जिंदगी का मोल बचा ही नहीं

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देश कोरोना के भयावह काल से गुजर रहा है और हर दिन सैकड़ों लोगों की जान जा रही है। लेकिन बेईमानों की एक पूरी फौज ऐसे दुखद समय का फायदा उठाने से बाज नहीं आ रही। इस समय बाजार में यूं तो अनेक तरह के नकली सामान मिल रहे हैं, लेकिन कोरोना को हराने वाली दवाएं और अन्य सामानों की बाढ़ आ गई है। हर दिन खबर आ रही है कि रेमडेसेवियर की सुइयां अन्य नकली दवाइयां और उनके कारखाने पकड़े जा रहे हैं। नकली दवाइयां बनाकर ये लोगों से मोटी रकम वसूलते हैं, लेकिन यह नहीं सोचते कि इससे मरीजों की जान भी जा सकती है। पिछले साल देश के कई हिस्सों से बड़ी तादाद में नकली मास्क और सैनिटाइजर पकड़े जाने की खबरें आईं। सरकार ने इस तरह की बढ़ती प्रवृत्ति को देखते हुए इन्हें अनिवार्य वस्तु कानून के तहत डाल दिया है ताकि अपराधियों को कड़ी सजा मिले। लेकिन यह खेल है कि रुक नहीं रहा।

फैला हुआ है जाल

इसी तरह पीपीई किट का काला कारोबार चल रहा है। देश में 25 स्थापित कंपनियों को इसे बनाने का लाइसेंस मिला हुआ है लेकिन हर दिन हजारों नकली किट भी बन रही हैं। पिछले साल तो शिकायत आई थी कि झारखंड में सरकारी खरीद में जो किट आई थीं, वे नकली थीं। फर्जी कंपनियां धड़ल्ले से कैरीबैग के या ब्लेजर कवर से इसे बना रही हैं। ऐसी नकली दवाओं और अन्य सामग्री का जाल इतना फैला हुआ है कि इंटरनैशनल कंपनी ऐमजॉन ने अपनी साइट से दस लाख ऐसे प्रॉडक्ट्स को हटा दिया, जो कोरोना बीमारी के इलाज का झूठा दावा करते हैं।

जानी-मानी आर्थिक पत्रिका फोर्ब्स ने हाल के अंक में बताया है कि भारत में इस समय साढ़े पांच अरब डॉलर के नकली सामानों, खासकर कोरोना से संबंधित सामानों और दवाइयों का बाजार फल-फूल रहा है। पिछले साल सीबीआई ने भी एक नोटिस जारी करके सभी राज्यों को आगाह किया था कि इस तरह का कारोबार तेजी से बढ़ रहा है, जिस पर रोक लगाना जरूरी है। उसने यह भी कहा था कि जो नकली हैंड सैनिटाइज़र हैं, दरअसल उनमें मीथाइल नामक रसायन है, जो त्वचा के लिए खतरनाक होता है। दिल्ली के सदर बाजार में भी नकली सैनिटाइजर का घोल बिकने की खबरें आई हैं। विभिन्न राज्यों में करोड़ों रुपये के नकली सैनिटाइजर पकड़े गए हैं।

भारत नकली दवाओं का दुनिया का तीसरा बड़ा बाजार है और कोरोना काल ने नक्कालों को अवैध पैसा कमाने का बड़ा मौका दिया है। कोरोना की दवाइयों के अलावा भी कई अन्य तरह की दवाइयां यहां मिल रही हैं। ऑनलाइन शॉपिंग बढ़ने से इस धंधे को बढ़ोतरी मिली है। एक रिपोर्ट के मुताबिक ऑनलाइन खरीदी जाने वाली दवाओं में 30 प्रतिशत नकली हैं। हर साल दस लाख लोगों की इनके सेवन से मौत हो जाती है और उनके परिवार वालों को पता भी नहीं चलता। दरअसल ये फर्जी कंपनियां इतनी सफाई से अपने प्रॉडक्ट्स की ऑनलाइन मार्केटिंग करती हैं कि कोई भी आसानी से धोखा खा जाए। इस बारे में फिक्की की एक रिपोर्ट से काफी कुछ खुलासा हुआ है। उसका कहना है कि इस पैंडेमिक में नकली दवाओं का कोराबार और बढ़ गया है। संगठन ने इसके बारे में देशव्यापी अभियान भी छेड़ा है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक सर्दी और जुकाम की ज्यादातर दवाइयां या तो नकली हैं या फिर घटिया हैं। उसने 2017 में एक रिपोर्ट में कहा था कि भारत में बिकने वाली 10.5 प्रतिशत दवाइयां नकली हैं। नकली प्रॉडक्ट्स के खिलाफ वर्षों से काम कर रही संस्था फेक फ्री इंडिया फाउंडेशन ने अपनी रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। उसने कहा है कि देश में नकली सामानों के उत्पादन का काम पिछले पांच दशकों से चल रहा है और उससे सरकारों को हर साल कम से कम एक लाख करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है।

नक्काल नकली दवाएं, खाने-पीने के सामान, ऑटो पार्ट्स वगैरह धड़ल्ले से बना रहे हैं। देश में 40 फीसदी दुर्घटनाएं नकली ऑटो पार्ट्स के कारण होती हैं। यही नहीं कैंसर के बढ़ते मामलों के पीछे भी इनका हाथ है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2017-18 में कैंसर के मामलों में 324 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी। कैंसर बढ़ने का एक कारण यह भी है कि लोग नकली प्रॉडक्ट्स का उपभोग कर रहे हैं।

इस समय नक्काल सबसे ज्यादा जोर कोरोना भगाने की दवाइयां और अन्य सामानों के उत्पादन में लगे हुए हैं और बेगुनाहों की जान से खेल रहे हैं। फेक फ्री इंडिया का कहना है कि इस बुराई को जड़ से समाप्त करना जरूरी है और इसके लिए न केवल सरकारों को बल्कि जुडिशरी को भी सामने आना होगा। लोगों में जागरूकता लानी होगी ताकि वे नकली प्रॉडक्ट्स को पहचान सकें। इस समय नकली सामानों की बाढ़ आई हुई है।

हूबहू पैकेजिंग

नक्काल अब पहले से कहीं ज्यादा सॉफिस्टिकेटेड हो गए हैं। वे बढ़िया पैकिंग करते हैं और उन्हीं कंपनियों से पैकेजिंग का माल खरीदते हैं, जहां से असली सामान बनाने वाली कंपनियां बनवाती हैं। पैकिंग हूबहू वैसी ही हो जाने से पढ़े-लिखे ग्राहकों को भी धोखा हो जाता है और वे इनकी खरीदारी कर लेते हैं। पैसे कमाने के लालच में दुकानदार बड़े पैमाने पर इनकी बिक्री कर रहे हैं। कम दाम देखकर ग्राहक भी इनकी ओर आकर्षित होते हैं। नकली दवाओं के मामले बढ़ते जा रहे हैं, जिससे लोगों के स्वास्थ्य को खतरा भी बढ़ता जा रहा है। यह कितना अमानवीय है कि लोग अपनी जान से हाथ धो रहे हैं और दूसरी ओर चंद लोग पैसे कमाने के लिए मासूमों की बलि दे रहे हैं। सरकार को चाहिए कि इन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाए क्योंकि असली देशद्रोही यही हैं।

मधुरेन्द्र सिन्हा
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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