अफसोस! शहद में इतनी मिलावट

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बचपन से शहद के बारे में सुनता आया हूं। यह सुना था कि जब परिवार में कोई बच्चा पैदा होता है छठी पर सबसे पहले बुआ उसकी जुबान पर शहद की बूंद रखती थी। थोड़ा और बड़े हुए तो पाया कि जब कभी घर में कथा होती तो पंचामृत तैयार करने के लिए शहद का इस्तेमाल किया जाता था। कई वर्ष पहले तक कभी आम आदमी को ताकतवर्धक के रूप में शहद को खाते हुए नहीं देखा था। मगर बाद में हालात यहां तक पहुंच गए कि बाबा रामदेव से लेकर डाबर कंपनी तक ने पूरे देश में शहद का तूफान ला दिया व दुकान से लेकर मदर डेयरी तक पर शहद बिकने लगा और इसकी गुणवत्ता बताने वाले विज्ञापन आने लगे। मगर हाल में आई एक खबर ने सबको हिला कर रख दिया है। इस खबर के मुताबिक देश के तमाम शहद निर्माता शहद के नाम पर चीनी बेच रहे हैं जिससे प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने की जगह लोगों का मोटापा बढ़ रहा है।

विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के सभी प्रमुख ब्रांड के शहद में जबरदस्त मिलावट की जा रही है। इस संस्था द्वारा लिए गए शहद के 77 फीसदी नमूनों में चीनी की मिलावट पाई गई। तमाम निर्माता कंपनियां यह दावे करती रही है कि शहद शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है जिससे उससे स्वस्थ रखने में मदद मिलती हैं। कोरोना संक्रमण के दौरान तो इसका सेवन और भी ज्यादा बढ़ गया था।

इस केंद्र की महानिदेशक सुनीता नारायण ने अपनी रिपोर्ट में यह खुलासा किया कि शहद को मधुमक्खियां के द्वारा फूलों से प्राप्त रस से तैयार किया गया होना चाहिए। इसमें किसी प्रकार की मिलावट नहीं होनी चाहिए। उनका दावा था कि चीन की कंपनियां ऐसा शुगर सिरप तैयार कर रही हैं जो भारतीय जांच मानको की जांच में खरे उतरते हैं व इन्हें बड़ी तादाद में आयात कर शहद में मिला दिया जाता है जबकि इनकी जांच अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य एनएमआर तकनीक के द्वारा की जानी चाहिए।

इस संस्था सीएसई की फूड सेफ्टी एंड टॉक्सिन टीम के मुताबिक मिलावट का यह कारोबार युद्ध स्तर पर चल रहा है। इस मिलावट को पकड़ पाना आसान नहीं है। शुगर सिरप को इस तरह से तैयार किया जा रहा है कि उसमें व आम शहद में कोई अंतर ही न रह जाए व उसे आसानी से पहचाना नहीं जा सके। मिलावटी शहद आयात किए जाने के कारण मधुमक्खी पालको के जरिए आजीविका चलाने वाले किसानो की जिदंगी पर भी बुरा आर्थिक असर पड़ रहा है। उनसे शहद खरीदना कम कर दिया हैं व गांव में मधुमक्खियों की संख्या कम होने लगी हैं।

इस संस्थान ने भारत के अलावा अलग-अलग ब्रांड के शहदो का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजोनेंस (एनएमआर) तकनीक से भी परीक्षण करवाया। भारत व जर्मनी की प्रयोगशालाओं में हुए परीक्षणों से पता लगा कि 77 फीसदी नमूनो में चीनी मौजूद थी जिसमें मिलावट की गई थी। मजेदार बात तो यह है कि तमाम सैंपलो को खाने पीने के सामान की गुणवत्ता की गारंटी देने वाली संस्था एफएसएसएआई ने अपने मानको पर खरा बताया था। बाहर की गई जांच में पाया गया कि सभी 50 फीसदी सैंपलो में मिलावट की गई थी। जिन बड़ी 22 कंपनियेां के शहद के सैंपल लिए गए थे उनमें से 17 नमूनो में चीनी पाई गई।

केवल तीन सैंपल ही सभी जांच मानको पर खरे उतरे। यहां यह याद कराना जरूरी हो जाता है कि सैंपलो की जांच का खुलासा करने वाली संस्था सीएसई देश में शहद बेचने वाली 13 बड़ी कंपनियों के शहद के सैंपलो को नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड की गुजरात स्थित प्रयोगशाला सेंटर फॉर एनालिसिस एंड लर्निंग इन लाइवस्टॉक एंड फूड के पास जांच के लिए भेजा था। उनमें जब चीनी की मिलावट पाई गई तो सीएसई ने उन्हें एनएमआर जांच के लिए जर्मनी में भेजा। जहां सभी सैंपलो को मिलावटी पाया गया।

मजेदार बात है कि यह सभी सैंपल कोविड महामारी के चरम के दौरान ही एकत्र कर जांच के लिए भेजे गए। फेल होने वाले सैंपलो में जानी-मानी कंपनियों जैसे डाबर, पतंजली, वैधनाथ, झंडू द्वारा बेचे जाने वाले शहद के सैंपल भी शामिल थे। यह मालूम होने पर यह डर और बढ़ा है कि कोविड के दौरान लोग सामान्य चीनी ज्यादा खा रहे थे जोकि शहद के जरिए उनके शरीर में जा रही थी। यह जिदंगी के लिए काफी खतरनाक माना जाता है। यह मोटापा बढ़ाती है।

यहां यह याद दिलाना जरूरी हो जाता है कि पिछले साल ही एफएसएसएआई ने प्रदेश खाद्य आयुक्तो से चीनी वाले मीठे गोल्डन सिरप पर रोक लगाने के लिए नजर रखने को कहा था। गोल्डन सिरप में काफी मात्रा में फ्रक्टोज होता है व उसे चीन से आयात किया जाता है। तमाम चीनी वेबसाइट यह दावा करती है कि यह पदार्थ भारत में शहद से की जाने वाली मिलावट को पकड़ने वाले तमाम परीक्षणें में पास हो जाता है।

बताते हैं कि पिछले चार सालों में देश में 1100 टन फ्रक्टोज सिरप आयात किया गया है। इसमें से 70 फीसदी सिरप चीन से मंगाया गया है। जब इस एनजीओ ने भारतीय शहद निर्माता बनकर चीनी कंपनियेां से बात की तो उन्होंने दावा किया कि उनका उत्पाद शहद में 50 से 80 फीसदी तक मिलाने पर भी शहद तमाम भारतीय परीक्षणों में पास हो जाता है। तमाम सिरप में पेंट इस्तेमाल किए जाने के लिए पेंट पिगमेंट के नाम पर आयात किया जाता है। मिलावट की यह तकनीक भारत में ही विकसित की गई थी व सबसे पहले उत्तराखंड की एक कंपनी ने यह मिलावटी शहद बनाना शुरू किया था।

यहां यह याद दिलाना जरूरी हो जातो है कि इस साल 1 अगस्त से सरकार ने निर्यात किए जाने वाले शहद के लिए एनएमआर टेस्ट से पास होना अनिवार्य कर दिया है। जबकि बाकी देश में बिना इस टेस्ट के पास हुए ही शहद बेचा जा सकता है। इसका मतलब यह है कि भारत सरकार को यह बात अच्छी तरह से पता है कि देश में मिलावटी शहद बेचा जा रहा है। मजेदार बात यह है कि तमाम शहद निर्माता कंपनियों ने विज्ञापनो के जरिए यह दावे करना शुरू कर दिया है कि सीएसई की शहद संबंधी रिपोर्ट गलत है व वे तो तमाम भारतीय मानको का पालन कर रहे हैं।

डाबर व पतंजली ने तो इस रिपोर्ट को अपने उत्पादो को बदनाम करने की साजिश करार दिया है। डाबर ने तो अपने विज्ञापन में यहां तक दावा किया है कि उनके कारखाने में तो एनएमआर टेस्ट किए जाने की सुविधा है। वहीं जर्मनी में उनका सैंपल इस टेस्ट में फेल हो चुका है। वहीं पतंजली के बालकिशन का दावा है कि यह जांच रिपोर्ट अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारत के शहद के धंधे को बरबाद करने के लिए जारी की गई है। सच तो भगवान ही जाने। सच तो मिलावट करने वाले जाने या भगवान, पर इनकी करनी से इंसान की जान जरूर खतरे में है।

विवेक सक्सेना
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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