जब 19 मई 1991 की रात बरेली के सर्किट हाउस की यादगार रातों में से एक कही जाएगी। यह पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की मृत्यु से ठीक दो दिन पहले की रात थी। राजीव गांधी अपनी चुनाव रैलियों को संबोधित करने बरेली आए। वह दौर भारतीय राजनीति का एक अनूठा दौर था। तब तक ‘मिस्टर लीन’ राजीव गांधी की लीन चुनरी पर बोफोर्स के दाग दिखने लगे थे। दूसरी ओर श्रीलंका में तमिल ईलम आंदोलन के कारण श्रीलंका सरकार और तमिलों में संघर्ष अपने चरम पर था। श्रीलंका के तमिल भारत सरकार की भूमिका से बेहद अप्रसन्न थे। उनकी अपेक्षा थी कि जिस प्रकार प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय पूर्वी पाकिस्तान भारत के समर्थन से स्वतंत्र देश बना, उसी प्रकार तमिल राष्ट्र भी बने। मगर राजीव गांधी के कार्यकाल में उनकी यह इच्छा ठुकराई जा चुकी थी। उस चुनाव में भाजपा के संतोष गंगवार (जोकि इस समय केंद्र सरकार में श्रम मंत्री हैं) के मुकाबले कांग्रेस के तेजतर्रार नेता अकबर अहमद ‘डंपी’ ने ताल ठोक रखी थी। डंपी परिवार का रिश्ता राजीव से महज एक कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में नहीं था।
डंपी संजय गांधी के सबसे करीबी दोस्त हुआ करते थे और गांधी परिवार में उनका बेधड़क आना-जाना होता था। जाहिर सी बात है कि ऐसे ‘वीआईपीठ’ उम्मीदवार का होना प्रशासनिक अधिकारियों के लिए दबाव का सबब बना हुआ था। राजीव गांधी भले उस समय प्रधानमंत्री न हों, उनका रुतबा प्रधानमंत्री से कम नहीं था। उनका आना और रात में रुकना स्थानीय प्रशासन से जुड़े अफसरों के लिए पसीने छुड़ा देने वाला अनुभव था। उस कालखंड में एसपीजी प्रोटोकॉल का लोगों को खास अनुभव नहीं था। एसपीजी कवर ने प्रोटोकॉल का दायरा ही बदल दिया था। अब वीआईपी उनके नियंत्रण में पूर्णरूपेण रहता था। दूसरे कवच के रूप में जिले एवं मंडल के शीर्ष अधिकारी के बाद तीसरे कवच में औपचारिक प्रशासनिक व्यवस्था कार्य करती थी। एक तरीके से यह नई व्यवस्था उस करेले के समान थी जिस पर नीम चढ़ा हो। जैसे ही हवाई अड्डे से उतरकर राजीव गांधी सर्किट हाउस पहुंचे तो हायहैलो, कॉफी-चाय के बाद मंजर बिल्कुल बदल गया। अब वहां सिर्फ और सिर्फ एसपीजी कवर था।
एसपीजी अधिकारियों का हिंदी ज्ञान बेहद सीमित था जिसके चलते उनकी टीम के साथ संवाद बनाना खासा मुश्किल हो गया। रात लगभग साढ़े दस बजे एसपीजी के एक अधिकारी बाहर आए और उन्होंने सर्किट हाउस में उपस्थित अधिकारियों से कहा, ‘गेट सम जिंजर सूप, हरी अप’। यह तो सब समझ गए कि राजीव गांधी को सूप चाहिए, लेकिन किस चीज का यह कोई नहीं समझ पाया। ‘जिंजर’ जिस अंदाज में कहा गया था उससे वह बाउंसर की तरह सर्किटहाउस टीम के ऊपर से निकल गया। सूप तैयार करने के लिए बावर्ची तो तुरंत बुला लिए गए, लेकिन सभी उधेड़बुन में कि सूप बनना किस चीज का है? यह अंग्रेजी शद बरेली के सर्किट हाउस में कौतूहल और चर्चा का विषय बन गया। कोई जिंगर कहे, कोई सिंगर, कोई स्विंगर। इसी उधेड़बुन में लगभग एक घंटा बीत गया। एक बार फिर एसपीजी के एक अधिकारी बाहर आए और पूछा ‘व्हेयर इज सूप’। इस समय जिले के शीर्ष अधिकारी एसपीजी कर्मचारी की बात सुनने के लिए स्वयं उपस्थित थे। उन्होंने आपस में बातचीत की। उनका उच्चारण स्पष्ट न होने के कारण एक कागज पर लिखने को कहा गया।
जब उन्होंने लिखकर दिया तो एक बात स्पष्ट हो गई कि यह ‘जिंजर’ की बात कर रहे हैं। अब एक नई समस्या पैदा हो गई। जो बावर्ची थे, वे चाइनीज सूप, हॉट एण्ड सॉर सूप, चिकन सूप, वेजिटेबिल सूप इत्यादि के नाम से तो परिचित थे, लेकिन जिंजर सूप अभी उनके लिए अजूबा था। उस समय के आसपास के होटलों में जाकर अधिकारी वहां के रसोइयों से जिंजर सूप या है, यह समझने में लगे हुए थे जो किसी की जानकारी में नहीं था। आखिरकार एक होशियार होटल व्यवसायी ने बताया कि जो लोग भाषण या गायन इत्यादि करते हैं, वे असर रात को अदरक का रस गर्म पानी में काले नमक, शहद, गोल मिर्च व लौंग के साथ पीते हैं ताकि उनका गला तरोताजा रहे। यह समझने के बाद कुछ पुलिस इंस्पेटर आनन-फानन बरेली की शामतगंज मंडी गए। मंडी तब तक बंद हो चुकी थी, पर स्वयं ही दुकानों को उलटपुलट कर किसी प्रकार एक बोरी अदरक भर कर ले आए।
तब जाकर जिंजर सूप तैयार हो सका। परंतु तब तक राजीव गांधी सो चुके थे। अब समस्या यह खड़ी हो रही थी कि उन्हें जगाया कैसे जाए और एक डर यह भी बैठा हुआ था कि अगर वह उन तक न पहुंचा तो न जाने कौन सी कार्रवाई हो जाए। अब सारे प्रशासनिक अधिकारी अपराध बोध के साथ गेस्ट हाउस में चहलकदमी कर रहे थे और सबकी कोशिश खुद को जिम्मेदारी से बचाने की थी। कोई कहता दिख रहा था कि वह उस वक्त नहीं था, वरना उसी वक्त समझ लेता कि राजीव गांधी को किस चीज की जरूरत है। कोई यह सलाह दे रहा था कि अगर एसपीजी की मांग समझ में नहीं आई थी तो उससे उसी वक्त स्पष्ट पूछा जाना चाहिए था कि वह किस तरह की सूप की बात कर रहा है? खैर बीच रात में जब राजीव गांधी की आंख खुली तब उन्होंने उसका रसास्वादन किया और फिर सुबह चाय से पहले भी उसी सूप का आनंद लिया। यह देखकर अधिकारियों को चैन आया। यह किस्सा जब भी वहां के लोग याद करते हैं तो खूब हंसते हैं।
आशीष कुमार मैसी
(लेखक राज्य अल्पसंयक आयोग यूपी के पूर्व चैयरमैन हैं ये उनके निजी विचार हैं)