कांग्रेस पार्टी के एक खाए-अघाए बड़े नेता ने पार्टी की बैठक में कहा कि युवा नेताओं को आत्मचिंतन करना चाहिए। इस पर एक युवा नेता ने कहा कि यूपीए-दो की सरकार में मंत्री रहे नेता आत्मचिंतन करें क्योंकि उनकी वजह से भट्ठा बैठा है। इसके जवाब में यूपीए-दो की सरकार के एक मंत्री ने कहा कि पार्टी के अंदर जिन लोगों ने ‘सैबोटाज’ किया उनको आत्मचिंतन करना चाहिए। इस पर उस समय के चार और मंत्रियों ने तत्काल समर्थन दिया। फिर जिस बेचारे मंत्री को आत्मचिंतन की सलाह दी थी उसने शर्मिंदा होते हुए, माफी मांगने के अंदाज में कई ट्विट किए। अब कांग्रेस के सारे नेता अपने अपने में भुनभुना रहे हैं, कोई न तो किसी को आत्मचिंतन के लिए कह रहा है और न कोई कर रहा है। सवाल है कि वास्तव में किसे आत्मचिंतन करना चाहिए? क्या राजीव सातव को, रणदीप सुरजेवाला को, श्रीनिवास बीवी को या सुष्मिता देब को? ये लोग क्या थे जो इनको आत्मचिंतन करना चाहिए? अगर इनमें से एक ने यूपीए-दो के मंत्रियों से कहा कि वे आत्मचिंतन करें तो यह बात उनको इतनी बुरी क्यों लगी? क्या सचमुच उनको ही आत्मचिंतन करने की जरूरत नहीं है, जो यूपीए के दूसरी बार सत्ता में आने के बाद मंत्री बने थे और ऐसे अहंकार में शासन चलाया था, जिसकी तुलना में मौजूदा सरकार के मंत्री भी ठीक लगने लगते हैं? राहुल गांधी ने खुद कहा था कि यूपीए-दो की सरकार को उसके अहंकार ने डुबोया, तब तो किसी ने इस पर सवाल नहीं उठाया था, सब मुंह सिल कर बैठे रहे और अब राजीव सातव पर भड़ास निकाल रहे हैं?
असल में यह यूपीए-दो की उपलब्धियों का सवाल नहीं है और न मनमोहन सिंह की परफारमेंस का सवाल है। यह उस समय के मंत्रियों के अहंकार और निकम्मेपन का सवाल है। क्या यह सही नहीं है कि मनीष तिवारी ने अन्ना हजारे के लिए कहा था ‘तुम अन्ना हजारे, तुम सिर से पांव तक भ्रष्टाचार में डूबे हो’? क्या यह सही नहीं है कि कपिल सिब्बल ने 2जी संचार घोटाले में ‘जीरो लॉस’ की थ्योरी दी थी? यह सही है कि 2जी मामले के सारे आरोपी बरी हो गए हैं पर जिस समय सिब्बल ने ‘जीरो लॉस’ की थ्योरी दी उस समय यह लोगों को उकसाने और गुस्सा दिलाने वाली बात थी। ऐसे ही क्या यह सही नहीं है कि सरकार ने अपने अहंकार में अन्ना हजारे को गिरफ्तार करा कर तिहाड़ जेल भेजा और बाद में लोकपाल भी बनाया? क्या यह सही नहीं है कि पी चिदंबरम ने अपने अहंकार में बाबा रामदेव के रामलीला मैदान में चल रहे शांतिपूर्ण आंदोलन पर लाठियां चलवाईं और सब कुछ तहस-नहस किया? वह भी तब, जबकि कुछ दिन पहले ही कांग्रेस के चार दिग्गज मंत्री बाबा रामदेव को मनाने के लिए दिल्ली हवाईअड्डे पर गए थे और एक तरह से घुटनों के बल बैठ कर उनसे आग्रह किया था वे अपना आंदोलन न करें! एक तरफ तो इतनी बड़ी रणनीतिक भूल कर दी कि मनाने हवाईअड्डे पर पहुंच गए और दूसरी तरफ आधी रात को बेकसूर लोगों पर लाठियां चलवा कर उन्हें रामलीला मैदान से भगाया। शाहीन बाग के धरने पर नरेंद्र मोदी की सरकार क्या कर रही थी, यह ध्यान है पर अन्ना हजारे और रामदेव के साथ आपने क्या किया, यह भूल गए!
चिदंबरम ने ऑपरेशन ग्रीन हंट चलाया और जब दिग्विजय सिंह ने उनकी नक्सल नीति पर सवाल उठाए तो उनके अहम को इतनी ठेस पहुंची कि उन्हें मनाने के लिए सोनिया गांधी को पंचायत करनी पड़ी। यह यूपीए-दो की सरकार के मंत्रियों का अहंकार था, जिसने 2014 में कांग्रेस की लुटिया डुबोई। ऐसा नहीं है कि राहुल की युवा टीम पर सवाल उठाने वाले पूर्व मंत्रियों को इसका अंदाजा नहीं है। वे इस बात को जानते हैं। क्या मनीष तिवारी इस बात से इनकार कर सकते हैं कि उनको 2014 के चुनाव से पहले ही अंदाजा हो गया था कि लुटिया डूबने वाली है? ऐसा नहीं था तो वे चुनाव क्यों नहीं लड़े थे? अन्ना हजारे को तू-तड़ाक करने और उनको भ्रष्ट बताने के बाद मनीष तिवारी ने सेहत के हवाले से चुनाव ही नहीं लड़ा। जो खुद मैदान छोड़ कर भाग गए वे आत्मचिंतन की सलाह देने पर भड़क जा रहे हैं? आज सारे लोग इस बात से नाराज हैं कि मौजूदा सरकार मीडिया की आजादी को दबा रही है, यह बात सही भी है पर क्या खुद सूचना व प्रसारण मंत्री रहते मनीष तिवारी ने मीडिया के मालिकों को बुला कर नहीं धमकाया था? 2जी, कोयला घोटाले और अन्ना हजारे के आंदोलन की कवरेज को लेकर क्या मीडिया मालिकों को चेतावनी नहीं दी गई थी? राहुल गांधी ने यूपीए-दो की सरकार में करीब डेढ़ दर्जन युवा नेताओं को मंत्री बनाया था। आज जो लोग यह आरोप लगा रहे हैं कि राहुल के करियर की चिंता में सोनिया गांधी युवा नेताओं को आगे नहीं बढ़ने दे रही हैं और इस वजह से युवा नेता पार्टी छोड़ कर जा रहे हैं उनको क्या यह याद नहीं है कि राहुल ने आज से 11 साल पहले उन सबको केंद्र में मंत्री बनवाया था?
सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया, मिलिंद देवड़ा, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, जितेंद्र सिंह, प्रदीप जैन आदित्य, अजय माकन, मनीष तिवारीआदि सभी मंत्री बने थे। इनमें से उस समय सबसे ज्यादा 45 साल उम्र अजय माकन की थी। मनीष तिवारी सहित बाकी सब इससे कम उम्र के थे। क्या इन सबको मंत्री बनाना और स्वतंत्र रूप से काम करने की आजादी देना राहुल गांधी की गलती थी? आज इनमें से कुछ लोग पार्टी छोड़ कर जा रहे हैं या राहुल गांधी पर सवाल उठा रहे हैं तो यह कोई वैचारिक या सैद्धांतिक मसला नहीं है, बल्कि सिर्फ सत्ता की बेचैनी है, जिसके बिना कांग्रेस के नेताओं का रहना बड़ा मुश्किल होता है। असल में 2009 में लगातार दूसरी बार की जीत ने कांग्रेस नेताओं को सिर से पैर तक अहंकार से भर दिया था। उनको लग रहा था कि भाजपा के सबसे बड़े नेता लालकृष्ण आडवाणी को हरा कर कांग्रेस ने भाजपा का नेतृत्व खत्म कर दिया है और अब किसी की परवाह करने की कोई जरूरत नहीं है। उस अहंकार ने कांग्रेस नेताओं का विवेक हर लिया। उन्होंने अनाप-शनाप फैसले करने शुरू किए। लालू प्रसाद की पार्टी को सरकार में नहीं लिया, रेटरोस्पेक्टिव टैक्स का फैसला हुआ, ऑपरेशन ग्रीन हंट चला और अन्ना हजारे-रामदेव पर कार्रवाई का फैसला हुआ, भ्रष्टाचार के सच्चे-झूठे आरोपों में झारखंड से लेकर तमिलनाडु तक अपने ही समर्थकों पर कार्रवाई की गई, इन सबसे साफ दिख रहा है कि उस समय जो सरकार में थे या जो परदे के पीछे से सरकार चला रहे थे उन्होंने अपनी बदतमीजियों, अपने अहंकार और अपनी नासमझी में पार्टी का नुकसान कराया। कांग्रेस के उस समय के माई-बाप नेताओं ने ममता बनर्जी, करुणानिधि, लालू प्रसाद, रामविलास पासवान जैसे सहयोगियों को यूपीए से अलग होने दिया और आज जब कोई उनसे आत्मचिंतन की बात कर रहा है तो वे उलटे उन्हें चुप कराने में लग जाते हैं। उन बेचारों ने तो कांग्रेस की सत्ता का कोई आनंद भी नहीं लिया है!
अजीत दि्वेदी
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)