योगी आखिर चाहते क्या हैं?

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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ऐसा लग रहा है, जैसे अपने प्रदेश की सारी समस्याएं निपटा चुके हैं और अब उनको हिंदी फिल्म उद्योग का विकास करना है। देव दीपावली का विकास इवेंट मैनेजमेंट करने के एक दिन बाद वे मुंबई पहुंच गए। वहां वे ट्राइडेंट होटल में रूके और फिल्मी हस्तियों से मुलाकात की। सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चहेते कलाकार अक्षय कुमार उनसे मिलने पहुंचे। हालांकि यह समझना मुश्किल है कि योगी आदित्यनाथ हिंदी फिल्म उद्योग से क्या चाहते हैं? जिस समय अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की खुदकुशी से मौत का विवाद चल रहा था और बॉलीवुड में बाहरी-भीतरी की चर्चा हुई तो उन्होंने ऐलान किया था कि वे उत्तर प्रदेश में बड़ी फिल्म सिटी बनाएंगे। नोएडा में एक फिल्म सिटी पहले से है, जहां सारे टेलीविजन चैनलों के कार्यालय है। इससे आगे वे दूसरी फिल्म सिटी प्लान कर रहे हैं, जिसके लिए उन्होंने जमीन और पैसे आवंटित करने का भी ऐलान किया। लेकिन इससे हिंदी फिल्म उद्योग मुंबई से उठ कर उत्तर प्रदेश तो नहीं आ जाएगा? ऐसा नहीं है कि उत्तर प्रदेश में अभी फिल्मों की शूटिंग नहीं होती है। खूब सारी फिल्में उत्तर प्रदेश की पृष्ठभूमि पर बनती हैं और लखनऊ, इलाहाबाद, बनारस से लेकर आगरा तक उनकी शूटिंग होती है।

अगर सरकार इस व्यवस्था में ही सुधार करे, शूटिंग की इजाजत से लेकर बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान दे तो ज्यादा फिल्में बनने लगेंगी। भोजपुरी और हिंदी की फिल्मों के निर्माण का ढांचा भी यूपी में लग सकता है। लेकिन यह काम एक प्रक्रिया के तहत होगा। सिनेमा वालों से मिल कर अचानक मुंबई को ग्रेटर नोएडा में नहीं शिफ्ट किया जा सकता है। लेकिन डेढ़ साल बाद होने वाले चुनाव से पहले योगी कुछ चमत्कार दिखाने के लिए भागदौड़ में लगे हैं। वैसे ये भी कड़वा सच है कि राजाओं की चाहत सही और प्रजा की गलत। जब किसी सरकार को असहमति ही ना पसंद हो, तो फिर हड़ताल या विरोध प्रदर्शनों की बात करना ही बेमतलब है। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने गुजरे समय में किसी भी आंदोलन के प्रति जैसा रुख अपनाया, उसे देखते हुए उसके इस हालिया कदम पर किसी को हैरत नहीं हुई। इसके बावजूद ये बात दर्ज की जानी चाहिए कि हड़ताल पर अधिसूचना के जरिए रोक लगा देना सरासर अलोकतांत्रिक है। हालांकि वर्तमान सरकार खुद को अलोकतांत्रिक या जन विरोधी या मजदूर विरोधी कहे जाने से परेशान नहीं होती, लेकिन जिन लोगों को इन शब्दों से परेशानी होती है, उन्हें अवश्य ही उप्र सरकार के ताजा कदम का विरोध करना चाहिए।

उत्तर प्रदेश सरकार ने शासकीय, अद्र्ध शासकीय और किसी स्थानीय प्राधिकरण के अधीन कर्मचारियों के हड़ताल करने पर छह माह तक पाबंदी लगा दी है। इस फैसले का एलान पिछले हफ्ते किया गया। राज्य सरकार ने इसके लिए आवश्यक सेवा अनुरक्षण कानून (एस्मा) की अवधि को बढ़ा दिया है। बताया गया है कि इस अधिसूचना के जारी होने की तारीख से अगले छह महीने की अवधि तक हड़ताल पर रोक रहेगी। इसके दायरे में उत्तर प्रदेश राज्य से संबंधित गतिविधियों से जुड़े किसी लोक सेवा, राज्य सरकार के स्वामित्व या नियंत्रण वाले निगम या स्थानीय प्राधिकरण में कर्मचारी हड़ताल पर नहीं जा सकेंगे। यानी अब सरकारी कर्मचारी 25 मई 2021 तक हड़ताल पर नहीं जा पाएंगे। आवश्यक सेवा रख- रखाव अधिनियम (एस्मा) लागू होने पर हड़ताल को अवैध माना जाता है। इसमें विभिन्न आवश्यक सेवाओं से जुड़े कर्मचारी शामिल किए जाते हैं। जैसे डाक, टेलीग्राफ, रेलवे, हवाई अड्डे और बंदरगाह संचालन आदि क्षेत्रों के कर्मचारी। एस्मा का उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति को एक साल तक की सजा या जुर्माना या फिर दोनों सजाएं हो सकती हैं। एस्मा लागू होने के बाद पुलिस को यह अधिकार मिल जाता है कि वह कानून का उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है।

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