क्या बंगाल में लगेगा राष्ट्रपति शासन?

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एक सवाल अब ज्यादा उछ्ल रहा है कि पश्चिम बंगाल में चुनाव से पहले राष्ट्रपति शासन लगेगा ? भाजपा को ऐसी रणनीतिक गलती नहीं करनी चाहिए। क्योंकि बंगाली अस्मिता का कार्ड खेल रही और बाहरी-भीतरी का मुद्दा उठा चुकीं ममता बनर्जी को इसका फायदा मिलेगा। अगर ममता बनर्जी की 10 साल पुरानी सरकार कानून-व्यवस्था के आधार पर हटाई जाती है और राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है तो उनके लिए विक्टिम कार्ड खेलना भी आसान हो जाएगा और उनको इस पर सहानुभूति भी मिल सकती है। भाजपा के साथ मुश्किल यह है कि उसके पास कोई लोकप्रिय स्थानीय, बंगाली चेहरा नहीं है। उसकी मजबूरी है कि वह नरेंद्र मोदी, अमित शाह, जेपी नड्डा और कैलाश विजयवर्गीय के चेहरे पर चुनाव लड़े। ऐसे में अगर राष्ट्रपति शासन लगता है तो एक राज्यपाल का भी चेहरा हो जाएगा, जिससे ममता बाहरी और भीतरी का मुद्दा ज्यादा आसानी से उठा सकती हैं।

हालांकि दूसरी ओर भाजपा के नेताओं का कहना है कि अगर चुनाव से पहले ममता सरकार को हटा दिया जाता है तो पुलिस, प्रशासन सब उनके हाथ से निकल जाएगा, जिससे तृणमूल कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटेगा और पार्टी में बड़ी टूट हो जाएगी। सत्ता के भय से जो विधायक और नेता पाला बदलने से डर रहे हैं वे तृणमूल छोड़ देंगे। सो, दोनों तरह की बातें हो रही हैं और इस बीच केंद्र के साथ ममता बनर्जी सरकार का टकराव बढ़ता जा रहा है। अधिकारियों को दिल्ली तलब करने से लेकर पुलिस अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली बुलाने के मामले में दोनों के बीच विवाद चल रहा है। राज्यपाल ने अपनी रिपोर्ट में कानून-व्यवस्था बेहद खराब होने की बात लिखी है और प्रेस कांफ्रेंस में संवैधानिक संकट बताया था। इस महीने के अंत में अमित शाह का बंगाल दौरा होना है, तब तक स्थिति स्पष्ट होगी।

दूसरी ओर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद को जमानत नहीं मिली। पिछले एक महीने से ज्यादा समय से उनकी जमानत का इंतजार हो रहा है। उनकी जमानत पर नौ नवंबर को सुनवाई होनी थी और उसके अगले दिन 10 नवंबर को बिहार विधानसभा के चुनाव नतीजे आने वाले थे। चूंकि चारा घोटाले से जुड़े दो अलग-अलग मामलों में लालू प्रसाद को जमानत मिल चुकी है और जमानत का आधार यह था कि उन्होंने अपनी आधी सजा पूरी कर ली है, इसलिए इस एक मामले में भी उम्मीद की जा रही थी उनको जमानत मिल जाएगी क्योंकि इसमें भी उनकी आधी सजा 10 नवंबर को पूरी हो रही थी। पर अब तक नहीं मिली। लालू को जमानत ना मिलने से नीतीश जरूर खुश होंगे। असल में बिहार में चुनाव के बाद से अभी राजनीति स्थिर नहीं हुई है। चारों तरफ विधायकों की तोडफ़ोड़ और खरीद-फरोख्त की चर्चा है। चूंकि साारूढ़ और विपक्षी गठबंधन के बीच सिर्फ 15 विधायकों का फर्क है इसलिए मामला तलवार की धार पर है।

तभी दोनों पार्टियां विधान परिषद की राज्यपाल कोटे की 12 सीटों पर अपना अपना हिस्सा नहीं तय कर पा रही हैं और इस वजह से मंत्रिमंडल का विस्तार भी नहीं हो सका। सरकार सिर्फ 14 मंत्रियों के साथ चल रही है। तीसरे, भाजपा के प्रबंधक सुशील मोदी अब बिहार की बजाय दिल्ली की राजनीति में चले गए हैं। ऐसे समय में अगर लालू प्रसाद को जमानत मिल जाती और वे पटना में बैठते तो कोई उलटफेर कर सकते थे। सुशील मोदी ने उन पर आरोप लगाया था कि वे स्पीकर के चुनाव में भाजपा के विधायकों को फोन करके गैरहाजिर रहने के लिए कह रहे थे। जब लालू प्रसाद जेल से यह काम कर सकते हैं तो पटना में बैठ कर वे कुछ भी करने में सक्षम हैं। अब छह हफ्ते तक उनके जेल में रहने से जदयू-भाजपा को समय मिल जाएगा कि 14 जनवरी को मलमास खत्म होने तक सारे विवाद सुलझा लें, विधान परिषद के नाम तय कर लें, मंत्रियों की सूची बना लें और लालू के जेल से निकलने से पहले से मंत्रिमंडल का विस्तार करके सारी चीजें सेटल करें।

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