रविवार की सुबह दिल्ली के अनाज मंडी इलाके की अवैध फैक्ट्री में भीषण अग्निकांड के चलते 43 जिन्दिगियां खाक हो गई। नेताओं की तरफ से शोक संवेदना और दिल्ली व बिहार सरकार की तरफ से मुआवजे का ऐलान, शायद जो गरीब रोटी की आस में अपना घर-बार छोडक़र फैक्ट्री में काम कर रहे थे, उनके सपनों को यही सिला मिलना था। यदि ऐसा ना होता तो वो कौन-सी परिस्थितियां थीं कि राष्ट्रीय राजधानी में नियमों को दरकिनार कर फैक्ट्री संचालित हो रही थी। दिल्ली सरकार के मुलाजिम किस बात की तनगवाह पाते हैं? जिस क्षेत्र में यह फैक्ट्री संचालित थी, वहां के सभासद, विधायक और सांसद घटना से पहले तक अनजान थे या फि र जानते हुए भी अनदेखी कि ये बैठे थे कि उनका कोई हित उससे जुड़ा हुआ था-ये सारे सवाल अब जांच का हिस्सा बनना चाहिए। यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि रिहायशी इलाके में अवैध रूप से एक फैक्ट्री का संचालन हो रहा था। राज्य में अरविंद के जरीवाल की सरकार है, जिसका दावा है कि वो आम सरोकारों को समर्पित पार्टी है। केन्द्र में मोदी सरकार है जिसने किसी भी तरह के भ्रष्टाचार को ना पनपने देने की बात बार-बार दोहराई है।
इसके बावजूद ऐसा दर्दनाक काण्ड हो गया, दो ही तथ्यों को रेखांकित करता है। एक दावे सिर्फ चुनाव जीतने के लिए होते हैं, दूसरा, सरकारी तंत्र में नीचे से लेकर ऊपर तक लोगों को जानकारी तो होती है लेकिन कार्रवाई नहीं होती। जाहिर है, सबके अपने- अपने हित हैं।इसीलिए के जरीवाल सरकार के मजिस्ट्रेटी जांच को लेकर बहुत आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता। बस कोई कठोर कार्रवाई हो जाए। इसलिए भी कि 2020 में दिल्ली विधानसभा के चुनाव प्रस्तावित हैं। केन्द्र भी हरकत में आ सकता है। यह मामला शून्य प्रहर में लोक सभा में गूंजा। मुआवजे और जांच तक सारे सुझाव सीमित रहे। याद होगा, बहुत पहले दिल्ली में उपहार सिनेमा हाल भीषण अग्निकांड का निवाला बना था, उसमें दर्जनों जानें खाक हो गई थीं। मामले की जांच हुई। कई सेफ्टी फीचर्स अनिवार्य बताये गये। एक उम्मीद बंधी कि कम से कम भविष्य में इस तहर की त्रासद घटना नहीं होगी। लेकिन ऐसा फिर हुआ। देश के कई हिस्सों में ऐसी घटनाएं होती आई हैं। कुछ वक्त के लिए भले ही सन्नाटे के साथ मातम हुआ हो और जांच की रस्म हुई हो लेकिन बाद में फिर पहले जैसी सोची-समझी लापरवाही।
भूल हो तो सुधार की गुंजाइश होती है लेकिन जानते हुए हो तो ईश्वर ही मालिक। यह कितना हास्यास्पद है कि पोंजी कंपनियों पर सरकार शिकंजा कसती है लेकिन अवैध रूप से संचालित हो रही फैक्ट्रियों पर अंकुश नहीं लगा पाती। सवाल गंभीर है कि राष्ट्रीय राजधानी में ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति पैदा हो जाती है जहां दो सरकारें हैं। लगता है कि आमजन की चिंता सरकारों की प्राथमिकता में नहीं है। रही बात कामगारों की तो देश के दूर-दराज इलाकों से लोग दिल्ली का रूख करते हैं। उन्हें रोजगार मिलता है जिससे गांव में परिवारजनों की जरूरतें पूरी होती हैं, लिहाजा वे क्या जानें कि फैक्ट्री अवैध रूप से संचालित हैं या उसमें सुरक्षा के मानकों को दरकिनार किया गया है। इस अग्निकांड में ऐसे ही निरीह मजूदरों ने अपनी जान गंवाई है। जो किसी तरह बच पाये हैं, उनका इलाज चल रहा है। दमकल कर्मियों की भूमिका सराहनीय है। संकरी गलियों के कारण जरूर अभियान चलाने में दिक्कतें हुईं फिर भी कई की जान बचाई जा सकी, यह बड़ी बात है। अब दिल्ली सरकार को चाहिए कि मामले की निष्पक्ष जांच क राक र जो भी दोषी माना जाए, उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई हो तथा आगे से ऐसी परिस्थिति ना पैदा हो इस बारे में स्पष्ट रोडमैप हो।