ट्रंप के दो ‘अदृश्य’ दुश्मन

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डोनाल्ड ट्रंप इस समय दो ‘अदृश्य’ दुश्मनों से लड़ रहे हैं। कोरोना और जो बाइडेन। बाइडेन समझदारी दिखाते हुए कम दिखाई दे रहे हैं। ट्रंप लगातार नीचे गिरते जा रहे हैं और अमेरिकी जनता में उनकी अपील खुद ही कम हो रही है तो उनके रास्ते में क्यों आएं? बेशक, अंतत बाइडेन बहस करेंगे और उन्हें ट्रप के उबाऊ ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ नारे के सामने कोई आसान और स्पष्ट संदेश लाना होगा। बाइडेन के नारे के लिए मेरे पास एक अच्छा विचार है। जब मैं सोच रहा था कि बाइडेन कैसा राष्ट्रपति बनना चाहेंगे और अमेरिका उन्हें कैसा राष्ट्रपति बनाएगा, तब यह नारा मेरे दिमाग में आया, जो मुझे पर्यावरणीय इनोवेटर हाल हार्वी ने सुझाया था। उनके एक ई-मेल के अंत में लिखा था, ‘विज्ञान, प्रकृति और एक-दूसरे का समान करें’। मैंने सोचा यह बाइडेन और हमारे लिए बिल्कुल उचित संदेश है। यह उन अमेरिकी भावनाओं का सार है, जो हमने पिछले कुछ वर्षों में खो दी हैं। बाइडेन को इन तीन मूल्यों पर अपने हर भाषण और साक्षात्कार में जोर देना चाहिए। विज्ञान के समान से शुरुआत करें।

विज्ञान के प्रति ट्रंप की नफरत पैर पसारती महामारी के दौर में घातक है। ट्रप कोरोना के लिए नीम-हकीम जैसे नुस्खे बताते रहे हैं और कोरोना से बचने के लिए मास्क पहनने वालों का मजाक उड़ाते हैं, जिनमें बाइडेन भी शामिल हैं। ट्रप तो यहां तक बोले थे कि ‘अगर हम टेस्टिंग रोक दें तो मामले कम हो जाएंगे।’ जरा सोचिए, टेस्टिंग रोक देंगे। फिर न कोई जानकारी होगी, न आंकड़े। फिर वायरस भी नहीं होगा। ये ख्याल मुझे क्यों नहीं आया? शराब पीकर गाड़ी चलाने वालों की जांच बंद कर दो, तो शराबी ड्राइवर खत्म हो जाएंगे। गोली चलाने वाले लोगों को गिरफ्तार करना बंद कर दो, तो अपराध दर कम हो जाएगी। अमरेकियों सावधान, राष्ट्रपति द्वारा वैज्ञानिक विधियों का विरोध करना और हवाई दावों को सच मानना, ऐसा किसी देश में नहीं हो रहा। एनर्जी इनोवेशन के संस्थापक हार्वी कहते हैं, ‘यह अंधकार युग जैसी बातें हैं। अंधकार युग और ज्ञानोदय में विज्ञान के समान का ही अंतर था। प्रगति का मतलब है समस्या को तटस्थ होकर देखना, समाधान तलशाना व जांचना और फिर सबसे हित के लिए उन्हें फैलाना।’

वह आपको बीमार कर देगी और तूफान में घर भी उड़ा देगी। ट्रंप का प्रकृति का समान न करना देश के लिए खतरनाक है। प्रकृति के समान का मतलब यह समझना भी है कि हम बहुत नाजुक धरती पर रहते हैं और उसकी मिट्टी खराब कर, सागरों को प्लास्टिक से भरकर और वायुमंडल की चादर को नुकसान पहुंचाकर हम मानव सभ्यता के इस बगीचे को उजाड़ देंगे। और याद रखें, यह महामारी हमें जलवायु परिवर्तन नाम की ज्यादा बड़ी वायुमंडलीय महामारी के लिए तैयार करने आई है। फिर आता है एक-दूसरे का समान। यह हमारी दूसरी महामारी के साथ संभव नहीं है। कटुता की महामारी। ऐसे राष्ट्रपति के होने के बाद पूरी नागरिक संस्कृति पर असर को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बताया जा सकता, जिसने बुराभला कहने, झूठ बोलने और मानहानि को बढ़ावा दिया हो। हमारे पास ऐसे सोशल नेटवर्क हैं, जिनका बिजनेस मॉडल गुस्से में कही गई ठेस पहुंचाने वाली बातों को बढ़ावा देना है। लेकिन कटुता की महामारी के कई स्रोत हैं। अमेरिका में ऐसे श्वेत पुलिस वाले हैं जो सजा देने के लिए अश्वेत की जान ले लेते हैं और लोग वीडियो बनाते रहते हैं।

यहां इतनी असमानता है कि आप कितना जिएंगे इसका अंदाजा जेनेटिक कोड से ज्यादा पिन कोड से लगा सकते हैं। एक-दूसरे के समान का मतलब है सभी अमेरिकियों को बराबर अधिकार। लेकिन अभी अश्वेत, लातिनी और श्वेत, हाउसिंग, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की अलग- अलग सीढिय़ां चढ़ रहे है। इस स्थिति को ठीक करना जरूरी है। इस समय कई जरूरी मुद्दों पर चर्चा की जरूरत है, लेकिन उसके लिए नाराजगी दिखाने से लेकर गोलियां चलाना, पुलिस विभाग को शर्मिंदा करने जैसे तरीके सही नहीं हैं। जरूरत समानजनक संवाद और नैतिक गौरव की है। मुझे नहीं पता कि लोग एक-दूसरे का ज्यादा समान करें, इसके लिए या पर्याप्त होगा, लेकिन मैं दो जरूरी चीजें जानता हूं। पहली, एक ऐसा राष्ट्रपति जो रोज समान का आदर्श प्रस्तुत करे। यह बाइडेन का काम है। दूसरी, लोग फेसबुक से निकलें और एक दूसरे के ‘फेस’ के सामने आएं। गुस्सा दिखाने, चिगाने नहीं, बल्कि एक-दूसरे को सुनने। सुनना समान की निशानी है। यह हमारा काम है। इसी से अमेरिका फिर महान बनेगा।

थॉमस थ्रीड मैन
(लेखक तीन बार पुलित्जऱ अवॉर्ड विजेता एवं ‘द न्यूयॉर्क टाइस’ में नियमित स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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