हमें रावणरूपी दुर्गुणों से मुक्त रहना चाहिए

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विषयों से मुक्ति भले ही न मिले, पर कम से कम वासनाओं से मुक्त होने का प्रयास जरूर किया जाए। विषय का अर्थ है आंख- जिस दृश्य को देखती है, जीभ जिसका स्वाद लेती है, किसी वस्तु को स्पर्श करना, ये सब विषय हैं। इसमें जब वासना उतरती है तो ये विषय गंदे यानी विकृत हो जाते हैं। त्यागी लोग विषयों से मुक्त होते हैं और वैरागी वासना से दूर होते हैं। त्याग और वैराग दोनों अलग-अलग चीजें हैं। अलग रहना त्याग है, असंग रहना वैराग है। श्रीराम वासना से मुक्ति दिलाते हैं। इसीलिए उनका एक नाम मुकुंद भी है। राम ने जब रावण को मारा और देवताओं ने पुष्प वर्षा कर उनका सम्मान किया तो तुलसीदासजी ने लिखा- ‘बरषहिं सुमन देव मुनि बृंदा। जय कृपाल जय जयति मुकुंदा।’ वैसे मुकुंदा का सीधा-सा अर्थ है स्वतंत्र करने वाला।

लेकिन, इसका आध्यात्मिक अर्थ है मुक्त करने वाला। परमात्मा अपने भक्तों को उनके दुर्गुणों से मुक्त करता है। हमारे दुर्गुणों का केंद्र है मन। तो मन से मुक्त मुकुंद ही कर सकता है। श्रीराम ने रावण को मारा, इसका मतलब ही यह है कि वे चाहते थे मेरे भक्त रावणरूपी दुर्गुणों से मुक्त हो जाएं। लेकिन, हम लोगों की एक कमजोरी है नए-नए रावण खड़े कर लेना। राम ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि इस रावण को मारने के बाद ये लोग अपनी ही गलतियों से कभी महामारी का रावण खड़ा कर लेंगे।

वैसे भी कोरोना काल में जिंदगी मायूसियों का मज़मा बन गई थी। अभी-अभी थोड़ी-सी रौनक आई है तो अब तमाशायी बनकर हालात मत देखना। जो लोग छिन चुकी जीवन की सुगंध, जिंदगी की रोशनी वापस लाने का प्रयास कर रहे हैं, यह उनकी मदद करने का वक्त है। पिछले दिनों मेरी चर्चा एक हकीम साहब से हुई। कुछ इलाज के बारे में चर्चा करते-करते उन्होंने एक बात बोली- आरजू को संभालो, वरना यह हसरत में बदल जाएगी और यही बीमारी की शक्ल होगी। सचमुच बात उन्होंने बड़ी गहरी बोली। आरजू का अर्थ है इच्छा, तमन्ना और हसरत का मतलब है ऐसी कामना या वासना जो पूरी न हो सके। हमारी हसरतों का अगला कदम है यह बीमारी।

पं. विजयशंकर मेहता

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