महामारी की वैश्विक (डल्यूएचओ से) घोषणा दो टूक है। तभी देर आयद दुरूस्त में भारत सरकार जो कर रही है वह सही है। विदेशियों के वीजा रद्द कर उनका भारत आना 15 अप्रैल तक बंद करना और भारत के लोगों को भी विदेश न जाने की सलाह देना सही कदम है। हां, कोई फर्क नहीं पड़ेगा यदि महीने-दो महीने हम सवा अरब लोग पूरी तरह ‘भारत बंद’में जीयें। शेयर मार्केट बंद हो जाए, काम-धंधा स्थगित हो जाए, सब बरदास्त करना होगा। पेन्डिमिक का हिंदी में अर्थ महामारी ही है। मतलब वह नई बीमारी जिससे लडऩे की ताकत लोग लिए हुए नहीं हो और जो दुनिया में अचानक उम्मीद से अधिक, तेजी से फैले। ध्यान रहे बीमारी और उसकी प्रकृति नहीं बल्कि उसके फैलाव के बड़े भौगौलिक आकार के चलते डल्यूएचओ किसी बीमारी को महामारी यानी पेन्डिमिक घोषित करता है। महामारी घोषित हुई है तो मान कर चलना चाहिए कि दुनिया के किसी समुदाय, देश में पहुंची नहीं कि वहा फैलाव होगा ही। तभी सरकारों को, स्वास्थ्य सेवाओं को तुरंत रोकथाम के लिए अपने आपको झौंक देना चाहिए।
कोरोना वायरस पुरानी बीमारी विशेष के फूट पडऩे वाला याकि संक्रामक प्रकोप नहीं है बल्कि वह नई महामारी है जिससे अपने आपको बचाने के लिए, बीमारी को फैलने नहीं देने के लिए हर देश को वैसे ही प्रबंध करने चाहिए जैसे चीन, दक्षिण कोरिया, इटली, अमेरिका आदि ने किए हैं उस नाते भारत द्वारा विदेश से आवाजाही रूकवाना सही कदम है तो महामारी घोषणा के साथ भारत में पहुंच चुके वायरस की‘खोज, टेस्ट, इलाज, बीमार को पृथक करना, बीमार से फैलाव को ट्रेस करने, लोगों को जागरूक, मोबलाइज करने के काम हर सरकार का प्राथमिक नंबर एक काम बन जाना चाहिए। इसकी खातिर दुनिया के बाकि देश जो कर चुके है, जो कर रहे है उन उपायों को भारत में सख्ती से लागू करना अनिवार्यता मानी जानी चाहिए। क्या यह घबराना नहीं है? विचार आता है कि दुनिया क्या ज्यादा घबरा नहीं गई है? पूरा का पूरा शहर, पूरा प्रांत, पूरा देश तालाबंद हो कर वायरस खत्म करने के जैसे एम्स्ट्रीम कदम उठ रहे है क्या वे वाजिब है? कहीं घबराहट में दुनिया अपने पांवों पर कुल्हाड़ी तो नहीं मार रही है, बरबादी तो नहीं बुला रही है?
सचमुच ऐसी किसी ने कल्पना नहीं की थी कि छह करोड़ लोगों की आबादी का इटली अपने आपको कभी ‘इटली बंद’ में कनवर्ट कर अप्रैल तक ठप्प पड़ा रहेगा। अमेरिका ने आज ब्रिटेन को छोड़ पूरे यूरोप से लोगों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया है। दुनिया की आर्थिकी ठहरने वाली है। यूरोप में जर्मनी की चासंलर ने आर्थिकी में भारी जड़ता, ठहराव की चेतावनी दी है। अमेरिकी शेयर बाजार हो या यूरोपीय, चीन, जापान सभी के शेयर बाजार वायरस की छींकों से औंधे मुंह गिरे हुए हैं। यूरोपीय संघ के केंद्रीय बैंक की चीफ ने सदस्य देशों को मुश्किल भले फैसले लेने को कहा है। हां, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कोरोना वायरस को लेकर अमेरिका को जिस तरह की तालेबंदी में डाला है और अमेरिका की प्रदेश सरकारों, विश्वविद्यालयों, कंपनियों, संगठनों, समुदायों ने अपने आपको जैसे छूआछूत की किलेबंदी में बदला है वह मानव इतिहास की अनहोनी है। अभी मौटे तौर पर 15 अप्रैल तक तालाबंदी का, अछूत होने का रोडमैप है मगर जो हालात है उससे लगता है कि मई में उत्तरी गौलार्ध के कर्क रेखा के ऊपरी क्षेत्र में 35-40 डिग्री तापमान आने तक महामारी की कंपकंपी बनी रहेगी।
लेकिन तब सवाल होगा कि वायरस क्या तब दक्षिणी गौलार्ध के नीचे के ठंडे देशों में नहीं पहुंच चुका होगा? आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रिका से लेकर अर्जेंटाईना के ठंडे इलाकों तक क्या चीन के हुबई का वायरस नहीं पहुंचा होगा? इसलिए कोरोना वायरस दुनिया को क्या अनुभव कराएगा, इसका जवाब वक्त देगा। मोटे तौर पर 31 दिसंबर को चीन के हुबेई प्रांत, उसकी राजधानी वुहान और वुहान में भी उसके सीफूड, समुद्री मछली बाजार में नए वायरस का जो कीटाणु पैदा हुआ और सात जनवरी को वह बीमारी के रूप में जैसे प्रकट हुआ व उसने फिर ढाई महीने में दुनिया को जैसे नचाया है उससे तय माने कि महामारी को वैश्विक प्रयासों से ही खत्म कर सकते हैं। हर देश, हर समुदाय, आबादी को अपने आपको बंद कर, अदंरूनी रोकथाम, इलाज से ही वायरस खत्म करना होगा। पहली जरूरत है कि आबादी को बाड़े में बंद कर उसे असंक्रमित किया जाए। यह भारत जैसे भीड़ भरे, अराजक देश में सर्वाधिक मुश्किल है। इसलिए अपने को चिंता है कि भारत में वायरस कही पेन्डिमिक का जटिल देश न बन जाए। हां, जानकारों का यह कहना जरूर सुकुनदायी है कि अप्रैल-मई में तेज गर्मी शायद वायरस को मार दे। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)