अमेरिकी के 200 साल के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ, जब एक चुनाव हारा हुआ राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रप अपनी हार स्वीकार करने से इनकार कर रहा हो और उसके समर्थक अमेरिकी संसद को घेर लें। लोकतंत्र की हत्या कर दें। जमकर हिंसा फैलाएं। सांसदों को बंधक बना लें। चार लोगों को जान से हाथ धोना पड़े। अमेरिका में बुधवार को जो कुछ हुआ उसे उपराष्ट्रपति माइक पेंस ने ‘देश के लोकतांत्रिक इतिहास का काला दिन’ करार दिया। यह तो तय है कि राष्ट्रपति डेमोक्रेट पार्टी के जो बाइडेन ही बनेंगे। मोटे तौर पर देखें तो बाइडेन की जीत 3 नवंबर को चुनाव वाले दिन ही तय हो गई थी। 14 नवंबर को इलेटोरल कॉलेज की वोटिंग के बाद इस पर एक और मुहर लगी। 6 नवंबर को बाइडेन की जीत की संवैधानिक पुष्टि होनी थी। ऐसे में सवाल यह कि जब सब तय था तो बवाल यों हुआ? आखिर दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र कलंकित क्यों हुआ? इसका एक ही जवाब हैडोनाल्ड ट्रप की जिद। ट्रप रिपब्लिकन और बाइडेन डेमोक्रेट पार्टी के कैंडिडेट थे। कोरोनावायरस को संभालने में ट्रप की नाकामी मुख्य मुद्दा बनी। ट्रप महामारी को मामूली फ्लू तो कभी चीनी वायरस बताते रहे। 3 लाख से ज्यादा अमेरिकी मारे गए। लाखों बेरोजगार हो गए। अर्थव्यवस्था चौपट होने लगी। ट्रप श्वेतों को बरगलाकर चुनाव जीतना चाहते थे।
क्योंकि, अश्वेत भेदभाव का आरोप लगाकर उनसे पहले ही दूर हो चुके थे। 3 नवंबर को चुनाव हुआ। अमेरिका में जनता इलेटर्स को चुनती है और इलेटर्स राष्ट्रपति को चुनते हैं। इनके कुल 538 वोट होते हैं। राष्ट्रपति बनने के लिए 270 वोटों की दरकार होती है। 3 नवंबर को ही साफ हो गया था कि बाइडेन को 306, जबकि ट्रप को 232 वोट मिले। यानी ट्रप हार चुके हैं। चुनाव के पहले ही ट्रप ने साफ कर दिया था कि वे हारे तो नतीजों को स्वीकार नहीं करेंगे। अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियां शायद उनका इशारा समझ नहीं पाईं। क्योंकि, अगर समझी होतीं तो बुधवार की घटना टाली जा सकती थी। संसद के बाहर लोग जुट ही नहीं सकते थे। संसद में बुधवार को बाइडेन की जीत पर संवैधानिक मुहर लगनी थी। संसद के दोनों सदनों के सामने इलेटर्स के वोट की गिनती होनी थी। यहां एक छोटी से बात और समझ लीजिए। अमेरिका में चुनाव के बाद नतीजों को अदालतों में चुनौती दी जा सकती है। लेकिन, वहां इनका निपटारा 6 जनवरी के पहले यानी संसद के संयुत सत्र के पहले होना चाहिए था। यही हुआ भी। फिर, संसद बैठी। उसने चार मेंबर्स चुने। ये हर इलेटर का नाम लेकर यह बता रहे थे कि उसने वोट ट्रप को दिया या बाइडेन को।
बवाल इसलिए हुआ क्योंकि ट्रप समर्थकों को भड़का रहे थे। वे नहीं चाहते थे कि इलेटोरल कॉलेज, यानी इलेटर्स के वोटों की गिनती हो। दूसरे शब्दों में कहें तो ट्रप नहीं चाहते थे कि संसद बाइडेन के 20 जनवरी के शपथ ग्रहण समारोह को हरी झंडी दे। ट्रप ने सोशल मीडिया पर भड़काऊ बयान दिए। समर्थक भड़क गए। संसद में हंगामा हुआ। वो सब हुआ जो अमेरिकी लोकतंत्र ने 200 साल में नहीं देखा था। इससे पहले का इतिहास बताता है कि कैपिटल हिल हिस्टॉरिकल सोसायटी के डायरेटर ऑफ स्कॉलशिप ऐंड ऑपरेशन्स सैयुअल हॉलिडे ने बताया है कि 1812 के युद्ध के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि कैपिटल में इस तरह दाखिल हुआ गया है। तब अगस्त 1814 में अंग्रेजों ने इमारत पर हमला कर दिया था और आग लगा दी थी। 1954 में हाउस चेंबर में तीन पुरुष और एक महिला विजिटर गैलरी में हथियारों के साथ जाकर बैठ गए थे। प्योर्टो रीकन नेशनलिस्ट पार्टी के ये सदस्य देश की आजादी की मांग कर रहे थे। उन्होंने 1 मार्च, 1954 की दोपहर को सदन में ओपन फायरंग कर दी और प्योर्टो रीको का झंडा लहरा दिया। इस घटना में कांग्रेस के पांच सदस्य घायल हुए थे। लेकिन अब जो हुआ वो हमेशा अमेरिकी लोकतंत्र को कलंकित करता रहेगा। हार के बाद भी राजपाट ना छोडऩे वाले तानाशाह और अहंकारी होते हैं। ट्रप ना तो पहले हैं और ना ही आखिरी।