..तमिलनाडु में सियासी दलों के मेनिफेस्टो में वाकई में क्या है ?

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अक्सर लोग मजाक करते हैं कि नई भाषा में सबसे पहले लोग गाली देना सीखते हैं। मेरा भी कुछ ऐसा ही अनुभव रहा- जब तक तमिल भाषा से पाला नहीं पड़ा। वहां मेरी शब्दावली में शामिल होने वाले पहले शब्द कल्याण से जुड़े थे- अंडा, चावल, दाल, गांव, दलित बस्ती, इत्यादि।

तमिल भाषा पर बात इसलिए क्योंकि तमिलनाडु में चुनाव होने वाले हैं। डेवलपमेंट इकोनॉमिस्ट के लिए यह रोचक है। आमतौर पर तमिलनाडु के चुनाव की चर्चा उपेक्षात्मक ढंग से होती है : मुफ्त चावल, फ्री मिक्सी, फ्री टीवी से आगे घोषणा पत्र पर चर्चा नहीं होती। इस बार मैंने खबरों को छोड़कर, 4 पार्टियों के अंग्रेजी में घोषणा पत्र को पढ़ा और उनमें कल्याण से जुड़े शब्द खोजे। खेद है कि AIADMK का अंग्रेजी घोषणा पत्र नहीं है।

DMK के घोषणा पत्र में कल्याण शब्द का 55 बार जिक्र है। इसके साथ, शिक्षा-स्कूल 61 बार पाया गया; महिला/ लड़की/स्त्री 60 बार; खाद्य/ पोषण/ स्वास्थ्य 17 बार। इन शब्दों पर अन्य पार्टियों के घोषणा पत्र फीके पड़ जाते हैं। भाजपा और कांग्रेस में कोई खास अंतर नहीं- शिक्षा (23-24 बार) महिला (14-15 बार)। कमल हसन के नेतृत्व में तमिलनाडु की नई पार्टी, मक्कल नीधी मैअम (MNM), सुर्खियों में तब आई जब उन्होंने ऐलान किया कि महिलाओं को घर-काम के लिए नकद दिया जाएगा।

केवल शब्दों पर तुलना करना उचित नहीं। घोषणा पत्र का उद्देश्य केवल पन्ने भरना नहीं होता। जहां MNM का घोषणा पत्र केवल 800 शब्दों का है, वहीं DMK का 70 हजार से ज्यादा शब्दों का। बावजूद इसके, शब्द विश्लेषण से कुछ अंदाजा लगाया जा सकता है। शब्दों को परखने से संकेत मिल सकता है कि मुद्दों की समझ कितनी गहरी है।

उदाहरण के तौर पर, भाजपा के संकल्प पत्र में ‘आदि द्रविड़’ (पिछड़ा समुदाय) के मुद्दे पर कहा गया है कि उससे संबंधित विभाग का नाम बदल कर ‘अनुसूचित जाति कल्याण विभाग’ किया जाएगा। दूसरी ओर DMK जब इस समुदाय की बात करती हैं, तो सरकारी नौकरी में आरक्षण, लड़कियों के लिए वज़ीफा, हॉस्टल और खाद्य मानदेय की बात रखी गई है।

साथ ही, यह भी स्पष्ट किया गया है कि यह लाभ अंतरजातीय विवाह के बच्चों को भी मिलेंगे। हालांकि भाजपा ने पंचमी जमीन लौटाने का वादा किया है, आरोप है कि जब तमिलनाडु के भाजपा नेता दलितों के राष्ट्रीय आयोग के वाइस चेयरमैन थे, तब उन्होंने उनकी इस मांग को नजरअंदाज किया।

DMK की कल्याण की कल्पना में क्या-क्या शामिल है? मनरेगा में 150 दिन काम (100 ही नहीं), साथ ही सम्मानजनक मजदूरी (रु. 300 प्रति दिन); जन वितरण प्रणाली में फिर से उड़द डाल। बच्चों के पोषण के लिए तमिलनाडु में पहले से ही अंडा रोज दिया जाता है। अब दूध देने का वादा है। योजना के अच्छे क्रियान्वयन के लिए कर्मचारियों के लिए कार्य-स्थिति सही होना जरूरी है।

इसलिए आंगनबाड़ी और मिड-डे मील की कार्यकर्ताओं के लिए पेंशन और ग्रैच्युटी का वादा है। महिलाओं के लिए मातृत्व लाभ को 18 हजार रुपए से 24 हजार करने का वादा है। राज्य सरकार की नौकरी में मातृत्व लाभ की अवधि को 9 से 12 महीने किया जाएगा।

DMK के घोषणा पत्र पर विस्तृत रूप से लिखने से यह मतलब नहीं कि उसमें सब कुछ बढ़िया है। उदाहरण के लिए, उन्होंने हरियाणा की तरह निजी क्षेत्र में 75% नौकरियों में स्थानीय लोगों के लिए आरक्षण की बात रखी है। अव्यवहारिक होने के साथ-साथ, यह प्रश्नयोग्य है और शायद असंवैधानिक भी।

चुनावी वादों पर विस्तार से लिखने का मकसद यह है कि हम केवल फ्री वॉशिंग मशीन, फ्री चावल की सुर्ख़ियों पर न जाएं। हम जानें कि घोषणा पत्र में वास्तव में क्या है। घोषणा पत्र में वादों से करोड़ों लोगों की जिंदगी सुधर या बिगड़ सकती है। लोकतंत्र में वोट देने के साथ-साथ, राजनीतिक दलों की परख करना भी हमारी जिम्मेदारी है।

रीतिका खेड़ा
(लेखिका अर्थशास्त्री हैं, दिल्ली आईआईटी में पढ़ाती हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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