अगर देश में कोरोना वैक्सीन की असीमित सप्लाई होती तो सभी बालिगों के लिए टीकाकरण अभियान शुरू किया जा सकता था। ऐसे में 18 साल से अधिक उम्र के सभी लोगों को वैक्सीन देना संभव होता, जिसकी कुछ लोग मांग भी कर रहे हैं। क्या ऐसा किया जाना चाहिए? असल में टीकाकरण का मकसद वैक्सीन की सीमित सप्लाई के बीच कोविड-19 के संक्रमण से होने वाली मौतों को कम करना है। इसका एक और उद्देश्य संक्रमण को कुछ इस तरह से नियंत्रित करना है कि लोगों को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत न पड़े। अभी इसके बहुत कम साक्ष्य मिले हैं, जिनसे साबित हो सके कि संक्रमण रोकने में भी वैक्सीन कारगर है।
आज कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इसलिए जो लोग 18 साल से अधिक उम्र वालों के लिए वैक्सीन की वकालत कर रहे हैं, उनके लिए यह बड़ा मुद्दा हो सकता है। लेकिन यह न भूलें कि वैक्सीन की दोनों डोज लेने के बाद भी कई लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए। इनसे दूसरों में वायरस फैला और ये खुद भी संक्रमण के शिकार हुए। यह बात भी सच है कि टीका लगवाने के बाद हुआ संक्रमण गंभीर नहीं था।
इसमें भी कोई शक नहीं है कि वैक्सीन से मृत्यु दर में कमी आती है। जिन्हें टीका लगा है, अगर उन्हें संक्रमण होता है तो अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं पड़ती। लेकिन हम यह नहीं जानते कि क्या वैक्सीन से संक्रमण की आशंका भी कम होती है? ऐसे में वैज्ञानिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए टीकाकरण का लक्ष्य क्या होना चाहिए?
अभी देश में वैक्सीन का पर्याप्त स्टॉक नहीं है। इसलिए 18 से 45 साल के लोगों का टीकाकरण कई मायनों में जोखिम भरा होगा। पहली बात तो यह कि अगर हम इस आयु वर्ग के लोगों को वैक्सीन देना शुरू कर देंगे तो ऐसे समूह में संक्रमण के थोड़े-बहुत लक्षण भी दिखने बंद हो जाएंगे। इसके लिए वैक्सीन को कारगर भी माना गया है। लेकिन इस समूह में अभी भी संक्रमण के बेहद मामूली या न के बराबर ही लक्षण देखे जाते हैं। इसलिए युवाओं को अस्पताल में भर्ती नहीं होना पड़ता और न ही वायरस से इस समूह में अधिक जानें गई हैं।
कोविड-19 से देश में जिन लोगों की मौत हुई है, उनमें से 88 फीसदी की उम्र 45 साल से अधिक थी। इसी वजह से बहुत सोच-समझकर उस आयु वर्ग को चुना गया, जिसे पहले वैक्सीन दी जा रही है। यों तो पिछले एक साल में आईसीयू बेड, बेड, वेंटिलेटर के मामले में हालात बेहतर हुए हैं, लेकिन ऐसे संसाधन असीमित नहीं हैं। इसलिए अभी 45 साल से अधिक आयु वर्ग के लोगों का टीकाकरण सही फैसला है। वैक्सीन लगने के बाद इस समूह के लोगों की ओर से स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव घटेगा और तब इन सुविधाओं का इस्तेमाल गंभीर रूप से बीमार लोगों के लिए किया जा सकेगा।
संक्रमण के गंभीर खतरे और म़त्यु दर को कम करने के लिए ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस में भी इसी आधार पर तैयार प्राथमिक समूह को पहले टीका देने का निर्णय लिया गया। ऐसे ही कुछ अमीर देशों ने उम्र के आधार पर अपने नागरिकों के लिए जरूरत से अधिक वैक्सीन की मांग की। वहीं, कोरोना संक्रमण को लेकर अब तक जितने भी सीरो सर्वे हुए हैं, उनसे पता चलता है कि इससे हर आयु वर्ग के लोग प्रभावित हुए हैं। इनमें आठ साल लेकर 18 साल तक बच्चे भी शामिल हैं।
कई जानकार कह रहे हैं कि सरकार को युवाओं को टीकाकरण के दायरे में लाना चाहिए। कोरोना की दूसरी लहर में युवा वर्ग सुपर स्प्रेडर साबित हो सकता है। बुजुर्गों की तुलना में युवा घर से बाहर अधिक समय बिताते हैं। इसलिए उसके संक्रमित होने की आशंका भी अधिक है। लेकिन जब तक यह पता नहीं चल जाता कि वैक्सीन लेने के बाद ट्रांसमिशन नहीं होता या इसका खतरा कम हो जाता है, तब तक यह वर्ग मास्क का प्रयोग करे, सामाजिक दूरी बनाए और समय-समय पर हाथ धोते रहे। इससे युवाओं में संक्रमण को कम करने में मदद मिलेगी।
डॉ. एन.के.अरोड़ा
(लेखक एडवर्स इफेक्ट फॉलोविंग इम्यूनाइजेशन के सलाहकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)