प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पश्चिम बंगाल में पांचवें चरण के प्रचार में दावा किया था कि उनकी पार्टी ने शतक लगा लिया और ममता बनर्जी की विदाई हो गई है। इसके बाद छठे चरण के प्रचार के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दावा किया कि भाजपा ने डेढ़ सौ सीटें जीत ली हैं। उन्होंने पहले चरण के बाद ही बिल्कुल सटीक सीटों की भविष्यवाणी शुरू कर दी थी। हर चरण के बाद वे बताते थे कि भाजपा कितनी सीटों पर जीत चुकी है। उससे पहले उन्होंने दो सौ सीट का लक्ष्य तय किया था और हर चरण के प्रचार में दावा किया जाता था कि पार्टी लक्ष्य की तरफ बढ़ रही है।
वैसे चुनाव प्रचार के दौरान हर पार्टी का नेता अपनी जीत का दावा करता है। लेकिन कोई नेता एक्जिट पोल करने वालों की तरह हर चरण के बाद सीटों की संख्या नहीं बताता है। इस बार प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने यह काम किया। दोनों हर चरण के बाद भाजपा इतनी सीटों पर जीत चुकी। अब सवाल है कि पांचवें चरण तक ही जब भाजपा शतक लगा चुकी थी या छठे चरण तक डेढ़ सौ सीट जीत चुकी थी तो वो सीटें कहां चली गईं? ध्यान रहे मोदी या शाह ने यह नहीं कहा था कि हम इतनी सीटें जीत सकते हैं। उन्होंने कहा था कि हम जीत चुके। कहां तो छठे चरण तक डेढ़ सौ सीट जीत चुके थे और नतीजों में उसकी आधी सीटें मिली हैं। सो, आगे जब ये दोनों नेता प्रचार के दौरान सीटों का दावा करेंगे तो इनकी पार्टी के कार्यकर्ता ही कैसे भरोसा करेंगे? अब तो भाजपा के तय किए लक्ष्यों और दावों पर मजाक बनने लगा है। हर राज्य में भाजपा अपने लक्ष्य से न सिर्फ चूक रही है, बल्कि उसके आधे से भी कम सीटें उस मिल रही हैं। बंगाल से पहले झारखंड, हरियाणा, महाराष्ट्र आदि सब जगह यही देखने को मिला था।
पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी ने पांच सांसदों को विधानसभा का चुनाव लड़ाया था। इनमें से एक राज्यसभा सांसद भी थे। पार्टी ने जाने-माने पत्रकार और राज्यसभा के मनोनीत सदस्य स्वप्न दासगुप्ता को तारकेश्वर सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ाया था। वे चुनाव हार गए हैं। वैसे उन्होंने चुनाव लडऩे से पहले राज्यसभा की सीट से इस्तीफा दे दिया था। इसके बावजूद यह भाजपा के लिए बड़ी शर्मिंदगी वाली बात है कि उसने अपनी एक सीट बढ़ाने के लिए राज्यसभा के ऐसे मनोनीत सांसद को चुनाव में उतारा, जिसने पांच साल तक सांसद रहने के बावजूद अपने को भाजपा से जुड़ा नहीं बताया था।
बहरहाल, भाजपा ने अपने एक सांसद और केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो को भी विधानसभा का चुनाव लड़ाया था। वे फिल्मों से जुड़े रहे हैं और इसलिए उनको टॉलीगंज सीट से चुनाव लड़ाया गया था, जो बांग्ला फिल्मों का केंद्र है। वे चुनाव हार गए हैं। इसी तरह पार्टी ने फिल्मों से जुड़ी रहीं अपनी एक और सांसद चटर्जी को चुंचुरा सीट से चुनाव लड़ाया था। वे भी चुनाव हार गई हैं। अब सवाल है कि विधानसभा का चुनाव हार जाने वाले ये लोकसभा सदस्य आगे क्या करेंगे? क्या इनको लोकसभा से इस्तीफा नहीं देना चाहिए? ध्यान रहे एक लोकसभा क्षेत्र में बंगाल में छह या उससे ज्यादा विधानसभा सीटें हैं।
हरिशंकर व्यास
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)