तेरा निज़ाम है..

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ये लाइनें दुष्यंत कुमार की एक गजल की हैं- तेरा निज़ाम है सिल दे जुबान शायर की, ये एहतियात जरूरी है इस बहऱ के लिए। कहा जाता है कि दुष्यंत कुमार ने ये लाइनें 1975-77 के आपातकाल की पृष्ठभूमि में लिखी थीं। लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए ऐसा लगता है कि ये आज के लिए ही लिखी गई हैं। इस बात को अब सच उत्तर प्रदेश के उन्नाव में किया गया है। वहां आठ ट्विटर हैंडल चलाने वाले लोगों पर एफआईआर दर्ज कर दी गई है। उनका दोष यह है कि उन्होंने वहां तीन दलित लड़कियों की मिली लाश के बारे में ट्विट किए थे। जिन लोगों पर मुकदमा हुआ है, उनमें कांग्रेस नेता उदित राज, कुछ पत्रकार और दलित अधिकार कार्यकर्ता शामिल हैं। यूपी पुलिस का कहना है कि उदित राज ने भी अपने ट्वीट के जरिए गलत और भ्रामक जानकारी फैलाने का काम किया। जबकि उदितराज का कहना है कि उन्होंने जो ट्वीट किया था, वह पूर्व सांसद सावित्री बाई फुले के बयान के आधार पर किया था, जिसमें उन्होंने आशंका जताई थी कि मृत लड़कियों के साथ हो सकता है कि रेप भी हुआ हो। उन्नाव जिले के असोहा थाना क्षेत्र के बबुरहा गांव में पिछले हते तीन लड़कियां एक खेत में बेहोशी की हालत में दुपट्टे से बंधी पड़ी मिली थीं।

तीनों लड़कियां बुधवार दोपहर मवेशियों के लिए चारा लेने खेत में गई थीं, लेकिन जब देर शाम तक वे नहीं लौटीं, तो उनकी तलाश की गई। तीनों ही युवतियां एक ही परिवार की थीं, जिनमें दो चचेरी बहनें थीं। तीसरी एक लड़की उन दोनों की रिश्ते में बुआ लगती थी। तीनों की उम्र 13 साल, 16 साल और 17 साल थी। अस्पताल पहुंचने से पहले ही दो लड़कियों की मौत हो गई, जबकि एक लड़की गंभीर हालत में कानपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती है। लड़कियों के कुछ परिजनों ने बेटियों के साथ ‘गलत काम’ होने की भी आशंका जताई थी, जिसके आधार पर कुछ जगहों पर ऐसी खबरें भी प्रकाशित हुईं। हाल में हाथरस में भी ऐसा मामला सामने आया था, जहां पुलिस ने पहले यह कहने की कोशिश की थी कि लड़की से बलात्कार नहीं हुआ। यहां भी प्रशासन का यही दावा है। मगर पीडि़त पक्ष की आशंकाओं के आधार पर खबर छापना या ट्विट करना अपराध कैसे है, यह समझना मुश्किल है। क्या ये एफआईआर हर संभावित आवाज को दबाए रखने की कोशिश नहीं हैं? ऐसे मामलों में दिल्ली की एक निचली अदालत ने जो कहा, वैसी विवेकपूर्ण बात की आशा उच्चतर न्यायपालिका से की जाती है।

इसे विडंबना ही कहेंगे, जिस समय हम उच्चतर न्यायपालिका से ऐसी बातें के लिए तरस रहे हैं, ये साधारण लेकिन आज के दौर में बेहद अहम बात एक अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने कही। उन्होंने कहा कि उपद्रवियों का मुंह बंद करने के बहाने असंतुष्ट लोगों को खामोश करने के लिए राजद्रोह का कानून नहीं लगाया जा सकता। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राना ने किसानों के प्रदर्शन के दौरान फेसबुक पर फर्जी वीडियो डालकर कथित रूप से राजद्रोह और अफवाह फैलाने के आरोप में गिरतार दो व्यक्तियों- देवी लाल बुरदक और स्वरूप राम- को जमानत देने के दौरान यह टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि उनके सामने आए मामले में आईपीसी की धारा 124-ए (राजद्रोह) लगाया जाना ‘गंभीर चर्चा का मुद्दा’ है। राजद्रोह कानून का संबंध जाहिरा तौर पर ऐसे कृत्यों से है, जिनमें हिंसा के जरिये सार्वजनिक शांति को बिगाडऩे या गड़बड़ी फैलाने की कोशिश की गई हो। यह तर्कपूर्ण ही है कि अदालत ने इसे राजद्रोह का मामला नहीं माना। उसने दोनों आरोपी व्यक्तियों को 50 हजार की जमानत और इतनी ही रकम के दो मुचलकों पर जमानत दे दी। इसे कानून और उसकी भावना की सही व्याख्या माना जाएगा। अदालतों से आखिरकार ऐसा ही अपेक्षित रहता है। तो क्या योगी सरकार भी इस राह को अपनाएगी जिससे लोकतंत्र का एहसास होता हो..

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