यूपी: विपक्ष का रोल दु:खद

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उत्तर प्रदेश में कोरोना महामारी का तांडव मचा हुआ है। आम और खास सब इससे दुखी और पीडि़त हैं। प्रदेश की बड़ी आबादी इसकी चपेट में आ गई है। कई घर उजड़ गए हैं। लोगों का काम धंधा चौपट हो गया है। रोजी-रोजगार चला गया है। विकास का पहिया थम-सा गया है। संकट की इस घड़ी ने योगी सरकार के लिए भी चुनौतियां खड़ी कर रखी हैं। सरकार का पूरा ध्यान इसी बात पर लगा है कि कैसे लोगों की जान बचाई जा सके या फिर जीवन का कम से कम नुकसान हो। वहीं ऐसे लोग भी कम नहीं हैं जिनके लिए महामारी ‘फलने-फूलने’ और अपनी सियासत चमकाने का मौका बन गया है। ऐसे लोगों में वह सभी दल और उनके नेता शामिल हैं जिन्हें लगता है कि अगले वर्ष उत्तर प्रदेश में होने वाले विधान सभा चुनाव में कोरोना महामारी से निपटने में योगी सरकार की सफलता अथवा असफलता बड़ा मुद्दा बन सकता है। इसीलिए गैर भाजपाई नेता लगातार इस प्रयास में लगे हुए हैं कि कोरोना महामारी की आड़ में योगी सरकार की जितनी फजीहत की जा सकती है, उतनी की जाए ताकि 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्हें इसका फायदा मिल सके। यह हकीकत है कि यदि इस समय कोरोना महामारी का तांडव नहीं फैला होता तो सभी दलों के नेता चुनावी संग्राम में कूद कर शहर-शहर सभाएं कर रहे होते। प्रत्याशी टिकट के लिए हाथ-पैर मार रहे होते, लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है तो इसका यह मतलब नहीं है कि नेताओं ने हार मान ली है। सभी दलों के नेता सोशल मीडिया के सहारे मिशन 2022 को पूरा करने में लगे हैं।

यह नेता घर में बैठकर ट्विटर आदि के माध्यम से अपनी बात जन-जन तक पहुंचा रहे हैं। सोशल साइट्स पर नेता और उनके समर्थक आपस में उलझे हुए हैं। सब अपने को पाक-साफ और विरोधियों पर दोषारोपण में लगे हुए हैं। एक तरफ नेता अपनी सियासत चमकाने में लगे हैं तो दूसरी तरफ कुछ ऐसे लोग भी मैदान में कूदे हुए हैं जो अपने आप को बताते तो गैर-राजनैतिक हैं, लेकिन सियासत करने में नेताओं से पीछे नहीं हैं। इसमें किसान आंदोलन चला रहे राकेश टिकैत जैसे किसान नेता भी हैं तो कुछ बुद्धिजीवी और समाजसेवी भी किसी न किसी दल के पाले में आंख मूंदकर खड़े नजर आ रहे हैं। कुल मिलाकर विपक्ष इस कोशिश में है कि योगी सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर बड़ी की जा सके। इसके लिए कोरोना महामारी के सहारे योगी सरकार को घेरने से बड़ा कोई मुद्दा विपक्ष के पास नजर नहीं आ रहा है। लगातार चार वर्षों से योगी सरकार के खिलाफ मु्द्दे की तलाश कर रहे विपक्ष की कोरोना महामारी के चलते ‘पौ-बारह’ हो गई है। विपक्ष का ध्यान इस ओर बिल्कुल नहीं है कि योगी सरकार को कुछ सार्थक सुझाव दिए जाएं ताकि कोरोना से त्राहिमाम कर रही जनता को कुछ राहत मिल पाए, बल्कि कोशिश इस बात की है कि जनता को योगी सरकार के खिलाफ जितना हो सके उतना भड़काया जा सके। इसीलिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव प्रात: उठते ही अर्नगल बयानबाजी करने से बाज नहीं हा रहे हैं वहीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा का भी पूरा ध्यान इस ओर है कि कैसे योगी सरकार को नाकारा साबित किया जा सके।

इसलिए वह कभी ट्विट करती हैं तो कभी चिट्ठी लिखती हैं। अच्छा होता प्रियंका वाड्रा यूपी सरकार पर कोरोना महामारी से निपटने में नाकामी का आरोप लगाते समय कांग्रेस शासित राज्यों के कुछ उदाहरण भी दे देतीं कि कैसे पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड की सरकारें कोरोना महामारी के खिलाफ निर्णायक जंग छेड़े हुए हैं, लेकिन उनके पास ऐसा कुछ कहने को है नहीं। कांग्रेस शासित राज्यों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। इन राज्यों की सरकारें कोरोना से निपटने के बजाए इस बात को लेकर ज्यादा चिंतित हैं कि कैसे मोदी सरकार को बदनाम किया जा सके। महाराष्ट्र में मौत का तांडव होता रहा, न सोनिया के मुंह से बोल फूटे न राहुल-प्रियंका की जुबान खुली। महाराष्ट्र में किस तरह से लाशों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है, वह शर्मनाक ही नहीं जघन्य अपराध की श्रेणी में भी आता है, लेकिन सत्ता का भूख के चलते सब मौन रहते हैं।बात प्रियंका वाड्रा द्वारा मुख्यमंत्री योगी को लिखी गई चिट्ठी की कि जाए तो इस चिट्ठी में ऐसा कुछ नहीं लिखा गया है जिसे कोई सरकार गंभीरता से लेना चाहेगी। बिना किन्हीं तथ्यों के हवा में बातें करते हुए सीएम को पत्र लिख दिया गया है। वही ढिंढोरा ऑसीजन की कमी है, दवाओं की कालाबाजारी हो रही है, अस्पताल में मरीजों को इलाज नहीं मिल रहा है। यह समस्या पूरे देश की है, दिल्ली में भी यही हाल है और कांग्रेस शासित राज्यों की भी यही स्थिति है, लेकिन गांधी परिवार को बीजेपी शासित राज्यों के अलावा कहीं कुछ दिखाई-सुनाई ही नहीं देता है।

इसीलिए तो यह बात दावे से कही जा रही है कि प्रियंका कोरोना महामारी की आड़ में मिशन-2022 पूरा करने की बिसात बिछाने में लगी हैं। इसी प्रकार कभी प्रियंका पूछती हैं कि पंचायत चुनाव यों हो रहे हैं ? कभी कहती हैं कि बीजेपी और मोदी ने पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में बड़ी-बड़ी जनसभाएं करके कोरोना को फैलाने का पाप किया है, लेकिन जब बात किसान आंदोलन की आती है तो गांधी परिवार किसान आंदोलन का समर्थन करने लगता है, उसे जरा भी नहीं लगता है कि कोरोना महामारी को देखते हुए किसानों को अपना आंदोलन वापस ले लेना चाहिए। कांग्रेस राकेश टिकैत के खिलाफ इसलिए मुंह बंद किए बैठी है योंकि उसे उम्मीद है कि 2022 के विधानसभा चुनाव के समय पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राकेश टिकैत की मदद से वह अपनी बंजर पड़ी सियासी जमीन को ‘उपजाऊ’ बना सकती है। प्रियंका के तर्क और सुझाव कितने संजीदा हैं इसकी एक और बानगी उनके ताजा बयान में देखने को मिली जब उन्होंने बेकाबू होते कोरोना संक्रमण पर योगी सरकार को पत्र लिखकर सुझाव दिया कि वह लोगों को जेल में डालने और संपत्ति जत करने की जगह कोरोना से लडऩे में ध्यान केंद्रित करें। वरना प्रदेश की जनता उन्हें माफ नहीं कर पाएगी। अब प्रियंका किसकी संपत्ति नहीं जत करने और किसको जेल में नहीं डालने की बात कह रही हैं, वह यह भी स्पष्ट कर देतीं तो ज्यादा अच्छा रहता। या उन्हें बाहुबली मुख्तार अंसारी के जेल जाने से परेशानी है जिसको उनकी पंजाब सरकार ने बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक में गुहार लगाई थी या फिर कोई और वजह है या प्रियंका वाड्रा को गांधी परिवार की ओर से कथित रूप से अवैध रूप से अर्जित की गई संपत्ति जत होने का डर तो सता ही रहा है।

प्रियंका की तरह ही अखिलेश भी योगी सरकार के खिलाफ राग अलाप रहे हैं। उन्हें भी प्रियंका की तरह उठते-बैठते योगी सरकार में खामियां ही खामियां नजर आती हैं। ऐसा लग रहा है कोरोना को लेकर योगी सरकार कोई सार्थक प्रयास कर ही नहीं रही है। यह सच है कि हालात काफी गंभीर हैं, ऐसी चुनौती पहली बार आई है इसलिए ऐसा होना स्वभाविक भी है, पूरी दुनिया में हाहाकार मचा हुआ है तो यूपी कैसे अलग रह सकता है। एक तरफ महामारी तो दूसरी तरफ कालाबाजारी भी स्वास्थ्य सेवाओं को तार-तार करने में लगी है। विपक्षी नेताओं को योगी सरकार की चिंताओं को भी समझना चाहिए। ऐसे नहीं है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कोरोना महामारी के दौर में लोगों में भय फैलाने और संकट पैदा करने वालों को सख्त चेतावनी नहीं दे रहे हैं। यही नहीं, ऐसे लोगों पर रासुका तहत कार्रवाई भी की जा रही है। विपक्ष को इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि किस तरह से कुछ अस्पताल वाले ऑक्सीजन की कमी की झूठी बात कह कर दिक्कतों को और बढ़ा रहे हैं। कुछ अस्पताल ऑक्सीजन की कमी की बात कह रहे हैं लेकिन निरीक्षण के दौरान उनके पास पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती है। ऐसे संस्थानों के खिलाफ कार्रवाई के चेतावनी दी गई है। इसके अलावा जिन अस्पतालों के पास सही में ऑसीजन की कमी है, वे जिलाधिकारी या फिर मुख्य चिकित्सा अधिकारी से मिल कर अपनी दिक्कत दूर सकर सकते हैं। विपक्ष को जनता के बीच तनाव बढ़ाने की बजाए यह समझाना चाहिए कि प्रदेश में जरूरत के अनुसार ऑक्सीजन की सप्लाई के लिये व्यवस्था की जा रही है।

योगी सरकार द्वारा ऑक्सीजन के ऑडिट से जुड़े दिशा-निर्देश भी जारी किये गये हैं। इसके तहत सभी सरकारी, प्राइवेट व कोविड अस्पताल सरकार को ऑक्सीजन का डाटा उपलब्ध करावाएंगे, जिलों से सभी अस्पतालों पर ऑक्सीजन की उपलधता पर निगरानी रखी जाएगी, इस डाटा से राज्य में ऑक्सीजन की आपूर्ति की वास्तविक स्थिति का पता चल जाएगा।सबसे दुखद यह है कि विपक्ष तो योगी-मोदी सरकार पर हमलावर है ही, न्यायपालिका भी हालात नहीं समझ पा रही है। जब अदालते दूसरी संवैधानिक संस्थाओं के काम में दखलंदाजी करेंगी तो लोकतांत्रिक ढांचा मजबूत नहीं रह पाएगा। बात जहां तक कोरोना महामारी की है तो कोरोना मरीजों की संख्या अचानक बहुत बढ़ गई। इसके कारण ही अस्पतालों में बेड, दवाओं और ऑक्सीजन की तंगी हो गई। जिन अस्पतालों में पांच-दस मरीजों को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती थी, उनमें यकायक सौ-दो सौ मरीजों को उसकी आवश्यकता पड़े तो हालात हाथ से फिसलेंगे ही। अच्छा होता ऐसा न होता, लेकिन जब ऐसी स्थिति विकसित देशों तक में बन चुकी है तब फिर भारत की या बिसात है ? इस बुनियादी बात को सरकारों पर तंज कसने वाले राजनीतिक दलों और राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय मीडिया के उस वर्ग को भी समझना चाहिए, जो सरकारी तंत्र को नाकाम-निष्क्रिय बताने के लिए उत्साहित दिख रहा है। लबोलुआब यह है कि उत्तर प्रदेश में हालात जैसे भी हों, लेकिन विपक्ष का सरोकार यही है कि कैसे भी करके कोरोना महामारी से निपटने की योगी सरकार की कथित असफलता का ज्यादा से ज्यादा ढिंढोरा पीटा जाए ताकि अगले वर्ष होने वाले विधान सभा चुनाव में इसे मुद्दा बनाया जा सके। कोरोना माहमारी की ‘पटकथा’ अपने हिसाब से लिखकर विपक्ष मिशन 2022 को फतह करने का सपना देख रहा है।

अजय कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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