सोमवार, 8 जून को आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी है। इस बार सोमवार को ये चतुर्थी होने से इस दिन गणेशजी के साथ ही शिवजी की भी विशेष पूजा करनी चाहिए। पूर्णिमा के बाद आने वाली चतुर्थी का महत्व काफी अधिक है। चतुर्थी तिथि के स्वामी गणेशजी ही हैं। इस दिन किए गए व्रत-उपवास और पूजा-पाठ से सुख-समृद्धि, ज्ञान और बुद्धि बढ़ोतरी हो सकती है। गणेश चतुर्थी पर सुबह जल्दी उठें और स्नान के बाद सूर्य को जल चढ़ाएं। ऊँ सूर्याय नम मंत्र का जाप करें। इसके बाद घर के मंदिर में गणेश प्रतिमा स्थापित करें। सिंदूर, दूर्वा, फूल, चावल, फल, जनेऊ, प्रसाद आदि चीजें चढ़ाएं। धूप-दीप जलाएं। ऊँ गं गणपतयै नम मंत्र का जाप करते हुए पूजा करें। मंत्र जाप 108 बार करें।
गणेशजी के सामने व्रत करने का संकल्प लें और पूरे दिन अन्न ग्रहण न करें। व्रत में फलाहार, पानी, दूध, फलों का रस आदि चीजों का सेवन किया जा सकता है। शिवजी के मंत्र ऊँ सांब सदाशिवाय नम: का जाप 108 बार करें। शिवलिंग पर तांबे के लोटे से जल चढ़ाएं। बिल्व पत्र और फूल चढ़ाएं। दीपक जलाकर आरती करें। पूजा के बाद घर के आसपास जरूरतमंद लोगों को धन और अनाज का दान करें। गाय को रोटी या हरी घास दें। किसी गौशाला में धन का दान भी कर सकते हैं।
संकट हरण: संकष्टी चतुर्थी का मतलब होता है संकट को हरने वाली चतुर्थी। संकष्टी संस्कृत भाषा से लिया गया शब्द है, जिसका अर्थ है कठिन समय से मुक्ति पाना। इस दिन भक्त अपने दुखों से छुटकारा पाने के लिए गणपति जी की अराधना करते हैं। गणेश पुराण के अनुसार चतुर्थी के दिन गौरी पुत्र गणेश की पूजा करना फलदायी होता है। इस दिन उपवास करने का और भी महत्व होता है। भगवान गणेश को समर्पित इस व्रत में श्रद्धालु अपने जीवन की कठिनाइयों और बुरे समय से मुक्ति पाने के लिए उनकी पूजा-अर्चना और उपवास करते हैं। कई जगहों पर इसे संकट हारा कहते हैं तो कहीं इसे संकट चौथ भी कहा जाता है। इस दिन भगवान गणेश का सच्चे मन से ध्यान करने से व्यक्ति की सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और लाभ प्राप्ति होती है।