कोरोना वायरस का संकट अब ऐसी स्थिति में पहुंच गया है, जहां से इसका प्रसार रोकने, इलाज के लिए बुनियादी मेडिकल सुविधाओं का बंदोबस्त करने और लोगों की जान व जहान दोनों बचाने के लिए केंद्रीय कमान बनाने की जरूरत है। भारत में हर चीज पर इतनी ज्यादा राजनीति होती है और अभी पक्ष व विपक्ष का राजनीतिक विभाजन भारत-पाकिस्तान या भारत-चीन की तरह हो गया, तभी ऐसी हालत में राष्ट्रीय सरकार के बारे में तो नहीं सोचा जा सकता है पर यह जरूरत बहुत साफ दिख रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगे आएं और भारत के कोरोना अभियान की कमान संभालें। इस बात की चिंता छोड़ें कि अगर देश में बड़ी संख्या में लोग संक्रमित होते हैं या मरते हैं तो उनकी सब कुछ मुमकिन करने वाली छवि का क्या होगा! आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही कोरोना के खिलाफ भारत की लड़ाई का आगाज किया था तो इसे अंजाम तक ले जाने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की बनती है।
आखिर उन्होंने राष्ट्रीय टेलीविजन पर आकर लोगों से जनता कर्फ्यू की अपील की थी फिर पहले लॉकडाउन का ऐलान किया था और लोगों को भरोसा दिलाया था कि जैसे 18 दिन में महाभारत की लड़ाई जीती गई थी वैसे ही कोरोना से लड़ाई 21 दिन में जीत ली जाएगी। मान लिया कि 21 दिन में या 40 दिन में या अब 75 दिन में भी कोरोना के खिलाफ लड़ाई नहीं जीती गई है तो इसका यह मतलब नहीं है कि प्रधानमंत्री देश की जनता को उसके हाल पर छोड़ देंगे। अमेरिका में भी सारे अनुमान गलत हुए। वहां 66 हजार लोगों के मरने का अनुमान था पर अभी तक एक लाख 12 हजार पांच सौ लोग मर चुके हैं। पर वहां के राष्ट्रपति ने न तो अपनी प्रेस ब्रीफिंग बंद की और न लड़ाई खत्म की। सो, प्रधानमंत्री को आगे आकर लड़ाई की कमान संभालनी चाहिए। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो उनकी छवि ‘रणछोड़दास’ की बनेगी।
दो दिन पहले रविवार को अपने साप्ताहिक कॉलम में कांग्रेस के नेता पी चिदंबरम ने इसका जिक्र किया। उन्होंने लिखा कि प्रधानमंत्री ने कोरोना की लड़ाई शुरू की पर अब उसे मुख्यमंत्रियों के भरोसे छोड़ दिया है। चिदंबरम ने लिखा कि मोदी ने सारे ज्वलंत मुद्दे छोड़ दिए हैं। वे चीन पर कुछ नहीं बोल रहे हैं, आर्थिकी का मुद्दा वित्त मंत्री के हवाले छोड़ दिया है, कश्मीर का मसला सेना के हवाले है, लॉकडाउन के दिशा-निर्देश गृह मंत्रालय के बाबू लोग जारी कर रहे हैं आदि-आदि। ऐसी छवि से बचने के लिए जरूरी है कि वे कोरोना से लड़ाई की कमान संभालें। पहले चरण की लॉकडाउन की घोषणा के बारे में उन्होंने जरूर मुख्यमंत्रियों से बात नहीं की थी और न उनकी राय ली थी पर उसके बाद वे मुख्यमंत्रियों से बात करते थे। उन्हें यह सिलसिला फिर शुरू करना चाहिए। सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से एक बार में नहीं हो तो अलग अलग बात करनी चाहिए।
उनकी समस्याओं को सुनना चाहिए और उनकी जरूरत के मुताबिक उनको मदद देनी चाहिए। सभी राज्यों को इस समय अतिरिक्त मेडिकल सुविधा की जरूरत है और वे अपने दम पर यह सुविधा जुटाने में सक्षम नहीं हैं। केंद्र सरकार उनकी मदद कर सकती है। इस मदद के लिए एक केंद्रीय कमान बनाने की जरूरत है। दिल्ली में एक केंद्रीय कमान हो, जिसके प्रमुख खुद प्रधानमंत्री हों और उसमें सभी अहम मंत्रियों को शामिल किया जाए। इस केंद्रीय कमान की देख-रेख में कोरोना से लड़ाई होनी चाहिए। कोरोना के साथ रहना सीखने की सलाह देने की बजाय उससे लड़ कर रोकने का प्रयास होना चाहिए। इस समय पूरे देश में टेस्टिंग और मरीजों के अस्पताल में भरती को लेकर त्राहिमाम वाली स्थिति है। हर जगह यह सुनने को मिल रहा है कि मरीजों को अस्पताल में भरती नहीं किया जा रहा है। राज्यों की ओर से अस्पतालों के बेड्स के बारे में अलग अलग और कई बार भ्रामक जानकारी दी जा रही है। इसे चेक करने का सिस्टम बनना चाहिए।
यह सबको पता होना चाहिए कि देश में कितने बेड्स हैं और कितने का इस्तेमाल कोरोना वायरस के मरीजों के लिए हो रहा है। देश में कितने वेंटिलेटर हैं, राज्यों में उनका बंटवारा किस हिसाब से है, आईसीयू के बेड्स कितने हैं और कहां किस चीज की कमी है, इसका अंदाजा केंद्र को होना चाहिए। अगर पीएम खुद कमान संभालते हैं तो ये कंफ्यूजन दूर हो सकते हैं। वैसे भी प्रधानमंत्री के सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ संपर्क रखते हुए, सहयोग करने और साथ मिल कर कोरोना से लड़ने से देश के संघीय ढांचे पर असर नहीं होता है। उलटे केंद्र की सक्षमता का फायदा राज्यों को मिलता है। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि राजनीति को किनारे रखा जाए। राजनीति को किनारे रख कर कोरोना से एक केंद्रीय कमान में लड़ना इसलिए जरूरी है क्योंकि देश भर में संक्रमण के मामले अब कई गुना ज्यादा रफ्तार से बढ़ रहे हैं। कई ऐसे राज्य हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। वे न तो कोरोना से कायदे से लड़ सकते हैं और न अपने लोगों की आर्थिक रूप से मदद कर सकते हैं।
उन्हें केंद्र से तत्काल मदद की जरूरत है। अगर पीएम कमान संभालते हैं तो ऐसे राज्यों की ज्यादा बेहतर ढंग से मदद हो सकती है। यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि अगर कोरोना वायरस से लड़ाई में कोई राज्य पिछड़ता है और कहीं यह महामारी बेकाबू होती है तो दुनिया की नजर में वह भारत के एक राज्य की नाकामी नहीं होगी, बल्कि एक राष्ट्र राज्य के रूप में देश की नाकामी होगी। जैसे ब्राजील में हालात बेकाबू हैं तो भारत के लोगों को यह नहीं पता है कि वहां किस राज्य में क्या स्थिति है। देश से बाहर लोग देश को जानते हैं। इसलिए दुनिया की नजर में पश्चिम बंगाल की नाकामी भी नाकामी भी भारत की नाकामी है और तमिलनाडु का फेल होना भी भारत की ही नाकामी है। और इससे अंततः प्रधानमंत्री की छवि प्रभावित होगी। वे दुनिया के देशों को यह नहीं कह सकते कि बंगाल में उनकी पार्टी की सरकार नहीं है इसलिए वहां हालात बिगड़े हैं और उसके लिए वे जिम्मेदार नहीं हैं। सो, जब ठीकरा उनके ऊपर फूटना है तो जिम्मेदारी भी उन्हें ही उठानी होगी।
शशांक राय
(लेखक पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)