कौन सुनेगा डॉक्टरों की?

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कोविड-19 अस्पतालों के डॉक्टर अब थकने लगे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में ऐसे कई डॉक्टरों ने कहा कि बीते छह महीने से लगातार काम करते हुए वे थक गए हैं। वे अस्पताल में कर्मचारियों की कमी से जूझ रहे हैं। उधर भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने राज्यों को आर्थिक गतिविधियां दोबारा शुरू करने के लिए कई छूट दे दी हैं। नतीजा संक्रमण के प्रसार के रूप में सामने आ रहा है। दिल्ली में पहले जहां मामले एक हजार के नीचे तक दर्ज किए जा रहे थे, वहीं अब राजधानी में मामलों की संख्या काफी बढ़ गई है। अब मार्च से बंद मेट्रो सेवा भी शुरू हो गई है। दिल्ली के अस्पतालों पर अधिक भार है, क्योंकि अन्य राज्यों के मरीज बेहतर इलाज की चाहत में यहां पहुंच रहे हैं। इन्हीं हालात के बीच डॉक्टरों का कहना है कि मानसिक तौर पर सभी लोग थक चुके हैं। दरअसल, दो हफ्ते की वायरस के बीच रोटेशन वाली ड्यूटी के बाद डॉक्टरों को आराम के लिए भेजा जाना चाहिए। लेकिन अस्पतालों में कुछ ही कर्मचारी हैं, जिनकी ड्यूटी रोटेशन में लगाई जाती है।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के डेटा से पता चलता है कि देश भर में अबतक 200 के करीब डॉक्टरों की मौत कोरोना वायरस के कारण हो चुकी है। उनमें अधिकतर 50 साल के उम्र के उपर के थे। आईएमए के सदस्यों की मृत्यु दर करीब 8 फीसदी रही है, जो कि आम आबादी से ज्यादा है। डॉक्टर सबसे ज्यादा जोखिम में हैं, यह साफ है। वे मरीजों से सीधे संपर्क में होते हैं। गंभीर मरीजों का इलाज करते समय शारीरिक दूरी बनाए रखना बड़ी चुनौती साबित हो रही है। देश में कोरोना वायरस के मामले बेकाबू होते जा रहे हैं। रोज हजारों नए केस सामने आ रहा हैं। रोजाना एक हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो रही है। एक दिन में सबसे ज्यादा केस सामने आने का रिकॉर्ड भारत पहले ही बना चुका है। सबसे ज्यादा मामलों के लिहाज से भारत के ऊपर अब अमेरिका ही है, जो सबसे ज्यादा प्रभावित देश है। अमेरिका, भारत और ब्राजील ऐसे देश हैं, जहां कोरोना वायरस अब भी बेकाबू नजर आ रहा है। हैरतअंगेज यह है कि ये समस्या अब आम चर्चा से बाहर हो गई है। ऐसे में डॉक्टरों की परेशानी कौन सुनेगा? इतना ही नहीं भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण का पता लगाने और इसके विस्तार का अंदाजा लगाने के लिए देश के कई शहरों में सीरे सर्वेक्षण कराया जा रहा है।

इससे लोगों के शरीर में एंटीबॉडी की मौजूदगी का पता लगाया जा रहा है, जिस आधार पर दावा किया जा रहा है कि कितने प्रतिशत लोगों को कोरोना हो चुका है। जैसे दिल्ली में दो सर्वेक्षणों में क्रमश: 23 और 29 फीसदी लोगों को कोरोना हो जाने का नतीजा आया। कहा गया कि ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं चला कि उनको कोरोना हो गया और वे ठीक भी हो गए। मुंबई में धारावी की झुग्गियों में 57 फीसदी लोगों में एंटीबॉडी मिली। हरियाणा में आठ फीसदी तो ओडि़शा के भुवनेश्वर में पांच फीसदी लोगों में एंटीबॉडी मिली। पर अब दिल्ली में एक हैरान करने वाली जानकारी मिली है। दिल्ली में अगस्त के अंत में हुए सीरो सर्वेक्षण से पता चला है कि कोरोना संक्रमण से ठीक हो चुके 30 फीसदी लोगों के शरीर में एंटीबॉडी नहीं मिली है। सर्वेक्षण के दौरान 257 ऐसे लोगों का सैंपल लिया गया था, जिनको कोरोना का संक्रमण हुआ था और वे इलाज से ठीक हुए थे। उनमें से 79 लोगों के शरीर में एंटीबॉडी नहीं मिली। अब सोचें, ऐसे सर्वेक्षण का या फायदा? जब गारंटीशुदा संक्रमित के शरीर में एंटीबॉडी नहीं मिल रही है तो फिर किसी स्वस्थ आदमी के शरीर में एंटीबॉडी मिलने पर उसे कोरोना होने का अंदाजा कैसे लगाया जा सकता है? कुल मिला कर कोरोना का पूरा मामला धूल में लट्ट मारने का मामला लग रहा है।

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