इस बार पांच माह बाद आज जागेंगे भगवान विष्णु

0
460

आज बुधवार, 25 नवंबर को देवउठनी एकादशी है। इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योग निद्रा से जागते हैं। मान्यता के मुताबिक देवोत्थान एकादशी पर विष्णु के जागरण के बाद शिव, विष्णु को फिर से सृष्टि का संचालन सौंपेंगे। भगवान के जागने से सृष्टि में तमाम सकारात्मक शक्तियों का संचार होने लगता है। हर साल कार्तिक मास के शुल पक्ष की ग्यारस को देवउठनी या देवप्रबोधिनी एकादशी कहते हैं। जिन चार महीने भगवान विष्णु सोते हैं, उन्हें चातुर्मास कहा जाता है। इस साल अधिक मास था, इस वजह से चातुर्मास पांच महीने का था। देवउठनी एकादशी से शादियां और अन्य सभी शुभ काम शुरू हो जाते हैं। इसके बाद भगवान विष्णु 20 जुलाई 2021 को देवशयनी एकादशी से फिर विश्राम करेंगे।

अधिक मास: उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार इस साल अश्विन का अधिक मास आने के कारण चातुर्मास पांच महीने का था। देवउठनी एकादशी को बिना मुहूर्त के शादी करने की भी परंपरा है। इस तिथि को लेकर धार्मिक मान्यता है भगवान विष्णु चार मास क्षीरसागर में शयन के बाद जागते हैं। इस दिन से शुभ मुहूर्तों में वैवाहिक आयोजन शुरू हो जाएंगे। इस दिन संत नामदेवजी का जन्म भी हुआ था।
मौसम में बदलाव: देवउठनी एकादशी से मौसम सुहाना हो जाता है। वातावरण हर तरह से प्रकृति और इंसानों के लिए अनुकूल हो जाता है। इसलिए इस एकादशी पर पूजन पाठ और भगवान शालीग्राम का तुलसी के साथ विवाह किया जाता है। तुलसी भी रोग निवारक पौधा है। इसके घर में रहने से रोगाणु नष्ट होते हैं।

चातुर्मास क्यों: कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने पराक्रमी राक्षस शंखासुर का वध किया था। थकावट मिटाने के लिए क्षीर सागर में शयन के लिए गए थे। सृष्टि का संचालन शिव को सौंप गए थे। आषाढ़ शुल पक्ष की एकादशी से कार्तिक शुल एकादशी तक यह चार महीने उन्होंने विश्राम किया था। तभी से यह चार महीने देवशयन से देवोत्थान एकादशी तक सभी शुभ कामों की मनाही होती है।

नियम संयम के चार महीने: चातुर्मास यानी जुलाई से नवंबर तक चार महीने। लोक जीवन में जुलाई-अगस्त और सितंबर महीने के आधे से भी ज्यादा दिन बारिश के होते हैं। साथ ही नवंबर तक सभी बड़े तीज-त्योहार और पर्व मनाए जाते हैं। इसलिए इन दिनों में नदी नालों में उफान के कारण यात्रा करना मुश्किल होता था। बारिश में कई तरह के जीव जंतु भी पैदा हो जाते हैं। इसलिए चातुर्मास में एक ही जगह संयम से रहने का विधान किया गया था।

खा सकते हैं हरी सजियां: चातुर्मास में मूलत बारिश का मौसम होता है। इस समय बादल और वर्षा के कारण सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर नहीं आ पाता। इस समय शरीर की पाचन शक्ति भी कम हो जाती है, जिससे शरीर थोड़ा कमजोर हो जाता है। नमी अधिक होने के कारण इस समय बैटीरिया-वायरस अधिक हो जाते हैं और हरी सजियां भी इनसे संक्रमित हो जाती हैं। आयुर्वेद के मुताबिक, इस समय हरी सजी खाने से सेहत संबंधी परेशानियां हो सकती हैं, इसलिए इस दौरान हरी सजियां, बैंगन आदि खाने की मनाही होती है। चातुर्मास खत्म होने के बाद मौसम में नमी कम हो जाती है और सूर्य की भरपूर रोशनी धरती पर आती है। ये मौसम हानिकारक बैटीरिया और वायरस के लिए प्रतिकूल होता है। इसलिए इस समय हरी सजियां भी इनके संक्रमण से मुक्त हो जाती है। सूर्य की रोशनी और अनुकूल वातावरण से पाचन शक्ति भी बेहतर हो जाती है। यही वजह है कि चातुर्मास के बाद हरी सजियों को खाने में शामिल कर लिया जाता है।

मान्यताएं प्रचलित: उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार भगवान विष्णु के जागने और सोने के संबंध में कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं। देवताओं के दिन-रात की गणना इंसानों के दिन-रात से अलग है। कहा जाता है कि सतयुग में भगवान विष्णु ने शंखासुर नाम के असुर का वध किया था। असुर से युद्ध की वजह से वे थक गए। इसके बाद भगवान ने करीब चार महीने आराम किया।

इंसानों के दिन-रात चार-चार प्रहर के: चार-चार प्रहर मिलकर इंसानों के दिन-रात बनते हैं। एक प्रहर मतलब 3 घंटे का समय। इस तरह चार प्रहर का दिन यानी 12 घंटे का दिन और चार प्रहर की ही रात। पंद्रह दिन का एक पक्ष (पखवाड़ा) होता है। जो शुल और कृष्ण पक्ष के नाम से जाना जाता है। दो पखवाड़ों का एक महीना होता है। इस एक महीने को पितरों (मृतात्माओं) का एक दिन माना जाता है। दो महीने की एक ऋ तु होती है। इस तरह साल में छह ऋ तुएं यानी मौसम होते हैं, ये ऋ तुएं वसंत (गर्मी से पहले), ग्रीष्म (गर्मी), वर्षा, शरद (बारिश के बाद), हेमंत (सर्दियों के पहले) और शिशिर (सर्दी का मौसम) हैं। छह महीने का एक अयन (आधा साल) होता है। सूर्य की स्थिति के अनुसार उत्तरायन और दक्षिणायन, ये दो अयन होते हैं। ये दोनों अयन मिलकर देवताओं के एक दिन और एक रात के बराबर होते हैं। उत्तरायण में देवताओं का दिन और दक्षिणायन में रात होती है।

उत्तरायण 15 जनवरी से: सूर्य की स्थिति से देखें तो मकर से मिथुन राशि तक जब सूर्य रहता है तो इसे उत्तरायण कहा जाता है, सूर्य 15 जनवरी से मकर राशि में आएगा, मतलब इस दिन से उत्तरायण शुरू होगा जो सूर्य के कर्क में जाने तक उत्तरायण रहेगा। 15 जनवरी से 15 जुलाई तक उत्तरायण रहेगा। वहीं, 16 जुलाई से सूर्य कर्क राशि में आएगा और दक्षिणायन शुरू होगा जो 14 जनवरी 2022 तक सूर्य के धनु राशि में रहने तक रहेगा। यही देवताओं के दिन रात हैं। उत्तरायण दिन है, दक्षिणायन रात है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here