क्या विश्व परिवार की हार का कारण बनेगी कोरोना बीमारी ?

0
520

ऐसा लगता है कि भारत और दक्षिण अफ्रीका की पहल अब शायद परवान चढ़ जाएगी। पिछले साल अक्तूबर में इन दोनों देशों ने मांग की थी कि कोरोना के टीके का एकाधिकार खत्म किया जाए और दुनिया का जो भी देश यह टीका बना सके, उसे यह छूट दे दी जाए। विश्व व्यापार संगठन के नियम के अनुसार कोई भी किसी कंपनी की दवाई की नकल तैयार नहीं कर सकता है। प्रत्येक कंपनी किसी भी दवा पर अपना पेटेंट करवाने के पहले उसकी खोज में लाखों-करोड़ों डॉलर खर्च करती है। दवा तैयार होने पर उसे बेचकर वह मोटा फायदा कमाती है। यह फायदा वह दूसरों को यों उठाने दें ? इसीलिए पिछले साल भारत और द. अफ्रीका की इस मांग के विरोध में अमेरिका, यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, जापान, स्विट्जरलैंड जैसे देश उठ खड़े हुए।

ये समृद्ध देश अपनी गाढ़ी कमाई को लुटते हुए कैसे देख सकते थे लेकिन पाकिस्तान, मंगोलिया, केन्या, बोलिविया और वेनेजुएला- जैसे देशों ने इस मांग का समर्थन किया। अब खुशी की बात यह है कि अमेरिका के बाइडन प्रशासन ने ट्रंप की नीति को उलट दिया है। अमेरिका यदि अपना पेटेंट छोडऩे को तैयार है तो अन्य राष्ट्र भी उसका अनुसरण यों नहीं करेंगे? अब ब्रिटेन और फ्रांस जैसे राष्ट्रों ने भी भारत के समर्थन की इच्छा जाहिर की है। यों की है ? योंकि अब दुनिया को पता चल गया है कि कोरोना की महामारी इतनी तेजी से फैल रही है कि मालदार देशों की आधा दर्जन कंपनियां 6-7 अरब टीके पैदा नहीं कर पाएंगी। अब केनाडा, बांग्लादेश और दक्षिण कोरिया- जैसे लगभग आधा दर्जन देश ऐसे हैं, जो कोरोना का टीका बना लेंगे।

लेकिन यह जरुरी है कि उन्हें पेटेंट का उल्लंघन न करना पड़े। विश्व स्वास्थ्य संगठन के 164 सदस्य-देशों में से अगर एक देश ने भी आपत्ति कर दी तो यह अनुमति उन्हें नहीं मिलेगी। जर्मनी आपत्ति कर रहा है। यह तर्क निराधार नहीं है लेकिन जिस देश की कंपनी भी ये टीके बनाएगी, वह मूल कंपनी के निर्देशन में बनाएगी और उस देश की सरकार की कड़ी निगरानी में बनाएगी। उन टीकों की कीमत भी इतनी कम होगी कि गरीब देश भी अपने नागरिकों को उन्हें मुख्त में बांट सकेंगे। इस समय उन्नत देशों से आशा की जाती है कि वे दरियादिली दिखाएंगे। भारत ने कई जरुरतमंद देशों को करोड़ों टीके मुख्त में बांट दिए या नहीं? कोरोना की इस महामारी का महासंदेश यही है कि आप सारे विश्व को अपना कुटुंब समझकर काम करें। वसुधेवकुटुबकम् या विश्व-परिवार !

डा. वेदप्रताप वैदिक
(लेखक भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here