ऐसा लग रहा है कि देश कोरोना वायरस के दुष्चक्र में फंस गया है। एक बार फिर पूरे देश में अलग-अलग राज्यों में स्थानीय स्तर पर लॉकडाउन लगाए जा रहे हैं। लोकल ट्रेनों की सेवाओं को सीमित किया जा रहा है। थियेटर, रेस्तरां आदि को आधी क्षमता से चलाने को कहा जा रहा है। चुनावी रैलियों को छोड़ कर बाकी सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लोगों की संया सीमित की जा रही है। पिछले साल भी यह सब किया गया है। यह सब किया जाता है तो वायरस के केसेज कम होने लगते हैं और फि इन सबमें ढील दी जाने लगती है, जिसके बाद फिर केसेज बढऩे लगते हैं। जैसे दिल्ली में मुख्यमंत्री का कहना है कि राष्ट्रीय राजधानी में कोरोना वायरस की चौथी लहर चल रही है। यानी तीन-चार बार यह चक्र दोहराया जा चुका है। एक बार फिर तमाम तरह की पाबंदियों से वायरस की संख्या सीमित की जाएगी और फिर जब पाबंदियां हटेंगी तो वायरस फैलने लगेगा। जब तक कहीं भी कोई संक्रमित रहता है तो वह इसे पूरे देश में फैला सकता है। इस तरह यह सालों तक, दशकों तक चक्र चलता रह सकता है। इस चक्र को तोडऩे का एकमात्र उपाय वैक्सीन है।
लेकिन ऐसा लग रहा है कि देश की सरकार सारे लोगों को एक निश्चित समय में वैक्सीन नहीं लगवा सकती है। दूसरे, वैक्सीन से बनने वाली एंटीबॉडी एक साल से कम समय तक रहती है। इसका मतलब है कि जिस तरह कंप्यूटर-लैपटॉप में हर साल एंटी वायरस डालना होता है वैसे ही हर साल कोरोना वायरस को रोकने का टीका लगवाना होगा। इससे तो ऐसा लग रहा है कि वायरस का दुष्चक्र कभी खत्म नहीं होगा। दिकत ये भी है कि पिछले दिनों अमेरिकी संस्था पिउ रिसर्च ने बताया था कि कोरोना महामारी के कारण दुनिया भर में करोड़ों लोग मध्य वर्ग से खिसक कर गरीबी रेखा के नीचे चले गए हैँ। इनमें लगभग साढ़े सात करोड़ लोग भारत के हैं। भारत में वैसे भी मध्य वर्ग छोटा है। विश्व बैंक के रोजाना दो डॉलर खर्च कर सकने की क्षमता के पैमाने पर कभी इस तबके की आबादी भारत में 10 करोड़ से अधिक नहीं रही। मध्य वर्ग से लोग यों नीचे गए, इसका एक कारण बड़ी संया में अच्छी तनवाह वाली नौकरियों से लोगों का हाथ धोना है। दूसरा कारण मध्यम और छोटे दर्जे के कारबारों का बंद होना है। इस बारे में एक नए अध्ययन से नई रोशनी पड़ी है। इस अध्ययन के मुताबिक ऐसे कारोबार से जुड़े लोगों को नहीं लगता कि अगले महीनों के भीतर वे अपना व्यवसाय पहले जैसा चला पाएंगे।
बल्कि उन्हें यह भी नहीं लगता कि वह अगले छह महीने तक अपना कारोबार जारी रख पाएंगे। एक नई फेसबुक वैश्विक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत और पाकिस्तान में ऐसे कारोबार के बंद होने की दर सबसे ऊंची है। भारत में ऐसे 32 प्रतिशत उद्योग बंद हो गए हैं। इससे इस क्षेत्र में रोजगार में कमी आई है। भारत में पिछले तीन महीनों के दौरान पूर्व कर्मचारियों के बीच से सिर्फ 42 को ही दोबारा काम मिला। अब चूंकि महामारी की दूसरी लहर का कहर टूट पड़ा है, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि हालात क्या होंगे? हालांकि वैसीन आने से कुछ आशा पैदा हुई है, फिर भी अध्ययनकर्ताओं की राय है कि अभी भी कई उद्योग कमजोर हैं और उन्हें सहायता की जरूरत है। जो लोग महामारी के प्रभाव को महसूस कर रहे हैं, उनमें सबसे अधिक महिलाओं और अल्पसंयक-स्वामित्व वाले व्यवसाय हैं। वैसे भी ये जग जाहिर है कि जब भी संकट आता है, तो हमेशा सबसे कमजोर पर ही सबसे कठिन मार पड़ती है। एक बार फिर यही हुआ है। भारत में इस क्षेत्र को संभालने के लिए सरकारी स्तर पर शायद ही कोई प्रभावी कदम उठाया गया है। नतीजा है कि देश की आर्थिक संभावनाएं धूमिल पड़ रही हैं।