आपराधिक घटनाओं में सबसे अधिक लोग सड़कों पर दुर्घटना की वजह से दम तोड़ देते हैं। सरकार ने इन तथ्यों पर ध्यान देते हुए ट्रैफिक नियमों को सख्त बनाया है। जुर्माने की धनराशि काफी बढ़ा दी गयी है। इन सबके बावजूद न तो दुर्घटनाएं रुक रही हैं और न ही ट्रैफिक के नियमों का उल्लंघन। एक बात तो साफ है कि जुर्माने व सजा बढ़ाने से नियमों का उल्लंघन नहीं रुकेगा। इसके लिए यातायात के नियमों का अनुपालन के प्रति निष्ठा होनी चाहिए। दोनों ही तरफ से यानि चालक और अनुपालन कराने वाले प्राधिकारी। सोमवार से शुरू हुआ सड़क सुरक्षा सप्ताह पूर्व की भांति रस्मी ढंग से निपटाने की पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए। सड़क दुर्घटनाओं में काफी हद तक व्यवस्थाओं का योगदान है। प्रदेश में कई जगह ब्लैक प्वाइंट हैं जहां या तो अक्सर दुर्घटनाएं होती हैं या होने की संभावना होती है। ऐसे प्वाइंट चिन्हित तो किये गये परन्तु स्थाई निदान नहीं किया गया।
कुछ लोग दलील देते हैं कि सड़कों पर वाहनों के अत्यधिक दबाव के कारण दुर्घटनाएं होती हैं परन्तु लॉकडाउन में भी दुर्घटनाओं में लोगों ने प्राणों की बलि चढ़ती रही। दुर्घटनाएं केवल चालक की गलती या लापरवाही से ही नहीं होती बल्कि ओवरलोडिंग, खराब सड़क, संकेतक का न होना, चौराहों के निर्माण में तकनीकी त्रुटि होना जैसे बहुत कारण हैं जिनके लिए संबंधित सरकारी एजेंसियां या विभाग जिम्मेदार हैं। इन जिम्मेदारों के द्वारा उचित व्यवस्था न किये जाने के कारण लोगों को जन व धन की हानि हो रही है। ओवरलोड ट्रकें एक राज्य से दूसरे राज्य की सीमा पार करते हुए अपने गंतव्य तक पहुंच जाती हैं परंतु उनका चालान नहीं होता है। ओवरलोडिंग से वाहन पर चालक का नियंत्रण खोने का डर रहता है वही सड़कें भी क्षतिग्रस्त हो जाती हैं जोकि दुर्घटना का सबब बनती हैं। परिवहन विभाग के कर्मी व्यवस्थाओं के सुधार पर ध्यान देने के बजाय वाहन के प्रपत्र चेक करने में अधिक वरीयता देते हैं।
इसका कारण सभी जानते हैं। प्रपत्र चेक करने के बहाने अक्सर वसूली की जाती है। सुविधा शुल्क मिलने पर नियमों के प्रति आंख मूंद लिया जाता है। इसी तरह पुलिसकर्मी भी अक्सर कागज चेक करने के बहाने वसूली करते दिखाई देते हैं। अक्सर चेकिंग के दौरान भागने के प्रयास में वाहन चालक दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं। सुविधा शुल्क का आलम यह है कि इसे देकर भारी वाहन नो इंट्री में भी प्रवेश कर जाते हैं। शहरों के व्यस्त बाजार में भारवाहक वाहन दिन में सड़क पर सामान उतारते-चढ़ाते दिख जाएंगे। सड़कों पर अतिक्रममण भी दुर्घटनाओं के कारण बनते हैं। अतिक्रमण हटाने का बाकायदा अभियान चलाया जाता है परन्तु होता अधिकतर रस्मी ही है। इधर अभियान खत्म हुआ उधर फिर अतिक्रमण हो जाता है।
प्रदेश में महानगरों की बात करें तो यातायात की सुविधा के लिए एकल मार्ग बनाये गये हैं परन्तु संकेतक न होने के कारण वाहन चालक गलती कर जाते हैं और उन्हें चालान भुगतना पड़ता है। कुछ जगहों की बात छोड़ दें तो ट्रैफिक लाइटों की स्थिति बदहाल है। अभी भी यातायात पुलिस कर्मियों द्वारा हाथ के संकेत से यातायात का नियंत्रण किया जाता है। हर चौराहों पर यातायात पुलिसकर्मियों की ड्यूटी रहती है परंतु यातायात के संचालन में इनका ध्यान वाहनों के प्रपत्र चेक करने में अधिक होता है। एक बार राजधानी के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने यातायात कर्मियों से चालान काटने का अधिकार वापस ले लिया था। उस समय सभी यातायात पुलिसकर्मी यातायात नियंत्रण में अपना योगदान देने लगे। इससे शहर के प्रमुख चौराहे जहां जाम की स्थिति लगती थी, यातायात सुगम हो गया था। यातायात के नियमों के पालन के लिए सारी जिम्मेदारी वाहन चालकों पर थोप दी गयी है।