हॉटस्पॉट तो पूरा देश ही है!

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सरकारी आंकड़ों के एक ताजा विश्लेषण ये सामने आया है कि पिछले तीन महीनों में कोरोना संक्रमण के मामले पूरे देश में कुछ इस तरह से बढ़े हैं कि महामारी अब लगभग हर राज्य में और राज्यों के अधिकतर हिस्सों में फैल रही है। गौरतलब है कि मई में देश के एक-तिहाई मामले सिर्फ महाराष्ट्र में थे, जबकि 19 दूसरे राज्यों में एक प्रतिशत से भी कम मामले थे। ये स्थिति अब बदल चुकी है। अब किसी भी राज्य में 20 प्रतिशत से ज्यादा मामले नहीं हैं। महाराष्ट्र की हिस्सेदारी 18 प्रतिशत पर आ गई है। एक से 20 प्रतिशत तक हिस्से वाले राज्यों की संख्या काफी बढ़ गई हैं। मई में ऊपर के तीन हॉट स्पॉटों की कुल मामलों में हिस्सेदारी 60 प्रतिशत हुआ करती थी, अब 44 प्रतिशत है। शुरू के कई हॉट स्पॉट अभी भी हॉट स्पॉट बने ही हुए हैं। उनके अलावा 20 नए हॉट स्पॉट भी सामने आ गए हैं। हकीकत यह है कि भारत में कोरोना वायरस के नए मामलों में अब रोजाना ही नए रिकॉर्ड बन रहे हैं। भारत में संक्रमण के कुल मामलों की संख्या 42 लाख से भी ज्यादा हो गई है और भारत अब सिर्फ अमेरिका से ही पीछे रह गया है।

अब एक हजार से ज्यादा मौतें रोज हो रही हैं। ये हाल तब है कि जब भारत अभी भी जांचों की संख्या में दूसरे देशों से काफी पीछे है। अमेरिका में अभी तक आठ करोड़ से भी ज्यादा सैंपलों की जांच हो चुकी है। अगर आबादी के हिसाब से हर 10 लाख लोगों पर टेस्ट का आंकड़ा देखा जाए, तो भारत अब भी दूसरे देशों से बहुत पीछे है। हर 10 लाख लोगों पर भारत अभी भी सिर्फ लगभग 32,000 टेस्ट कर रहा है, जबकि ब्राजील करीब 67,000 टेस्ट, अमेरिका और रूस 2.5 लाख से ज्यादा और दक्षिण अफ्रीका 62,000 से ही ज्यादा टेस्ट कर रहा है। टेस्टिंग का एक और चिंताजनक पहलू यह है कि कुल जांचों की संख्या में सबसे सटीक टेस्ट आरटी-पीसीआर की संख्या घटती जा रही है। कई बार गलत नेगेटिव नतीजा देने वाले रैपिड टेस्ट की संख्या बढ़ती जा रही है। जुलाई तक कुल टेस्टों में रैपिड टेस्टों का अनुपात औसत चार प्रतिशत के आस पास था, लेकिन अब यह लगभग 45 प्रतिशत के आस पास है। तो साफ है कि हालात बिगड़ रहे हैं, भले अब सरकार और मीडिया को इसकी फिक्र ना हो!

अब तो यूपी भी पूरी तरह खोल दिया गया है। रविवार की तालाबंदी भी हटा ली गई है। हैरानी की बात यही है कि जब केस बढ़ रहे हैं तो देश व सूबा खोल दिया गया है तो हालात कैसे होंगे? दिल्ली को ही ले लीजिए, स्थिति संभलने के बाद एक बार फिर बिगड़ती नजर आ रही है। ऐसा सरकारी आंकड़े कहते हैं। हालांकि बहुत से लोगों का मानना है कि स्थिति कभी उतनी संभली ही नहीं थी, जितनी बताई गई। इसलिए ये कयास बेकार है कि दिल्ली में कोरोना महामारी का दूसरा दौर आ रहा है। यह असल में पहला ही दौर है, जिसे अब अविश्वसनीय टेस्ट या आंकड़ों की हेरफेर से छिपाना कठिन हो रहा है। वैसे भारत ही नहीं पूरी दुनिया में अधिकतर जगहों पर देखा यही जा रहा है कि जहां भी महामारी के खिलाफ स्थिति में थोड़ा भी सुधार हुआ है, वहां प्रशासन के ढील देते ही हालात फिर बिगड़ जाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि वायरस के खिलाफ कुछ दिनों की कामयाबी को उससे स्थाई छुटकारा समझ लेना एक भूल है।

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