आ रहा है कोरोना का असली संकट

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भारत के लोग समझ रहे हैं कि सरकार ने अनलॉक शुरू कर दिया इसका मतलब है कि कोरोना वायरस खत्म हो गया या इसका संकट टल गया। ज्यादातर लोग यह मानने लगे हैं कि अब घर में ही रह कर इसका इलाज हो रहा है इसका मतलब है कि यह कोई बड़ी बीमारी नहीं है। यह दोनों धारणा सरकार ने खुद बनवाई है। सरकार ने मरीजों की बढ़ती संख्या पर ध्यान देने की बजाय बार बार इस बात पर जोर दिया है कि देश में हर दिन कितने मरीज ठीक हो रहे हैं और रिकवरी रेट कितनी तेजी से बढ़ रही है। इसके अलावा सरकार ने सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क से बचाव का ऐसा प्रचार किया कि जो लोग कोरोना को गंभीरता से लेते भी हैं उन्होंने इतने भर से काम चलाना शुरू कर दिया। इसका नतीजा यह हुआ है कि भारत में अचानक कोरोना संक्रमितों की संख्या में तेजी से इजाफा होने लगा है। एक तरफ टेस्टिंग को जान बूझकर कम रखा गया है और दूसरी ओर बीमारी की भयंकरता को कम करके दिखाया जा रहा है, जबकि हकीकत इससे उलट है। देश के अनेक राज्यों में पानी सर के ऊपर पहुंच गया है। महाराष्ट्र में संक्रमितों की संख्या दो लाख से ऊपर चली गई है। तमिलनाडु में एक लाख से ज्यादा संक्रमित हो गए हैं और दिल्ली में रविवार की देर रात तक ही संक्रमितों की संख्या एक लाख से ऊपर चली जाएगी। छह राज्यों में संक्रमितों की संख्या 20 हजार से ज्यादा हो गई है और पांच राज्यों में संक्रमितों की संख्या दस हजार से ऊपर है।

यह ठीक है कि संक्रमितों के इलाज से स्वस्थ होने की दर अच्छी हो गई है लेकिन जिस तेजी से नए मामले आ रहे हैं उससे कोरोना के सामुदायिक संक्रमण का खतरा स्पष्ट दिख रहा है। दुनिया भर के देशों के पैमाने पर देखें तो भारत रविवार को ही रूस को पीछे छोड़ कर तीसरे स्थान पर पहुंचा है। वैसे भी रूस में संक्रमितों का रोजाना का औसत घट रहा है और भारत में बढ़ रहा है। बहरहाल, भारत अब अमेरिका और ब्राजील के बाद तीसरे स्थान पर है। ऊपर के दोनों देशों में जिस तेजी से संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है उसे देखते हुए लगता है कि भारत अभी थोड़े समय तक तीसरे स्थान पर रहेगा। गंभीर मरीजों की संख्या के मामले में भारत दूसरे स्थान पर है। इतनी तेजी से केसेज बढ़ने के बावजूद भारत में प्रति दस लाख की आबादी पर सिर्फ सात हजार टेस्ट हो रहे हैं, जबकि ब्राजील जैसे देश में भी प्रति दस लाख पर 15 हजार से ज्यादा टेस्ट हो रहे हैं। अमेरिका तो दस लाख की आबादी पर एक लाख 11 हजार से ज्यादा टेस्ट कर रहा है पर ब्राजील भी भारत से दोगुने टेस्ट कर रहा है। तभी अंदाजा लगाया जा रहा है कि अमेरिका और ब्राजील में थोड़े समय के बाद संक्रमितों की संख्या कम होने लगेगी, जबकि भारत में संख्या कम होने के आसार अभी तत्काल नहीं दिख रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी में जहां ढाई हजार केसेज रोज आ रहे हैं और जहां जुलाई के अंत तक पीक पहुंचने की बात थी वहां भी कहा जा रहा है कि अगस्त के अंत तक पीक आ सकता है। सोचें, अगर दिल्ली में अभी कोरोना का पीक आने में डेढ़ महीने से ज्यादा समय लगेंगे तो देश के बाकी हिस्सों में क्या होगा?

देश के ज्यादातर हिस्सों में अभी कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से फैलना शुरू नहीं हआ है या कह सकते हैं कि सामुदायिक संक्रमण शुरू नहीं हुआ है। देश में जो सात लाख के करीब संख्या दिख रही है इसमें 10-20 बड़े शहरों का हिस्सा सबसे ज्यादा है। तभी छोटे शहरों और गांवों में लोग पूरी तरह से लापरवाह हैं। ऊपर से पतंजलि समूह के रामदेव और भारत सरकार की एजेंसी आईएसएमआर ने बीमारी को अलग मजाक बना कर रख दिया है। सारी दुनिया अभी बीमारी को समझने और इसके सारे लक्षणों का पता लगाने में ही सफल नहीं हो पाई है तब तक एक दिन रामदेव ने कहा कि उन्होंने इसकी दवा बना ली तो दूसरे दिन आईएसएमआर ने कहा है कि वह 15 अगस्त तक वैक्सीन लांच कर देगी। इससे इन संस्थाओं का मजाक तो बना ही है, दुनिया में पूरे देश का मजाक अलग बन गया है। इसका नुकसान यह हुआ है कि लोगों के मनोविज्ञान में कोरोना वायरस की जो गंभीरता बननी चाहिए थी वह नहीं बन पा रही है।

सरकार के प्रचार और इस तरह से मजाक से लोग भी कोरोना को गंभीरता से लेना बंद कर चुके हैं। सरकार ने इस पर भी फोकस बनवाया है कि लोगों को जान से ज्यादा जहान की चिंता करनी चाहिए। लोगों को अपनी नौकरी, रोजगार आदि की चिंता में जुट जाना चाहिए। कोरोना के नाम पर जो थोड़ी बहुत राहत लोगों को मिली हुई थी वह खत्म कर दी गई है। पेट्रोलियम कंपनियों ने 82 दिन तक कीमतों की समीक्षा नहीं की पर उसके बाद 22 दिन लगातार दाम बढ़ा कर डीजल को पेट्रोल से महंगा कर दिया है। दोनों ईंधनों की कीमत 80 रुपए प्रति लीटर से ऊपर है। सरकार ने जेट ईंधन के दाम भी बढ़ाए हैं और बिना सब्सिडी वाले रसोई गैस की कीमत भी बढ़ा दी है। बैंकिंग के कामकाज में लोगों को न्यूनतम बैलेंसे से छूट मिली थी और एटीएम ट्रांजेक्शन पर लगने वाला शुल्क भी नहीं लगता था पर अब इसे बहाल कर दिया गया है। तभी लोगों को कोरोना से ज्यादा चिंता दूसरी बातों की होने लगी है। लोग और सरकार दोनों इस बात से बेखबर दिख रहे हैं कि कोरोना का असली संकट अब आने वाला है।

शशांक राय
( लेखक पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं )

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