दवाई बगैर ढिलाई नहीं। दवाई यानी टीकाकरण की धीमी रफ़्तार से लाखों घरों में मातम छाया है। ढिलाई नहीं मिलने यानी लॉकडाउन की वजह से करोड़ों लोग गरीबी और बेकारी का शिकार होकर बर्बाद हो रहे हैं। सरकारी दावा है कि वैक्सीन के मामले में भारत पूरे विश्व में सिरमौर है। हकीकत यह है भारत में पिछले 4 महीने में सिर्फ 2.3 फीसदी लोगों को ही वैक्सीन की दोनों डोज लग पाई है।
दस करोड़ से ज्यादा लोगों को वैक्सीन की दूसरी डोज अब तक नहीं मिली है। सुप्रीम कोर्ट के सामने दिए हलफनामे में केंद्र सरकार ने वैक्सीन की जवाबदेही से बच निकलने की पूरी कवायद की है। इन छह पॉइंट्स से यह समझने की जरूरत है कि कैसे अधूरे तथ्यों, बेतुके तर्कों और कानून की गलत व्याख्या करके सरकार ने अदालत और देश की जनता को गुमराह करने की कोशिश की है-
1. आपदा प्रबंधन और महामारी कानून के तहत केंद्र और राज्य सरकारों ने हज़ारों निजी अस्पताल, लैब, दवा समेत अधिकतर निजी क्षेत्र की सेवा और मूल्यों पर नियंत्रण कर लिया है। दस लाख से कम मरीजों को ऑक्सीजन की प्राणवायु देने के लिए तमाम फैक्ट्रियों और उद्योगों में ताला लगा दिया गया। अब वैक्सीन की दो निजी कंपनियों को मुनाफे की खुली छूट देने के लिए सरकार का हठ, क्या संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं होगा?
2. पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) में बनने वाली वैक्सीन के ट्रायल में सरकारी संस्थान ICMR ने बड़ा निवेश किया है। सबसे पहले पेटेंट कानून की धारा 92 और 100 के तहत सरकारी और निजी कंपनियों को वैक्सीन के फ़ॉर्मूले के इस्तेमाल का हक मिलना चाहिए। उसके बाद ही कच्चे माल की खरीदी का थोक इंतजाम करना होगा।
3. चुनावों में प्रधानमंत्री ने फ्री वैक्सीन देने का वादा किया था। फरवरी 2021 में बजट के बाद हुई चर्चा में व्यय सचिव ने कहा था कि 35 हजार करोड़ की आवंटित धनराशि से 50 करोड़ लोगों को वैक्सीन दी जाएगी। प्रति व्यक्ति 700 रुपए के मद में टीके की दोनों डोज के साथ ट्रांसपोर्ट और सभी खर्चे शामिल थे। उस फैसले के अनुसार पूरे देश में वैक्सीन लगे तो ‘एक भारत, स्वस्थ भारत’ का सपना साकार होगा।
4. सरकारी मोलभाव के अनुसार केंद्र को 150, राज्यों को 400 और निजी अस्पतालों और कंपनियों को 1200 रुपए की दर से वैक्सीन मिलेगी। तीन तरह के दाम होने से कालाबाजारी बढ़ेगी। इसलिए केंद्र और राज्यों को समान दर 150 पर ही वैक्सीन मिलनी चाहिए। समर्थ जनता और निजी अस्पतालों को 1200 की दर से केंद्र सरकार के माध्यम से सप्लाई हो। इससे वैक्सीन कंपनियों के अनुचित मुनाफे पर लगाम के साथ राज्यों का वित्तीय बोझ भी कम होगा।
5. वैक्सीन को GST से छूट मिलना जरूरी है। टोकन यानी नाममात्र की GST लगाए जाने का आदेश होना चाहिए। इससे वैक्सीन की कीमतों में कमी होने के साथ उत्पादकों को इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ भी मिलेगा।
6. 18 से 44 साल वालों को ऐप से रजिस्ट्रेशन करवाने में बहुत मशक्कत करनी पड़ रही है। राज्यों को रजिस्ट्रेशन करने का अधिकार मिले तो संघीय व्यवस्था मजबूत होने के साथ आम जनता को डिजिटल घनचक्करी से मुक्ति मिल जाएगी। प्रलय काल में जब स्टेट यानी सरकार विफल हो जाए तो लोगों की जान बचाने के लिए अनुच्छेद 32 और 142 के तहत वैक्सीन के बारे हर आदेश पारित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट को पूरा हक है।
विराग गुप्ता
(लेखक सुप्रीम कोर्ट के वकील हैं ये उनके निजी विचार हैं)