरान का हाथ है। दिलचस्प यह है कि ईरान के इनकार बावजूद बयानों की आक्रामकता जारी है और इस सबका असर पेट्रोल उत्पादन पर पड़ रहा है। यही वजह है कि कच्चे तेल के दाम 19.5 फीसदी बढ़ गए हैं। इन हालात में भारत के लिए दिक्कत यह है कि तनातनी ऐसे ही बनी रही तो यहां की पेट्रोल की कीमत पांच रुपये बढ़ सकती है। इसका सीधा मतलब है कि मंदी को लेकर पहले से चली आ रही चुनौतियों के बीच आर्थिक संकट और गहरा सकता है।
भारत के लिए इसलिए भी सिरदर्द बढ़ाने वाली स्थिति है कि यहां कोर सेक्टर में उदासी का माहौल पसरा हुआ है। आटो सेक्टर का हाल किसी से भी छिपा नहीं है। उत्पादन और बिक्री दोनों का हाल बुरा है। लाखों लोग बेरोजगार हो गये हैं। इसमें आउटसोर्स कर्मचारियों पर ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। टाटा और मारूति जैसी नामी- गिरामी कंपनियां को हफ्तों शटडाऊन कर अपने क र्मचारियों को घर बिठाना पड़ा है। इस मौके पर सरकार आर्थिक सुस्ती दूर करने के लिए नित नए उपाय कर रही है। इधर ऐसे तीन मौके आये हैं जब देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने राहत पैकेजों का ऐलान किया है। खुद आरबीआई गर्वनर जीडीपी के पांच फीसदी दर को लेकर चिंतित हैं। हालांकि उन्हें उम्मीद है कि अगले कुछ महीनों में कृषि क्षेत्र से जीडीपी के दोबारा संभालने की अच्छी सूचना मिल सकती है। ऐसी स्थिति में अन्तर्राष्ट्रीय कारणों से कच्चे तेल के दामों का बढऩा भारत के लिए मुसीबत बढ़ाने वाला साबित हो सकता है। जहां तक अमेरिका की बात है तो अगले वर्ष वहां राष्ट्रपति पद पर चुनाव है।
डोनाल्ड ट्रंप को ईरान से तनातनी में अपने लिए फायदा दिख रहा है। अमेरिका चाहता है कि ईरान का वर्चस्व खत्म हो ताकि उसके पेट्रोलियम उत्पादों को दूसरे देश महंगे दाम पर खरीदने के लिए मोहताज हों। इसके लिए ईरान को युद्ध की तरफ ले जाने में ट्रंप को अपना और अमेरिका का फायदा दिखता है। इराक में जब सद्दाम हुसैन थे। तब भी अमेरिका की नीति कुछ इसी तरह की थी। प्रचारित किया गया था कि वहां जैविक हथियारों का जखीरा है, जिससे पूरी मानव जाति को खतरा हो सकता है। इसी को लेकर वहां तगता पलट हुआ, बाद में जैविक हथियारों की बात भी झूठ निकली। जार्ज बुश राष्ट्रपति का चुनाव दोबारा जीत गये। ट्रंप का अपना हित है और उसके हिसाब से वो कदम उठा रहे हैं। पर इससे यहां मंदी के बादल और गहराने के आसार प्रबल हो गये हैं। हालांकि सरकार का मानना है कि खरीफ सीजन के बाद आर्थिक सुस्ती दूर होने के आसार हैं। पर इतना तो साफ दिख रहा है कि वैश्विक मंदी के तर्कों के बीच देश के भीतर एक अनिश्चितता है उसे दूर किए जाने की दिशा में पहले से अधिक तेजी की जरूरत होगी।